जोधपुर: महिलाओं के अनूठे त्योहार के रूप में प्रसिद्ध जोधपुर का धींगा गवर मेले का आयोजन बुधवार को होगा. इस मेले को बेंतमार मेला भी कहा जाता है, लेकिन इस बार बेंतमार शब्द को लेकर गवर का पूजन करने वाली तिजणियों को आपत्ति है. वे इसे धींगा गवर मेला बनाए रखना चाहती हैं. साथ ही वे अपनी बजुर्गों से मिली इस परंपरा को उसी रूप में आगे बढ़ाना चाहती हैं, जो उनको मिली है.
तिजणियों का कहना है कि इसके प्राचीन रूप से छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए. हमें इसे अपनी अगली पीढ़ी को सौंपना है. इसके तहत बुधवार को को पूरी रात भीतरी शहर की सड़कों पर महिलाओं का ही राज होगा. इस मेले के लिए इन दिनों तिजणियों का पूजन अंतिम दौर में है. मंगलवार को शहर के अलग-अलग मौहल्लों में पूजन हुआ. जिसमें उत्साह से महिलाएं भाग ले रही हैं. साथ ही उनके मेले के दिन अलग-अलग रूप धरने की तैयारियां भी शुरू हो गई हैं. इसके साथ ही भीतरी शहर में एक दर्जन से ज्यादा स्थानों पर मेले के दिन गवर बैठाने के लिए भी तैयारियां जोरों पर है. गवर को पहनाए जाने वाले सोने से ही उस मोहल्ले की समृद्धि आंकी जाती है.
यूं अलग है गणगौर से धींगा गवर पूजन: सामान्यत गणगौर का पूजन होली के अगले दिन से शुरू होता है, लेकिन धींगा गवर का पूजन गणगौर के बाद होता है. दोनों का समय 16 दिन का है. धींगा गवर जोधपुर में भी विशेष रूप से भीतरी शहर में ही इसका पूजन होता है. गणगौर पूजन में कुंवारी कन्या अपने होने वाले अच्छे वर की कामना व सुहागिनें अपने पति की दीर्घायु के लिए यह पूजन करती हैं. जबकि धींगा गवर में कुंवारी कन्या द्वारा पूजन वर्जित हैं, सुहागिनों के साथ-साथ विधवा भी इसका पूजन करती हैं. देवी पार्वती स्वरूपा गवर को शक्ति का रूप मान कर पूरे परिवार की खुशहाली के लिए यह पूजन होता है. जिसमें पूरे 16 दिन व्रत किया जाता है.
सुनारों की घाटी में सर्वाधिक सोना: बुधवार को शहर के परकोटे के भीतर हर गली मोहल्ले में गवर प्रतिमाएं नजर आएंगी. जालौरी गेट से चांद बावडी तक 15 गवर प्रतिमाएं होंगी. इसके अलावा आडाबाजार, मोती चौक सहित अन्य क्षेत्रों में भी पांच से सात जगह पर गवर विराजमान होगी. लेकिन सर्वाधिक सोना सुनारों की घाटी की गवर को पहनाया जाता है. यहां गवर माता को 12 से 15 किलो सोने के जेवर पहनाए जाते हैं. इसी तरह से हर गवर को सजा-धजा कर विराजमान किया जाता है.
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एक तरह का कार्निवल होता है: 16 दिन पूजन करने वाली तिजणियां अंतिम दिन पूूजन पूरा करने के बाद शाम को सजधज कर निकलने की परंपरा रही है. इस परंपरा में धीरे-धीरे बदलाव हुआ और महिलाएं अलग-अलग स्वांग धर कर निकलने लगी. इसमें देवी-देवाताओं के परंपरागत रूपों के साथ-साथ समसामयिक रूप से चर्चित चेहरे भी स्वांग में शामिल होते हैं. जब भीतरी शहर में रात को 10 बजे इनका आना शुरू होता है, तो गलियों में जाम लग जाता है. एक बाद एक तिजणियों की टोलियां आती जाती है.
पूजन में झलक रहा उत्साह: धींगा गवर के तहत 16 दिन तक तिजणियां जो गवर का पूजन करती हैं, वे व्रत करते हुए पूजन करती हैं. इन दिनों भीतरी शहर के कबूतरों का चौक, नवचौकिया, ब्रहृमपुरी, हाउसिंग बोर्ड, खागल सहित अन्य इलाकों में महिलाएं समूह में पूजन कर रही हैं. तिजणियों का कहना है कि यह पूजन पूरा एक टीम वर्क होता है. सबको अलग-अलग जिम्मेदारी दी जाती है. कई जगहों पर पूजन करने वाली तिजणियां एक जैसे ड्रेस में पूजा करती हैं. यह व्रत बुधवार को पूरे हो जाएंगे.
इस मेले का ज्यादातर भाग पुलिस कमिश्नरेट के जिला पूर्व में आता है. इसके चलते उपायुक्त आलोक श्रीवास्तव के निर्देश पर पुलिस की टीमें व्यवस्थाओं पर काम कर रही है. इस बार सम्मान के नाम पर स्टेज लगाने की परंपरा पर रोक लगाई गई है. जिससे रास्ते जाम नहीं हों. एसीपी मंगलेश चूडावत ने व्यवस्थाओं का जिम्मा संभाल रखा है. इसके अलावा जालौरी गेट के बाहर भी सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने को लेकर पुलिस की कवायद शुरू हो गई है. मेले के दौरान बिजली गुल नहीं हो, इसके लिए व्याप्क तैयारियां चल रही है.