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एक ऐसा गांव जहां ना होलिका जलती है ना रावण, चिता को भी आग नसीब नहीं होती - DHAMTARI TELINSATTI VILLAGE

छत्तीसगढ़ के धमतरी के एक गांव में सदियों पुरानी परंपरा आज भी कायम है.

DHAMTARI TELINSATTI VILLAGE
तेलीनसत्ती गांव में होलिका दहन नहीं (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : March 12, 2025 at 5:25 PM IST

Updated : March 15, 2025 at 1:36 PM IST

5 Min Read

धमतरी: छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के भखारा रोड पर तेलीनसत्ती नाम का गांव है. आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां 12वीं शताब्दी के बाद से अबतक होलिका दहन नहीं किया गया है. ग्रामीणों का यह भी मानना है कि जो लोग युगों से चली आ रही परंपरा को नहीं मानते, उनके साथ बुरा होता है या उनकी मृत्यु तक हो जाती है.

होलिका दहन नहीं होने के पीछे क्या मान्यता?: बुजुर्गों के अनुसार गांव की एक महिला की जिस शख्स के साथ शादी तय हुई थी, उसकी बलि दी गई थी. जिसके बाद उस महिला ने खुद को आग के हवाले कर दिया. लोग कहते हैं कि उस महिला को सती कहा गया. इस घटना के बाद से ही तेलीनसत्ती गांव के लोगों ने होलिका दहन नहीं किया है.

धमतरी के इस गांव में नहीं होता होलिका दहन (ETV BHARAT)

भानुमति के सती होने की कहानी: ग्रामीण बताते हैं कि भानपुरी गांव के दाऊ परिवार में सात भाइयों के बाद एक बहन जन्मी. बहन का नाम भानुमति रखा गया. भाइयों ने अपनी इकलौती बहन के लिए लमसेना यानी घरजमाई ढूंढा. दोनों की शादी तय करी दी गई. लेकिन गांव के ही किसी तांत्रिक ने फसल को प्राकृतिक आपदा से बचाने के लिए जीजा की बलि की सलाह दी. इसके बाद भाइयों ने मिलकर अपने होने वाले जीजा की बलि चढ़ा दी. इधर भानुमति पहले ही उसे अपना पति मान चुकी थी, लिहाजा उसने खुद को आग के हवाले कर दिया और सती हो गई.

HOLI 2025
भानुमति के नाम पर गांव का नाम पड़ा तेलीनसत्ती (ETV Bharat Chhattisgarh)

भानुमति के सात भाई थे. उसके लिए लमसेना यानी घरजमाई ढूंढा गया था. प्राकृतिक आपदा से गांव को बचाने के लिए तांत्रिक के कहने पर भानुमति के होने वाले पति की बलि दे दी गई. इसके बाद भानुमति सती हो गई. तब से गांव में होली नहीं जलाते हैं. हमारे बुजुर्गों ने भी परंपरा निभाई और हम भी परंपरा निभा रहे हैं-राधेलाल सिन्हा, ग्रामीण

तेलीनसत्ती मंदिर में महिलाओं का प्रवेश नहीं: बताया जाता है कि भानुमति तेली जाति की थी और गांव में सती हुई, इस वजह से गांव का नाम उसी दिन से तेलीनसत्ती पड़ा. गांव में ही भानुमति की याद में एक मंदिर बनाया गया है. इस मंदिर को तेलीनसत्ती माता का मंदिर कहा जाता है. इस मंदिर में ग्रामीण सुबह शाम पूजा अर्चना करते हैं. खास बात यह है कि यहां पर महिलाओं का आना प्रतिबंधित है. ग्रामीण बताते हैं कि भानुमति बगैर शादी हुए सती हुई थी, इस वजह से शादीशुदा महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया है.

HOLI 2025
धमतरी के इस गांव में नहीं जलाते होलिका दहन (ETV Bharat Chhattisgarh)

तेली जाति की भानुमति के सती होने की वजह से ही इस गांव का नाम तेलीनसत्ती पड़ा है. हमारे बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि यह 12वीं शताब्दी की बात है. हमने बुजुर्गों से सुना. हमारे बुजुर्गों ने अपने बुजुर्गों से यह कहानी सुनी.लगातार परंपरा निभा रहे हैं. हमारे गांव में चिता नहीं जलती है-देवलाल सिन्हा, ग्रामीण

"गांव में नहीं होता अंतिम संस्कार": ग्रामीण कहते हैं कि हमारे बुजुर्ग यह भी बताते हैं कि मौत के बाद भानुमति ग्रामीणों के सपने में आती और दाह संस्कार करने से मना करती थी. ऐसा नहीं करने पर गंभीर परिणाम भुगतने की बात भी कहती थी. यही वजह है कि इस गांव में 12वीं शताब्दी से कोई दाह संस्कार नहीं होता. गांव में किसी की मौत होने पर पड़ोस के गांव में ले जाकर अंतिम संस्कार किया जाता है.

गांव में होलिका दहन नहीं करते हैं, यहां चिता भी नहीं जलाते हैं-पुनिया बाई, ग्रामीण

होली नहीं जलाते हैं, रंग गुलाल बस खेलते हैं. यहां दाह संस्कार भी नहीं होता, दूसरे गांव में अंतिम संस्कार करते हैं-हरीश राम, ग्रामीण

दशहरा में रावण नहीं जलाते: खास बात यह भी है कि तेलीनसत्ती गांव में दशहरा में रावण नहीं जलाया जाता. ग्रामीण कहते हैं कि ''परंपरा का पालन नहीं करने पर ग्रामीणों को विपत्ति का सामना करना पड़ता है.''

परंपरा का निर्वाह करने की हिदायत देते हैं बुजुर्ग-इस परंपरा का निर्वाह करने की वजह से अब तक हजारों टन लकड़ी स्वाहा होने से बच गई है. गांव की आबोहवा भी प्रदूषण से बची हुई है. लोगों का कहना है कि इस परंपरा की जानकारी गांव के बुजुर्गों ने नई पीढ़ी को दी है. वो इस परंपरा को कभी न तोड़ने की हिदायत भी देते हैं.

तेलीनसत्ती गांव में नियम है कि किसी भी प्रकार का दाह संस्कार न करें, अन्यथा आपदाओं का सामना करना पड़ेगा. इस गांव में सिर्फ होली ही नहीं, बल्कि दशहरा में रावण नहीं जलाया जाता. यहां कोई चिता भी नहीं जलाई जाती है. गांव में किसी के निधन पर उसका अंतिम संस्कार गांव से बाहर किया जाता है. ये बातें इस दौर में अविश्वसनीय, अकल्पनीय लग सकती हैं, लेकिन परंपरा आज भी निभाई जा रही है.

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छत्तीसगढ़ के इस गांव में अनोखी प्रथा, 150 सालों से ग्रामीणों ने नहीं खेली होली
होली से 5 दिन पहले पूरा गांव हुआ रंगों से सराबोर

धमतरी: छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के भखारा रोड पर तेलीनसत्ती नाम का गांव है. आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां 12वीं शताब्दी के बाद से अबतक होलिका दहन नहीं किया गया है. ग्रामीणों का यह भी मानना है कि जो लोग युगों से चली आ रही परंपरा को नहीं मानते, उनके साथ बुरा होता है या उनकी मृत्यु तक हो जाती है.

होलिका दहन नहीं होने के पीछे क्या मान्यता?: बुजुर्गों के अनुसार गांव की एक महिला की जिस शख्स के साथ शादी तय हुई थी, उसकी बलि दी गई थी. जिसके बाद उस महिला ने खुद को आग के हवाले कर दिया. लोग कहते हैं कि उस महिला को सती कहा गया. इस घटना के बाद से ही तेलीनसत्ती गांव के लोगों ने होलिका दहन नहीं किया है.

धमतरी के इस गांव में नहीं होता होलिका दहन (ETV BHARAT)

भानुमति के सती होने की कहानी: ग्रामीण बताते हैं कि भानपुरी गांव के दाऊ परिवार में सात भाइयों के बाद एक बहन जन्मी. बहन का नाम भानुमति रखा गया. भाइयों ने अपनी इकलौती बहन के लिए लमसेना यानी घरजमाई ढूंढा. दोनों की शादी तय करी दी गई. लेकिन गांव के ही किसी तांत्रिक ने फसल को प्राकृतिक आपदा से बचाने के लिए जीजा की बलि की सलाह दी. इसके बाद भाइयों ने मिलकर अपने होने वाले जीजा की बलि चढ़ा दी. इधर भानुमति पहले ही उसे अपना पति मान चुकी थी, लिहाजा उसने खुद को आग के हवाले कर दिया और सती हो गई.

HOLI 2025
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भानुमति के सात भाई थे. उसके लिए लमसेना यानी घरजमाई ढूंढा गया था. प्राकृतिक आपदा से गांव को बचाने के लिए तांत्रिक के कहने पर भानुमति के होने वाले पति की बलि दे दी गई. इसके बाद भानुमति सती हो गई. तब से गांव में होली नहीं जलाते हैं. हमारे बुजुर्गों ने भी परंपरा निभाई और हम भी परंपरा निभा रहे हैं-राधेलाल सिन्हा, ग्रामीण

तेलीनसत्ती मंदिर में महिलाओं का प्रवेश नहीं: बताया जाता है कि भानुमति तेली जाति की थी और गांव में सती हुई, इस वजह से गांव का नाम उसी दिन से तेलीनसत्ती पड़ा. गांव में ही भानुमति की याद में एक मंदिर बनाया गया है. इस मंदिर को तेलीनसत्ती माता का मंदिर कहा जाता है. इस मंदिर में ग्रामीण सुबह शाम पूजा अर्चना करते हैं. खास बात यह है कि यहां पर महिलाओं का आना प्रतिबंधित है. ग्रामीण बताते हैं कि भानुमति बगैर शादी हुए सती हुई थी, इस वजह से शादीशुदा महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया है.

HOLI 2025
धमतरी के इस गांव में नहीं जलाते होलिका दहन (ETV Bharat Chhattisgarh)

तेली जाति की भानुमति के सती होने की वजह से ही इस गांव का नाम तेलीनसत्ती पड़ा है. हमारे बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि यह 12वीं शताब्दी की बात है. हमने बुजुर्गों से सुना. हमारे बुजुर्गों ने अपने बुजुर्गों से यह कहानी सुनी.लगातार परंपरा निभा रहे हैं. हमारे गांव में चिता नहीं जलती है-देवलाल सिन्हा, ग्रामीण

"गांव में नहीं होता अंतिम संस्कार": ग्रामीण कहते हैं कि हमारे बुजुर्ग यह भी बताते हैं कि मौत के बाद भानुमति ग्रामीणों के सपने में आती और दाह संस्कार करने से मना करती थी. ऐसा नहीं करने पर गंभीर परिणाम भुगतने की बात भी कहती थी. यही वजह है कि इस गांव में 12वीं शताब्दी से कोई दाह संस्कार नहीं होता. गांव में किसी की मौत होने पर पड़ोस के गांव में ले जाकर अंतिम संस्कार किया जाता है.

गांव में होलिका दहन नहीं करते हैं, यहां चिता भी नहीं जलाते हैं-पुनिया बाई, ग्रामीण

होली नहीं जलाते हैं, रंग गुलाल बस खेलते हैं. यहां दाह संस्कार भी नहीं होता, दूसरे गांव में अंतिम संस्कार करते हैं-हरीश राम, ग्रामीण

दशहरा में रावण नहीं जलाते: खास बात यह भी है कि तेलीनसत्ती गांव में दशहरा में रावण नहीं जलाया जाता. ग्रामीण कहते हैं कि ''परंपरा का पालन नहीं करने पर ग्रामीणों को विपत्ति का सामना करना पड़ता है.''

परंपरा का निर्वाह करने की हिदायत देते हैं बुजुर्ग-इस परंपरा का निर्वाह करने की वजह से अब तक हजारों टन लकड़ी स्वाहा होने से बच गई है. गांव की आबोहवा भी प्रदूषण से बची हुई है. लोगों का कहना है कि इस परंपरा की जानकारी गांव के बुजुर्गों ने नई पीढ़ी को दी है. वो इस परंपरा को कभी न तोड़ने की हिदायत भी देते हैं.

तेलीनसत्ती गांव में नियम है कि किसी भी प्रकार का दाह संस्कार न करें, अन्यथा आपदाओं का सामना करना पड़ेगा. इस गांव में सिर्फ होली ही नहीं, बल्कि दशहरा में रावण नहीं जलाया जाता. यहां कोई चिता भी नहीं जलाई जाती है. गांव में किसी के निधन पर उसका अंतिम संस्कार गांव से बाहर किया जाता है. ये बातें इस दौर में अविश्वसनीय, अकल्पनीय लग सकती हैं, लेकिन परंपरा आज भी निभाई जा रही है.

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Last Updated : March 15, 2025 at 1:36 PM IST
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