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गहलोत और विधानसभा अध्यक्ष आमने-सामने, देवनानी बोले-संवैधानिक पद की कार्यशैली पर सवाल उठाना परंपराओं के विपरीत - DEVNANI ON GEHLOT STATEMENT

पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत की ओर से विधानसभा अध्यक्ष को लेकर दिए बयान को स्पीकर वासुदेव देवनानी ने संवैधानिक पद की परंपराओं के विपरीत बताया.

assembly speaker Vasudev Devnani
विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी (ETV Bharat Jaipur)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : March 21, 2025 at 10:38 PM IST

4 Min Read

जयपुर: पूर्व सीएम अशोक गहलोत और विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी आमने-सामने हो गए हैं. एक दिन पहले पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत ने विधानसभा अध्यक्ष की कार्यशैली पर सवाल उठाए, तो अब स्वयं देवनानी ने पलटवार किया. देवनानी ने शुक्रवार को बयान जारी कर गहलोत के बयान को अनुचित बताया. उन्होंने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष जैसे संवैधानिक पद की कार्यशैली पर सवाल उठाना संवैधानिक परंपराओं के विपरीत है. सदन में प्रतिपक्ष के सदस्यों को बोलने का अधिक अवसर दिया. प्रतिपक्ष सदस्यों की हठधर्मिता से ही उनका निलंबन हुआ.

परंपराओं व मर्यादाओं के विपरीत: देवनानी ने कहा कि विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ‌की ओर से उनके संदर्भ में मीडिया में दिया गया बयान एकदम निरर्थक और संवैधानिक परंपराओं और मर्यादाओं के विपरीत है. उन्होंने कहा कि अच्छा होता यदि गहलोत अपने दल के सदस्यों को सदन की मर्यादाओं में रहने, परंपराओं का पालन करने के साथ स्पीकर का सम्मान करने और अनर्गल टिप्पणी नहीं करने की नसीहत देते. देवनानी ने कहा कि उनके द्वारा प्रतिपक्ष को सदन में दिए गए धरने के दौरान अनेक बार समझाइस के प्रयास किए. नेता प्रतिपक्ष को अपने कक्ष में बुलाकर बातचीत की. प्रतिपक्ष के न समझने, अमर्यादित व्यवहार और उनकी हठधर्मिता के कारण ही प्रतिपक्ष के सदस्यों का उन्हें निलंबन करना पड़ा.

पढ़ें: गहलोत ने विधानसभा अध्यक्ष की कार्यशैली पर उठाए सवाल, बोले- बिना विपक्ष के सदन कैसे चला सकते हैं? - EX CHIEF MINISTER ASHOK GEHLOT

देवनानी ने कहा कि वो संवैधानिक पद पर रहते हुए सदैव बिना किसी पक्षपात के सदन में नियमों और मर्यादाओं का निर्वहन करते हुए सदन की परंपराओं को आगे बढ़ाया है. प्रतिपक्ष को सदन में बोलने के अधिक अवसर प्रदान किए हैं. प्रतिपक्ष को सदन में पूरा महत्व देते हुए हर मुद्दे पर चर्चा भी की है.

पढ़ें: पटेल का पलटवार : गहलोत से पूछा- जूली और पायलट को क्यों रोका? लाउडस्पीकर विधेयक को लेकर कही ये बात - JOGARAM ON GEHLOT

कांग्रेस को ज्यादा मिला बोलने का अवसर: देवनानी ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत के द्वारा विधानसभा अध्यक्ष जैसे संवैधानिक पद की कार्यशैली पर सवाल उठाया जाना भी सदन की परंपराओं और मर्यादाओं के प्रतिकूल है. उन्होंने कहा कि सोलहवीं राजस्थान विधानसभा के तृतीय सत्र में आठ दिवस में 17 अनुदान मांगों पर हुई चर्चा में भारतीय जनता पार्टी के विधायकों को 161 और इंडियन नेशनल कांग्रेस के विधायकों को 162 बार सदन में बोलने का अवसर दिया गया. विधानसभा में प्रतिपक्ष के सदस्यों को अधिक बोलने का मौका देना पहली बार ही हुआ है. वे प्रतिपक्ष को न केवल पूरे अवसर देते हैं बल्कि उनके हर अमर्यादित कदम पर भी बड़ा दिल दिखाते हुए बोलने के पूरे अवसर देते हैं.

पढ़ें: जयपुर : गहलोत बोले-भाजपा सरकार में ठगा सा महसूस कर रहा किसान - GEHLOT ON FARMERS ISSUE

देवनानी ने कहा कि कॉन्स्टीटयूशन क्लब ऑफ राजस्थान की विश्व स्तरीय सुविधाओं के शुभारम्भ के मौके पर भी प्रतिपक्ष ‌द्वारा उठाया गया सवाल निरर्थक था. इस मौके पर भी उनके द्वारा प्रतिपक्ष के नेताओं से बात की गई और क्लब में सुविधाओं को तैयार करवाने और निरीक्षण करने के हर मौके पर नेता प्रतिपक्ष को साथ रखा. देवनानी ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष का पद गरिमामय और दलगत राजनीति से ऊपर होता है. ऐसा वक्तव्य विधानसभा की गरिमा और परंपराओं के विपरीत है. देवनानी ने कहा है कि विधानसभा का यह सदन लोकतंत्र का पवित्र स्थल है. इसकी गरिमा को बनाए रखने का दायित्व सता पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों का होता है. उन्होंने अपने कार्यकाल की शुरुआत में सदन के सत्र के आरम्भ से पहले सर्वदलीय बैठक के बुलाए जाने की शुरुआत की.

जयपुर: पूर्व सीएम अशोक गहलोत और विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी आमने-सामने हो गए हैं. एक दिन पहले पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत ने विधानसभा अध्यक्ष की कार्यशैली पर सवाल उठाए, तो अब स्वयं देवनानी ने पलटवार किया. देवनानी ने शुक्रवार को बयान जारी कर गहलोत के बयान को अनुचित बताया. उन्होंने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष जैसे संवैधानिक पद की कार्यशैली पर सवाल उठाना संवैधानिक परंपराओं के विपरीत है. सदन में प्रतिपक्ष के सदस्यों को बोलने का अधिक अवसर दिया. प्रतिपक्ष सदस्यों की हठधर्मिता से ही उनका निलंबन हुआ.

परंपराओं व मर्यादाओं के विपरीत: देवनानी ने कहा कि विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ‌की ओर से उनके संदर्भ में मीडिया में दिया गया बयान एकदम निरर्थक और संवैधानिक परंपराओं और मर्यादाओं के विपरीत है. उन्होंने कहा कि अच्छा होता यदि गहलोत अपने दल के सदस्यों को सदन की मर्यादाओं में रहने, परंपराओं का पालन करने के साथ स्पीकर का सम्मान करने और अनर्गल टिप्पणी नहीं करने की नसीहत देते. देवनानी ने कहा कि उनके द्वारा प्रतिपक्ष को सदन में दिए गए धरने के दौरान अनेक बार समझाइस के प्रयास किए. नेता प्रतिपक्ष को अपने कक्ष में बुलाकर बातचीत की. प्रतिपक्ष के न समझने, अमर्यादित व्यवहार और उनकी हठधर्मिता के कारण ही प्रतिपक्ष के सदस्यों का उन्हें निलंबन करना पड़ा.

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देवनानी ने कहा कि वो संवैधानिक पद पर रहते हुए सदैव बिना किसी पक्षपात के सदन में नियमों और मर्यादाओं का निर्वहन करते हुए सदन की परंपराओं को आगे बढ़ाया है. प्रतिपक्ष को सदन में बोलने के अधिक अवसर प्रदान किए हैं. प्रतिपक्ष को सदन में पूरा महत्व देते हुए हर मुद्दे पर चर्चा भी की है.

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कांग्रेस को ज्यादा मिला बोलने का अवसर: देवनानी ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत के द्वारा विधानसभा अध्यक्ष जैसे संवैधानिक पद की कार्यशैली पर सवाल उठाया जाना भी सदन की परंपराओं और मर्यादाओं के प्रतिकूल है. उन्होंने कहा कि सोलहवीं राजस्थान विधानसभा के तृतीय सत्र में आठ दिवस में 17 अनुदान मांगों पर हुई चर्चा में भारतीय जनता पार्टी के विधायकों को 161 और इंडियन नेशनल कांग्रेस के विधायकों को 162 बार सदन में बोलने का अवसर दिया गया. विधानसभा में प्रतिपक्ष के सदस्यों को अधिक बोलने का मौका देना पहली बार ही हुआ है. वे प्रतिपक्ष को न केवल पूरे अवसर देते हैं बल्कि उनके हर अमर्यादित कदम पर भी बड़ा दिल दिखाते हुए बोलने के पूरे अवसर देते हैं.

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देवनानी ने कहा कि कॉन्स्टीटयूशन क्लब ऑफ राजस्थान की विश्व स्तरीय सुविधाओं के शुभारम्भ के मौके पर भी प्रतिपक्ष ‌द्वारा उठाया गया सवाल निरर्थक था. इस मौके पर भी उनके द्वारा प्रतिपक्ष के नेताओं से बात की गई और क्लब में सुविधाओं को तैयार करवाने और निरीक्षण करने के हर मौके पर नेता प्रतिपक्ष को साथ रखा. देवनानी ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष का पद गरिमामय और दलगत राजनीति से ऊपर होता है. ऐसा वक्तव्य विधानसभा की गरिमा और परंपराओं के विपरीत है. देवनानी ने कहा है कि विधानसभा का यह सदन लोकतंत्र का पवित्र स्थल है. इसकी गरिमा को बनाए रखने का दायित्व सता पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों का होता है. उन्होंने अपने कार्यकाल की शुरुआत में सदन के सत्र के आरम्भ से पहले सर्वदलीय बैठक के बुलाए जाने की शुरुआत की.

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