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पहाड़ी राज्यों में जलवायु परिवर्तन से निपटना बड़ी चुनौती, बनाई जाए विशेष नीति: मुकेश अग्निहोत्री - INDIA 2047 WATER SECURE NATION

दूसरे ऑल इंडिया स्टेट वाटर मिनिस्टर्स कॉन्फ्रेंस में उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने जल संरक्षण के लिए दिए अपने सुझाव.

2nd All India State Water Ministers Conference 2025
2nd ऑल इंडिया स्टेट वाटर मिनिस्टर्स कॉन्फ्रेंस 2025 (Social Media)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : February 19, 2025 at 8:56 AM IST

4 Min Read

शिमला: राजस्थान के उदयपुर में आयोजित दूसरे ऑल इंडिया स्टेट वाटर मिनिस्टर्स कॉन्फ्रेंस में हिमाचल प्रदेश के उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री भी शामिल हुए. डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री ने कॉन्फ्रेंस में जल संरक्षण के लिए दीर्घकालिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर अपनी बात रखी. ‘इंडिया@2047- जल सुरक्षित राष्ट्र’ विषय पर उन्होंने जल संकट, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और नवाचार आधारित समाधान की आवश्यकता को रेखांकित किया. जिससे जल प्रबंधन को अधिक स्थायी बनाया जा सके.

सम्मेलन के पहले दिन उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने कहा, "जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने के लिए पहाड़ी राज्यों के लिए विशेष नीति बननी चाहिए. असमय बारिश और कम बर्फबारी के कारण जल स्रोतों का जल स्तर लगातार घटता जा रहा है. हिमालयी ग्लेशियर प्रति दशक 20-30 मीटर की दर से पिघल रहे हैं. जिससे नदी प्रवाह में अनिश्चितता बढ़ रही है और जल संकट गहरा हो रहा है. इससे पीने के पानी, सिंचाई और जलविद्युत उत्पादन पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है."

हिमाचल को विशेष पैकेज दे केंद्र

डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि हमें पारंपरिक जल स्रोतों के संरक्षण के साथ-साथ आधुनिक तकनीक, नवाचारों और विकल्पों पर विचार करना होगा. हिमाचल का 65 फीसदी हिस्सा वन क्षेत्र के तहत आता है. जो केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में है, जिससे विकास परियोजनाओं के लिए भूमि की उपलब्धता सीमित हो जाती है. वनों के संरक्षण के रूप में हिमाचल का जल संरक्षण, पर्यावरण और पारिस्थितिकी को बचाने में बड़ा योगदान है. इसकी एवज में केन्द्र से हिमाचल को विशेष पैकेज दिया जाना चाहिए, जो पहाड़ी क्षेत्रों की भौगोलिक और दुर्गम परिस्थितियों के अनुकूल हो. उन्होंने कहा कि हमने हर घर नल तो पहुंचा दिए हैं, लेकिन हर नल में जल पहुंचाना बड़ी चुनौती है. पानी की कमी को पूरा करने के लिए हमें वर्षा जल संग्रहण और जल स्रोत पुनर्भरण संरचनाओं को प्रोत्साहित करना होगा. इसके लिए पहाड़ी राज्यों के लिए विशेष केन्द्रीय सहयोग मिलना चाहिए.

अधूरी योजनाओं को पूरी करने के लिए मांगे एक हजार करोड़

उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने पहाड़ी राज्यों के लिए दिये जाने वाले केन्द्रीय अनुदान में निर्धारित मापदंडों को लचीला करने का भी आग्रह किया. उन्होंने कहा कि देश भर के लिए समान रूप से तैयार की गई नीति को अमल में लाना पहाड़ी राज्यों के लिए संभव नहीं हो पाता है. मैदानी क्षेत्रों के मुकाबले पहाड़ी राज्यों की जटिल भौगोलिक बनावट और दुर्गम परिस्थितियों में निर्माण लागत और अन्य व्यय ज्यादा होता है. डिप्टी सीएम ने जल जीवन मिशन के तहत अधूरी पड़ी लगभग एक हजार पेयजल आपूर्ति योजनाओं को पूरा करने के लिए 2000 करोड़ रुपये की मांग की. उन्होंने उच्च पर्वतीय राज्यों के लिए एक विशेष फंडिंग विंडो बनाने का प्रस्ताव रखा. जिससे हिमाचल के किन्नौर, लाहौल-स्पीति और चंबा के जनजातीय और ठंडे क्षेत्रों में 12 महीने निर्बाध जलापूर्ति सुनिश्चित करने के लिए एंटी-फ्रीज जल आपूर्ति योजनाओं का निर्माण किया जा सके. जिनमें इन्सुलेटेड पाइपलाइन, हीटेड टैप सिस्टम और सौर-चालित पंप शामिल हैं.

सूखे से खराब पड़े 2 हजार हैंडपंप

डिप्टी सीएम ने हिमाचल की तरफ से बर्फ एवं जल संरक्षण के लिए 1269.29 करोड़ रुपये और सूखे और खराब पड़े करीब 2000 हैंडपंपों, ट्यूबवेलों के जरिए ‘भूजल के पुनर्भरण’ के लिए तैयार की गई एक विस्तृत परियोजना को अमल में लाने के लिए भी केन्द्र सरकार से वित्त पोषण की मांग की. उप मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमाचल में 90 फीसदी से ज्यादा ग्रामीण आबादी है. जिनमें से 67 फीसदी आबादी की आजीविका कृषि, बागवानी और सब्जी उत्पादन पर निर्भर है. आधुनिक खेती में सिंचाई की जरूरतों को देखते हुए सिंचाई योजनाओं को बढ़ावा देना पड़ेगा. उन्होंने केंद्रीय स्वीकृति के लिए लंबित पड़ी पीएमकेएसवाई-हर खेत को पानी और पीएमकेएसवाई और एआईबीपी के तहत प्रस्तावित नई सतही लघु सिंचाई और मध्यम सिंचाई परियोजनाओं को जल्द से जल्द मंजूरी देने का भी आग्रह किया.

अलग मापदंड और वित्तीय सहायता की मांग

उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने बताया कि वर्तमान योजनाएं जैसे ‘जल जीवन मिशन और ‘अमृत’ इन क्षेत्रों की जलापूर्ति और सीवरेज आवश्यकताओं को पूरी तरह कवर नहीं कर पाती है. उन्होंने उपनगरीय इलाकों में जल और स्वच्छता की सुविधाएं मुहैया करवाने व इन क्षेत्रों में व्यापक सीवरेज और स्वच्छता सेवाएं बढ़ाने के लिए अलग मापदंड और समर्पित वित्तीय सहायता की मांग की.

ये भी पढ़ें: हिमाचल में ट्रक और टैक्सी मालिकों को बड़ी राहत, सरकार ने इतनी फीसदी छूट के साथ बढ़ाई पेनल्टी जमा कराने की डेट

शिमला: राजस्थान के उदयपुर में आयोजित दूसरे ऑल इंडिया स्टेट वाटर मिनिस्टर्स कॉन्फ्रेंस में हिमाचल प्रदेश के उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री भी शामिल हुए. डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री ने कॉन्फ्रेंस में जल संरक्षण के लिए दीर्घकालिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर अपनी बात रखी. ‘इंडिया@2047- जल सुरक्षित राष्ट्र’ विषय पर उन्होंने जल संकट, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और नवाचार आधारित समाधान की आवश्यकता को रेखांकित किया. जिससे जल प्रबंधन को अधिक स्थायी बनाया जा सके.

सम्मेलन के पहले दिन उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने कहा, "जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने के लिए पहाड़ी राज्यों के लिए विशेष नीति बननी चाहिए. असमय बारिश और कम बर्फबारी के कारण जल स्रोतों का जल स्तर लगातार घटता जा रहा है. हिमालयी ग्लेशियर प्रति दशक 20-30 मीटर की दर से पिघल रहे हैं. जिससे नदी प्रवाह में अनिश्चितता बढ़ रही है और जल संकट गहरा हो रहा है. इससे पीने के पानी, सिंचाई और जलविद्युत उत्पादन पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है."

हिमाचल को विशेष पैकेज दे केंद्र

डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि हमें पारंपरिक जल स्रोतों के संरक्षण के साथ-साथ आधुनिक तकनीक, नवाचारों और विकल्पों पर विचार करना होगा. हिमाचल का 65 फीसदी हिस्सा वन क्षेत्र के तहत आता है. जो केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में है, जिससे विकास परियोजनाओं के लिए भूमि की उपलब्धता सीमित हो जाती है. वनों के संरक्षण के रूप में हिमाचल का जल संरक्षण, पर्यावरण और पारिस्थितिकी को बचाने में बड़ा योगदान है. इसकी एवज में केन्द्र से हिमाचल को विशेष पैकेज दिया जाना चाहिए, जो पहाड़ी क्षेत्रों की भौगोलिक और दुर्गम परिस्थितियों के अनुकूल हो. उन्होंने कहा कि हमने हर घर नल तो पहुंचा दिए हैं, लेकिन हर नल में जल पहुंचाना बड़ी चुनौती है. पानी की कमी को पूरा करने के लिए हमें वर्षा जल संग्रहण और जल स्रोत पुनर्भरण संरचनाओं को प्रोत्साहित करना होगा. इसके लिए पहाड़ी राज्यों के लिए विशेष केन्द्रीय सहयोग मिलना चाहिए.

अधूरी योजनाओं को पूरी करने के लिए मांगे एक हजार करोड़

उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने पहाड़ी राज्यों के लिए दिये जाने वाले केन्द्रीय अनुदान में निर्धारित मापदंडों को लचीला करने का भी आग्रह किया. उन्होंने कहा कि देश भर के लिए समान रूप से तैयार की गई नीति को अमल में लाना पहाड़ी राज्यों के लिए संभव नहीं हो पाता है. मैदानी क्षेत्रों के मुकाबले पहाड़ी राज्यों की जटिल भौगोलिक बनावट और दुर्गम परिस्थितियों में निर्माण लागत और अन्य व्यय ज्यादा होता है. डिप्टी सीएम ने जल जीवन मिशन के तहत अधूरी पड़ी लगभग एक हजार पेयजल आपूर्ति योजनाओं को पूरा करने के लिए 2000 करोड़ रुपये की मांग की. उन्होंने उच्च पर्वतीय राज्यों के लिए एक विशेष फंडिंग विंडो बनाने का प्रस्ताव रखा. जिससे हिमाचल के किन्नौर, लाहौल-स्पीति और चंबा के जनजातीय और ठंडे क्षेत्रों में 12 महीने निर्बाध जलापूर्ति सुनिश्चित करने के लिए एंटी-फ्रीज जल आपूर्ति योजनाओं का निर्माण किया जा सके. जिनमें इन्सुलेटेड पाइपलाइन, हीटेड टैप सिस्टम और सौर-चालित पंप शामिल हैं.

सूखे से खराब पड़े 2 हजार हैंडपंप

डिप्टी सीएम ने हिमाचल की तरफ से बर्फ एवं जल संरक्षण के लिए 1269.29 करोड़ रुपये और सूखे और खराब पड़े करीब 2000 हैंडपंपों, ट्यूबवेलों के जरिए ‘भूजल के पुनर्भरण’ के लिए तैयार की गई एक विस्तृत परियोजना को अमल में लाने के लिए भी केन्द्र सरकार से वित्त पोषण की मांग की. उप मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमाचल में 90 फीसदी से ज्यादा ग्रामीण आबादी है. जिनमें से 67 फीसदी आबादी की आजीविका कृषि, बागवानी और सब्जी उत्पादन पर निर्भर है. आधुनिक खेती में सिंचाई की जरूरतों को देखते हुए सिंचाई योजनाओं को बढ़ावा देना पड़ेगा. उन्होंने केंद्रीय स्वीकृति के लिए लंबित पड़ी पीएमकेएसवाई-हर खेत को पानी और पीएमकेएसवाई और एआईबीपी के तहत प्रस्तावित नई सतही लघु सिंचाई और मध्यम सिंचाई परियोजनाओं को जल्द से जल्द मंजूरी देने का भी आग्रह किया.

अलग मापदंड और वित्तीय सहायता की मांग

उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने बताया कि वर्तमान योजनाएं जैसे ‘जल जीवन मिशन और ‘अमृत’ इन क्षेत्रों की जलापूर्ति और सीवरेज आवश्यकताओं को पूरी तरह कवर नहीं कर पाती है. उन्होंने उपनगरीय इलाकों में जल और स्वच्छता की सुविधाएं मुहैया करवाने व इन क्षेत्रों में व्यापक सीवरेज और स्वच्छता सेवाएं बढ़ाने के लिए अलग मापदंड और समर्पित वित्तीय सहायता की मांग की.

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