जयपुर: राजस्थान हाईकोर्ट में मंगलवार को पूर्व मंत्री शांति धारीवाल से जुड़े चर्चित एकल पट्टा मामले में सुप्रीम कोर्ट में प्रार्थी रहे अशोक पाठक को पक्षकार बनाए जाने के मुद्दे पर बहस पूरी हो गई. बहस पूरी होने पर सीजे एमएम श्रीवास्तव ने फैसला बाद में देना तय किया. वहीं अदालत अब बुधवार को राज्य सरकार की रिवीजन याचिका में दोनों पक्षों को सुनेगी.
मामले की सुनवाई के दौरान पूर्व मंत्री शांति धारीवाल सहित अन्य के अधिवक्ताओं ने अशोक पाठक को पक्षकार बनाए जाने का विरोध किया. उनकी ओर से कहा गया कि आपराधिक मामले में किसी तीसरे पक्ष को पक्षकार नहीं बनाया जा सकता. वहीं पाठक की ओर से अधिवक्ता वागीश सिंह ने कहा कि मामला भ्रष्टाचार से जुड़ा है और यह अपराध किसी व्यक्ति विशेष के प्रति नहीं, बल्कि समाज के खिलाफ होता है. ऐसे में उन्हें मामले में पक्षकार बनने का अधिकार है. इस पर सीजे ने कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अशोक पाठक को सुना है. वहीं अदालत ने इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
दरअसल, राज्य सरकार ने इस मामले में दो अर्जियां दायर की हैं. इनमें कहा है कि ट्रायल कोर्ट के समक्ष दायर क्लोजर रिपोर्ट्स अधूरी व दोषपूर्ण साक्ष्यों पर की गई जांच के आधार पर थी. इसके चलते ही पूर्व मंत्री शांति धारीवाल को क्लीन चिट दी गई थी. इसकी जांच के लिए गठित हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस आरएस राठौड़ की कमेटी ने भी मामले की समीक्षा कर दी रिपोर्ट कई गंभीर खामियां बताई थी. क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने में गंभीर चूक हुई थी. इसमें महत्वपूर्ण दस्तावेजों और ठोस सबूतों की अनदेखी की गई है. वहीं दूसरी अर्जी में कहा गया कि राज्य सरकार पूर्व सरकारी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा वापस लेने के प्रार्थना पत्र को एसीबी कोर्ट की ओर से खारिज करने पर पेश रिवीजन को वापस लेना चाहती है.
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40 लाख के जुर्माने के आदेश पर रोक: राजस्थान हाईकोर्ट ने राजस्थान स्टेट बेवरेज कॉरपोरेशन लिमिटेड (आरएसबीसीएल) और यूनाइटेड स्पिरिट्स लिमिटेड (यूएसएल) के बीच शराब खरीद के भुगतान से जुड़े मामले में कमर्शियल कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें अदालत ने यूएसएल पर 40 लाख रुपए का जुर्माना लगाया था. जस्टिस अवनीश झिंगन और जस्टिस भुवन गोयल की खंडपीठ ने यह आदेश यूएसएल की अपील पर सुनवाई करते हुए दिए. कमर्शियल कोर्ट, द्वितीय ने 40 लाख रुपए का जुर्माना लगाते हुए 20 लाख रुपए की राशि राज्य के समेकित कोष और 20 लाख रुपए रजिस्ट्रार जनरल के जरिए हाईकोर्ट के पक्षकार कल्याण कोष में जमा कराने को कहा था.
अपील में वरिष्ठ अधिवक्ता सुधीर गुप्ता और अधिवक्ता विजय चौधरी ने खंडपीठ को बताया कि कमर्शियल कोर्ट ने आर्बिट्रेटर एक्ट के प्रावधान के क्षेत्राधिकार के परे जाकर यह आदेश दिया है. अदालत ने जो तथ्य रिकॉर्ड पर ही नहीं थे, उसे लेकर आदेश दे दिए. वहीं धारा 34 में जुर्माने का प्रावधान ही नहीं है. ऐसे में कमर्शियल कोर्ट के आदेश को रद्द किया जाए. जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने कमर्शियल कोर्ट के आदेश पर जुर्माने की हद तक रोक लगा दी है. मामले में यूनाइटेड स्पिरिट्स ने आर्बिट्रेटर के समक्ष वाद दायर कर कहा कि आरएसबीसीएल ने शराब खरीद को लेकर उसके 9.11 करोड़ रुपए का भुगतान रोक लिया है. ऐसे में उसे यह राशि दिलाई जाए. आर्बिट्रेटर ने यूएसएल के पक्ष में निर्णय देते हुए यह राशि लौटाने के आदेश देने के साथ ही आरएसबीसीएल पर 10 लाख रुपए का जुर्माना लगाया था.
इस आदेश को आरएसबीसीएल ने कमर्शियल कोर्ट में चुनौती देते हुए आरोप लगाया कि यूएसएल ने सीमा शुल्क में कमी की जानकारी छुपाई और 13.61 करोड़ रुपए से अधिक का लाभ उठाया. कमर्शियल कोर्ट ने मामले में गत दिनों सुनवाई करते हुए आर्बिट्रेटर के अवार्ड पर रोक लगाते हुए यूएसएल पर 40 लाख रुपए का हर्जाना लगाया था. इसके साथ ही अदालत ने मामले में शराब खरीद घोटाले की आशंका जताते हुए प्रकरण को मुख्य सचिव को भेजा था. अदालत ने कहा था कि मामले की सीएजी से विशेष ऑडिट कराई जाए और आवश्यकता होने पर सीबीआई या एंटी करप्शन ब्यूरो में एफआईआर दर्ज करवा कर जांच करवाई जाए.