गोरखपुर: पं. दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय अपनी स्थापना के 75वें गौरवशाली वर्ष को 'हीरक जयंती' के रूप में मना रहा है. करीब 75 वर्ष पहले आजादी के बाद उत्तर प्रदेश में स्थापित पहले राज्य विश्वविद्यालय गोरखपुर विश्वविद्यालय के नाम से स्थापित हुआ था. 1 मई 1950 को तत्कालीन मुख्यमंत्री पं. गोविंद बल्लभ पंत द्वारा इस विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी. जिसने पूर्वांचल में शिक्षा और शोध के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है.
30 अप्रैल बुधवार को स्थापना दिवस की पूर्व संध्या पर विश्वविद्यालय परिसर में कई आयोजन होने जा रहे हैं. इसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथों यहां दीनदयाल उपाध्याय प्रेक्षागृह और इसके भव्य प्रवेश द्वार की स्थापना होगी. स्टेडियम का भी लोकार्पण किया जाएगा. इस अवसर पर विश्वविद्यालय की ख्याति फैलाने वाले शिक्षकों, विद्यार्थियों को भी सम्मानित किया जाएगा. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और हिमाचल के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला को भी इस आयोजन में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन वह अपनी व्यस्तता की वजह से शामिल नहीं हो पा रहे हैं. हीरक जयंती की आभा में निखरी विश्वविद्यालय की विकास यात्रा को लेकर कुलपति प्रोफेसर पूनम टंडन ने भव्य पोस्टर का विमोचन किया है.

विश्वविद्यालय के दो प्रवेश द्वार: वर्तमान मुख्य द्वार और प्रस्तावित हीरक जयंती द्वार के माध्यम से संस्था की प्रगति और सांस्कृतिक पहचान को सुंदरता से दर्शाया गया है. इस अवसर पर मुख्यमंत्री विश्वविद्यालय की हीरक जयंती को स्मरणीय बनाने के लिए विशेष स्मृति सिक्के और डाक टिकट का भी लोकार्पण करेंगे. मुख्यमंत्री विश्वविद्यालय के सूचना, प्रकाशन एवं जनसंपर्क केंद्र द्वारा निर्मित डॉक्यूमेंट्री एवं थीम सांग का भी लोकार्पण करेंगे. मुख्यमंत्री द्वारा विशेष स्मारिका का विमोचन भी किया जाएगा.
सम्मानित होंगे पुरातन छात्र: सिविल सेवा परीक्षा UPSC 2024 में उत्तीर्ण दो पुरातन छात्रों को भी स्थापना दिवस समारोह में सम्मानित किया जाएगा. इसके अलावा विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व छात्र रामदेव शुक्ल सम्मानित होंगे. रामदेव ने 1959 में हिंदी में परास्नातक प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के साथ स्वर्ण पदक प्राप्त किया था. अंग्रेजी विभाग के पूर्व छात्र (1979-83) नरेंद्र नाथ दुबे को सम्मानित किया जाएगा. वर्तमान में अतिरिक्त मुख्य कार्यपालक अधिकारी गौतमबुद्ध नगर प्रवीण कुमार मिश्र, वंदना त्रिपाठी भी सम्मानित होंगी.
विश्वविद्यालय की स्थापना में 'नींव का पत्थर' है एमपी शिक्षा परिषद: गोरखपुर विश्वविद्यालय के हीरक जयंती समारोह में मुख्यमंत्री की उपस्थिति उनके लिए प्रोटोकॉल से परे निजी तौर पर भी बेहद विशेष होगी. कारण, सीएम योगी जिस गोरक्षपीठ के महंत हैं, उसी पीठ से संचालित महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की भूमिका गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना में ‘नींव के पत्थर’ समान है. महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना 1932 में तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ जी ने की थी. जब गोरखपुर में पहला राज्य विश्वविद्यालय स्थापित करने की योजना सिर्फ विचार मात्र तक सीमित थी, तब महंत दिग्विजयनाथ शिक्षा परिषद के बैनर तले महाराणा प्रताप के नाम पर दो डिग्री कॉलेज (महिला और पुरुष) खोल चुके थे.
ऐसे हुई थी विश्वविद्यालय की स्थापना: इतिहास के प्रोफेसर एवं महाराणा प्रताप महाविद्यालय जंगल धूसढ़ के प्राचार्य डॉ. प्रदीप कुमार राव बताते हैं कि 1947 में आजादी मिलने के बाद सरकार यूपी में एक विश्वविद्यालय स्थापित करने की योजना बना रही थी. इसके लिए सरकार की प्राथमिकता में पश्चिमी उत्तर प्रदेश था. तब महंत दिग्विजयनाथ, भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार और सरदार मजीठिया ने तत्कालीन मुख्यमंत्री से आजादी के बाद का पहला राज्य विश्वविद्यालय गोरखपुर में खोलने की मांग रखी.
विश्वविद्यालय खोलने में तब 50 लाख रुपए या इतनी संपत्ति की दरकार थी. इस समस्या का हल महंत दिग्विजयनाथ ने निकाला. उन्होंने इसके लिए एमपी शिक्षा परिषद के तहत संचालित महाराणा प्रताप डिग्री कॉलेज और महाराणा प्रताप महिला डिग्री कॉलेज को गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए दे दिया. इन दोनों का मूल्यांकन 42 लाख रुपये हुआ. बाकी 8 लाख रुपए कम पड़े तो उसकी व्यवस्था आसपास की रियासतों के राजपरिवारों ने दान देकर की.
तत्कालीन जिला कलेक्टर पं. सुरति नारायण मणि त्रिपाठी विश्वविद्यालय के लिए बनाई गई स्थापना समिति के पदेन अध्यक्ष हुए, ने विश्वविद्यालय के लिए आवश्यक जमीन अधिग्रहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. तत्कालीन जिलाधिकारी सुरति नारायण मणि त्रिपाठी ने भी इसके लिए जोरदार पहल की थी. डॉ. राव बताते हैं कि गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना के दौरान एमपी शिक्षा परिषद की भूमिका इससे भी समझी जा सकती है, कि जब इसकी स्थापना समिति गठित की गई, तब 18 सदस्यीय कमेटी में 11 सदस्य महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद से ही थे.
महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद आज भी गोरखपुर विश्वविद्यालय को अपना ही अंग मानता है. आज भी विश्वविद्यालय के कार्यपरिषद में एमपी शिक्षा परिषद का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित है. हीरक जयंती समारोह में विश्वविद्यालय की तरफ से मुख्यमंत्री के हाथों महंत दिग्विजयनाथ के नाम पर 1500 लोगों की क्षमता वाले प्रेक्षागृह का शिलान्यास कराया जाएगा.