सरगुजा: छत्तीसगढ़ में गुलियन बैरे सिंड्रोम बीमारी का खतरा बढ़ गया है. कोरिया के बाद सरगुजा संभाग में इसके मरीज मिले हैं. सरगुजा स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि यह बीमारी ज्यादा खतरनाक बीमारी है. इस बीमारी में लोग सीधे ही पैरालिसिस के शिकार हो जा रहे हैं, प्रारम्भिक लक्षण इतने सामान्य हैं जिनसे अनुमान नहीं लगया जा सकता की ये सामान्य है या फिर किसी आपदा के संकेत है.
कोरिया में आए सबसे ज्यादा केस: अभी छत्तीसगढ़ सरकार ने इसे लेकर अलर्ट जारी कर दिया है और बीमार लोगों के इलाज के लिए एम्स का चयन किया गया है. कोरिया में इस बीमारी के 5 केस सामने आए हैं. सरगुजा में इस बीमारी के 2 संदिग्ध मरीज मिले हैं. इस बीमारी को लेकर सरगुजा संभाग में स्वास्थ्य विभाग अलर्ट है. छत्तीसगढ़ सरकार ने कोरिया जिले में एपेडेमिक घोषित किया है.
कोरिया जिले में गिलियन बैरे सिंड्रोम के 5 मरीज की पुष्टि हुई थी, जिनमें 3 स्वस्थ होकर घर जा चुके हैं. 2 मरीज वेंटिलेटर पर थे लेकिन उनकी हालत में सुधार होने के बाद अब वे वेंटिलेटर से बाहर आ चुके हैं. आईसीएमआर की टीम ने भी दौरा किया है. स्थिति नियंत्रण में है. सरगुजा जिले में भी 2 मरीजों पर संदेह है, जिनके सैंपल की रिपोर्ट आने पर पता चलेगा कि ये गुलियन बैरे सिंड्रोम बीमारी से ग्रसित हैं या नहीं. -अनिल शुक्ला, संयुक्त संचालक,स्वास्थ्य विभाग
"शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली बनती है दुश्मन": महामारी नियंत्रण कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉक्टर शैलेंद्र गुप्ता से इस बीमारी को लेकर ईटीवी भारत ने खास बात की है. उन्होंने कहा कि गुलियन बैरे सिंड्रोम में हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली ही हमारी दुश्मन बन जाती है. इसका आशय यह है कि रोगों से लड़ने वाले शरीर के सिपाही ही शरीर का नाश करने लगते हैं.
इन्फेक्शन जब एक्टिव रहता है तब ये बीमारी नहीं होती है. जैसे ही मरीज ठीक होता है उसके बाद ये बीमारी चालू होती है. इस बीमारी का इलाज इम्यूनोग्लोबिन है जो काफी महंगा इलाज है. इसकी सुविधा एम्स में है. इसका इलाज स्थानीय स्तर पर नहीं किया जा रहा है. - डॉ शैलेन्द्र गुप्ता , नोडल अधिकारी, महामारी नियंत्रण कार्यक्रम सरगुजा

इस बीमारी के क्या हैं लक्षण?: डॉक्टर शैलेंद्र गुप्ता ने बताया कि इस बीमारी में तंत्रिकाओ का फेल होना शुरू हो जाता है. धीरे धीरे मल्टी ऑर्गन फेलियर जैसी स्थित देखी जाती है. इस बीमारी में नसों की तंतु जो मांसपेशियों के संकुचन के लिए आवश्यक होती है. उन तंतु के विरुद्ध में एंटीबॉडी डेवलप हो जाती है. जिससे ये मांसपेशियां काम करना बंद कर देती है. आरंभ में मरीज को पैर में नीचे से पैरालिसिस होना शुरू होता है, शुरुआत में पैर में जलन, खुजलाहट होती है और धीरे धीरे मरीज को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है.आईसीएमआर की टीम खतरे को भांपते हुए पहले ही सरगुजा का दौरा कर चुकी है. टीम ने यहां के चिकित्सकों को इस बीमारी से निपटने और सावधानी बरतने की ट्रेनिंग दी है.

गुलियन बैरे सिंड्रोम की कैसे होती है जांच?: महामारी नियंत्रण कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ शैलेन्द्र गुप्ता ने ईटीवी भारत को बताया कि इस बीमारी की जांच के लिए एम्स रायपुर से सैम्पल दो जगह आईसीएमआर पुणे और सीएमसी वेल्लोर भेजा जाता है. इसमें लगने वाला एक इंजेक्शन का औसत खर्च एक लाख से ढाई लाख तक का रहता है. औसतन एक लाख की आबादी में एक व्यक्ति को यह बीमारी होने का चांस रहता है.

गुलियन बैरे सिंड्रोम का मोटिलिटी रेट जानिए: डॉक्टर शैलेन्द्र गुप्ता के मुताबिक इस बीमारी में मोटिलिटी रेट 2 से 3 प्रतिशत है. ये बीमारी बच्चो में नहीं होती है, बुजुर्गों को ज्यादा खतरा होता है. यह आश्चर्य की बात है कि यह बीमारी 18 से 45 साल के उम्र वाले लोगो में देखने को मिल रही है.