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भगवान शिव को समर्पित है पिथौरागढ़ का थल केदार मंदिर, सीएम धामी ने वीडियो किया शेयर - THAL KEDAR TEMPLE PITHORAGARH

पिथौरागढ़ का थल केदार मंदिर 2,500 मीटर की ऊंचाई पर है, चंद वंश के दौरान हुई थी स्थापन

THAL KEDAR TEMPLE PITHORAGARH
थल केदार मंदिर पिथौरागढ़ (Photo courtesy @CMDhami Social Media)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : March 3, 2025 at 10:58 AM IST

4 Min Read

पिथौरागढ़: देवभूमि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में धार्मिक पर्यटन के लिहाज से बहुत कुछ है. यहां ध्वज मंदिर, कोटगारी देवी मंदिर, मोस्टामानू मंदिर, अर्जुनेश्वर मंदिर, पाताल भुवनेश्वर, शिवगुफा, छिपला केदार मंदिर, देव छिपलाकेदार, कामाक्ष्या मंदिर, बेरीनाग के नाग मांदिर और थल केदार मंदिर प्रसिद्ध हैं. सीएम धामी भी इन मंदिरों के भक्त हैं. आज सीएम धामी ने थल केदार मंदिर का वीडियो शेयर किया है.

सीएम धामी ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर पिथौरागढ़ के थल केदार मंदिर का वीडियो शेयर करते हुए लिखा-

'जनपद पिथौरागढ़ में स्थित श्री थल केदार मंदिर भगवान भोलेनाथ को समर्पित है। प्राकृतिक सौंदर्य से आच्छादित यह स्थान हज़ारों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। अपने पिथौरागढ़ भ्रमण के दौरान इस दिव्य मंदिर के दर्शन अवश्य करें।'

आकर्षक है थल केदार मंदिर: थल केदार मंदिर का ये मनमोहक वीडियो देखकर आपके मन में इसके बारे में और अधिक जानने की इच्छा जागी होगी. तो हम आपको बताते हैं, थल केदार मंदिर के बारे में.

ढाई हजार मीटर की ऊंचाई पर धार्मिक यात्रा : उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में 2,500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित थल केदार मंदिर शिव भक्तों और प्रकृति प्रेमियों को आकर्षित करता है. भगवान शिव को समर्पित यह प्राचीन मंदिर आध्यात्मिक, धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व तो रखता ही है, यहां से प्रकृति के ऐसे सुंदर नजारे दिखते हैं कि आप मोहित हो जाएंगे.

चंद वंश के समय हुई मंदिर की स्थापना: ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना 9वीं शताब्दी में चंद वंश के राजा मोरू ने करवाई थी. उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में तिब्बत और नेपाल से लगे पिथौरागढ़ जिले में स्थित ये मंदिर शिव भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है. हर साल महा शिवरात्रि के शुभ अवसर पर थल केदार मंदिर में मेले का आयोजन होता है. इस मेले में भक्तों का तांता लगता है.

थल केदार मंदिर के बारे में ये किंवदंती प्रसिद्ध है: थल केदार मंदिर के बारे में एक किंवदंती भी है. स्थानीय लोगों में सैकड़ों सालों से ये कहानी चली आ रही कि, यहां रहने वाले एक किसान की गाय हर दिन बिना किसी कारण के देर से घर लौटती थी. जब अक्सर ऐसा होने लगा तो, गाय का पीछा करने पर किसान ने देखा कि वो पहाड़ी की चोटी पर प्राकृतिक रूप से बने एक शिवलिंग पर दूध चढ़ाती है. इसके बाद किसान ने ये बात गांव वालों को बताई. गांव वालों ने मिलकर वहां शिव मंदिर की स्थापना की. यही शिव मंदिर थल केदार के नाम से प्रसिद्ध हुआ.

कैसे पहुंचें थल केदार मंदिर? ये मंदिर पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 26 किलोमीटर दूर स्थित है. पिथौरागढ़ से 20 किलोमीटर की दूरी वाहन से तय की जा सकती है. बाकी 6 किलोमीटर की यात्रा हरे-भरे जंगल में ट्रेकिंग करके तय करनी होती है. ओक और देवदार के वृक्षों से लकदक जंगल से चलते हुए पता ही नहीं चलता कि कब थल केदार मंदिर पहुंच गए. तो फिर इंतजार किस बात का है. गर्मियां आ रही हैं. इन दिनों यहां का मौसम मैदान की झुलसाती गर्मियों के मुकाबले कई डिग्री कम होता है. धार्मिक पर्यटन के साथ प्रकृति के बीच समय बिताने का इससे अच्छा स्थान और नहीं मिलेगा. अपना बैक पैक कीजिए और निकल पड़िए उत्तराखंड.
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सीएम धामी ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर पिथौरागढ़ के थल केदार मंदिर का वीडियो शेयर करते हुए लिखा-

'जनपद पिथौरागढ़ में स्थित श्री थल केदार मंदिर भगवान भोलेनाथ को समर्पित है। प्राकृतिक सौंदर्य से आच्छादित यह स्थान हज़ारों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। अपने पिथौरागढ़ भ्रमण के दौरान इस दिव्य मंदिर के दर्शन अवश्य करें।'

आकर्षक है थल केदार मंदिर: थल केदार मंदिर का ये मनमोहक वीडियो देखकर आपके मन में इसके बारे में और अधिक जानने की इच्छा जागी होगी. तो हम आपको बताते हैं, थल केदार मंदिर के बारे में.

ढाई हजार मीटर की ऊंचाई पर धार्मिक यात्रा : उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में 2,500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित थल केदार मंदिर शिव भक्तों और प्रकृति प्रेमियों को आकर्षित करता है. भगवान शिव को समर्पित यह प्राचीन मंदिर आध्यात्मिक, धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व तो रखता ही है, यहां से प्रकृति के ऐसे सुंदर नजारे दिखते हैं कि आप मोहित हो जाएंगे.

चंद वंश के समय हुई मंदिर की स्थापना: ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना 9वीं शताब्दी में चंद वंश के राजा मोरू ने करवाई थी. उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में तिब्बत और नेपाल से लगे पिथौरागढ़ जिले में स्थित ये मंदिर शिव भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है. हर साल महा शिवरात्रि के शुभ अवसर पर थल केदार मंदिर में मेले का आयोजन होता है. इस मेले में भक्तों का तांता लगता है.

थल केदार मंदिर के बारे में ये किंवदंती प्रसिद्ध है: थल केदार मंदिर के बारे में एक किंवदंती भी है. स्थानीय लोगों में सैकड़ों सालों से ये कहानी चली आ रही कि, यहां रहने वाले एक किसान की गाय हर दिन बिना किसी कारण के देर से घर लौटती थी. जब अक्सर ऐसा होने लगा तो, गाय का पीछा करने पर किसान ने देखा कि वो पहाड़ी की चोटी पर प्राकृतिक रूप से बने एक शिवलिंग पर दूध चढ़ाती है. इसके बाद किसान ने ये बात गांव वालों को बताई. गांव वालों ने मिलकर वहां शिव मंदिर की स्थापना की. यही शिव मंदिर थल केदार के नाम से प्रसिद्ध हुआ.

कैसे पहुंचें थल केदार मंदिर? ये मंदिर पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 26 किलोमीटर दूर स्थित है. पिथौरागढ़ से 20 किलोमीटर की दूरी वाहन से तय की जा सकती है. बाकी 6 किलोमीटर की यात्रा हरे-भरे जंगल में ट्रेकिंग करके तय करनी होती है. ओक और देवदार के वृक्षों से लकदक जंगल से चलते हुए पता ही नहीं चलता कि कब थल केदार मंदिर पहुंच गए. तो फिर इंतजार किस बात का है. गर्मियां आ रही हैं. इन दिनों यहां का मौसम मैदान की झुलसाती गर्मियों के मुकाबले कई डिग्री कम होता है. धार्मिक पर्यटन के साथ प्रकृति के बीच समय बिताने का इससे अच्छा स्थान और नहीं मिलेगा. अपना बैक पैक कीजिए और निकल पड़िए उत्तराखंड.
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