पटना: लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने बिहार की राजनीति में आने का फैसला कर लिया है. उनकी पार्टी की तरफ से स्पष्ट संकेत भी मिले हैं कि वह दलितों के लिए रिजर्व सीट की बजाय अनारक्षित सीट से विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं. चिराग पिछले कुछ समय से लगातार इस बात को दोहरा रहे हैं कि वह केंद्र की राजनीति छोड़कर राज्य की सियासत में सक्रिय होना चाहते हैं. उनके फैसले से इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि क्या वह खुद को सीएम फेस के तौर पर प्रोजेक्ट करने की प्लानिंग पर काम कर रहे हैं? अगर ऐसा होता है तो नीतीश कुमार और बीजेपी के अन्य दावेदारों का क्या होगा?
बिहार लौटना चाहते हैं चिराग?: केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने कहा कि राजनीति में आने का उनका मकसद सिर्फ बिहार और बिहारी है. बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट उनकी स्पष्ट विजन है. तीन बार का सांसद बनने के बाद उनको यह अनुभव हुआ है कि दिल्ली में रहकर शायद यह सपना कभी पूरा नहीं हो पाएगा. इसलिए उन्होंने अपनी पार्टी से विधानसभा चुनाव में भागीदारी बढ़ाने की इच्छा जाहिर की है. हालांकि उनका मकसद सिर्फ सत्ता नहीं, बिहार का भविष्य संवारना है.
"मैंने हमेशा कहा है कि राजनीति में आने का मेरा मकसद सिर्फ बिहार और बिहारी है. बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट मेरा विजन है. तीन बार का सांसद बनने के बाद यह अनुभव हुआ है कि दिल्ली में रहकर शायद मेरा यह सपना कभी पूरा नहीं हो पाएगा. इसलिए मैंने पार्टी से इच्छा से जताई है कि अगर विधानसभा चुनाव में मेरी भागीदारी से पार्टी और गठबंधन को मजबूती मिलती है. मेरा मकसद सिर्फ सत्ता नहीं, बिहार का भविष्य है."- चिराग पासवान, अध्यक्ष, एलजेपीआर
मैंने हमेशा कहा है कि मेरा राजनीति में आने का मकसद सिर्फ बिहार और बिहारी हैं। 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' मेरा स्पष्ट विज़न है। मैं चाहता हूं कि बिहार देश के विकसित राज्यों की श्रेणी में खड़ा हो। तीन बार का सांसद बनने के बाद यह अनुभव हुआ है कि दिल्ली में रहकर शायद यह सपना पूरा… pic.twitter.com/71rXKnGAMx
— Lok Janshakti Party (Ramvilas) (@LJP4India) June 2, 2025
आरक्षित नहीं सामान्य सीट से लड़ेंगे चिराग?: केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के जीजा और जमुई से सांसद अरुण भारती ने सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर कर दावा किया कि उनके नेता सामान्य सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. उन्होंने कहा कि हाल ही में पार्टी कार्यकारिणी की बैठक में भी सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास हुआ कि वे आगामी विधानसभा चुनाव में खुद चुनाव लड़ें. साथ ही साथ कार्यकर्ताओं की यह भी भावना है कि इस बार वे किसी आरक्षित सीट से नहीं, बल्कि एक सामान्य सीट से चुनाव लड़ें.

"चिराग पासवान जी एक सामान्य सीट से चुनाव लड़ें ताकि यह संदेश जाए कि वे अब सिर्फ एक वर्ग नहीं, पूरे बिहार का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं. चिराग पासवान आज सिर्फ प्रतिनिधि नहीं, पूरे बिहार की उम्मीद हैं. उनका यह कदम सामाजिक न्याय की राजनीति को एक नई दिशा देगा, जिसमें प्रतिनिधित्व के साथ-साथ सर्वमान्यता की भी लड़ाई लड़ी जाएगी."- अरुण भारती, बिहार प्रभारी, लोजपा (रामविलास)
2020 में चिराग का प्रदर्शन: जनरल सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी और इसी बहाने सीएम पद पर पर दावेदारी के पीछे क्या मकसद है, इस पर बात करने से पहले जानते हैं कि बिहार की सियासत में चिराग कितने मजबूत फैक्टर हैं? चिराग की अगुवाई में लोक जनशक्ति पार्टी ने 135 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था. हालांकि महज एक सीट पर ही जीत मिली, जबकि 9 सीटों पर उनके कैंडिडेट दूसरे स्थान पर रहे. एलजेपी को 5.64 फीसदी वोट मिला था. वहीं चुनाव के बाद मटिहानी से जीते राजकुमार सिंह जेडीयू में शामिल हो गए. उस चुनाव में चिराग फैक्टर के कारण जेडीयू को काफी नुकसान पहुंचा था.

विधानसभा चुनावों में लोजपा की स्थिति: अस्तित्व में आने के बाद लोक जनशक्ति पार्टी ने सबसे पहले 2005 में बिहार का विधानसभा चुनाव लड़ा था. उस साल दो बार चुनाव हुए थे. फरवरी 2005 के चुनाव में शानदार प्रदर्शन करते पार्टी ने 29 सीटों पर जीत हासिल की थी लेकिन अक्टूबर-नवंबर के चुनाव में महज 10 सीटें ही मिल पाई. वहीं 2010 में 3, 2015 में 2 और 2020 के चुनाव में महज एक सीट पर जीत मिली.

लोकसभा चुनावों में लोजपा की स्थिति: लोजपा ने 2004 के लोकसभा चुनाव में 4 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि 2009 में खाता भी नहीं खुला. खुद पार्टी अध्यक्ष रामविलास पासवान भी हाजीपुर सीट से चुनाव हार गए थे. 2014 में एनडीए में आने के बाद पार्टी को 6 सीटों पर जीत मिली थी. 2019 में भी 6 सीटों पर जीत हासिल हुई, वहीं 2024 में 100 फीसदी की स्ट्राइक रेट के साथ 5 सीटों पर कामयाबी मिली.

बिहार की राजनीति में चिराग की 'हैसियत'?: चिराग पासवान के समर्थक भले ही उनको सीएम के सबसे मजबूत दावेदार बताना चाहते हों लेकिन सच्चाई ये भी है कि 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद कभी भी उनकी पार्टी डबल डिजिट तक नहीं पहुंच पाई है. आज की तारीख में उनके पास न तो विधायक है और न ही विधान पार्षद है. लोकसभा के जरूर 5 सांसद हैं लेकिन राज्यसभा में कोई नुमाइंदगी नहीं है. 5-6 फीसदी दलित वोट बैंक के बूते सीएम बनना आसान नहीं है.

क्या चाहते हैं चिराग?: वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय का मानना है कि चिराग पासवान राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं. वह जानते हैं कि राजनीति में कब किस तरीके का बॉल फेंकना चाहिए. बिहार में विधानसभा का चुनाव अब नजदीक है तो चिराग सीट को लेकर एनडीए पर दबाव बनाने के लिए एक राजनीतिक चाल चल रहे हैं. वे कहते हैं कि एनडीए घटक के रूप में लोकसभा चुनाव में बिहार में उनका सबसे अच्छा प्रदर्शन हुआ था. उस प्रदर्शन के आधार पर वह चाहते हैं कि 30 से 35 सीट मिले. यही कारण है कि चिराग पासवान ने बिहार से चुनाव लड़ने की गुगली बॉल फेंकी है.

2020 की तरह फिर से नया प्रयोग?: 2020 विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने अकेले चुनाव लड़ा था. जिसका खामियाजा एनडीए और खासकर जेडीयू को उठाना पड़ा. हालांकि उनको भी बहुत अधिक फायदा नहीं हुआ था. केवल एक सीट पर एलजेपी सिमट गई थी. उस समय यह चर्चा हुई कि चिराग पासवान को बीजेपी ने ही प्लांट किया था. इस बार विधानसभा चुनाव से पहले अचानक फिर से चिराग पासवान बिहार से चुनाव लड़ने की चर्चा कर रहे हैं तो यह संभावना फिर से है कि यह बीजेपी का फिर से प्रयोग हो.
"2020 में जब चिराग ने अकेले लड़ा था, तब चर्चा हुई थी कि इसके पीछे बीजेपी की चाल है. अब एक बार फिर जो चिराग के विधानसभा चुनाव लड़ने की चर्चा शुरू हुई तो यह भी माना जा रहा है कि बीजेपी फिर से कोई नया प्रयोग कर रही है लेकिन यह भी सच है कि राजनीति में चाहे वह एनडीए हो या इंडिया गठबंधन अपनी बात मनवाने के लिए नेता प्रेशर पॉलिटिक्स करते हैं. सीट शेयरिंग में उनकी बातें मानी जाए और मनपसंद सीट मिले, चिराग इसके अपवाद नहीं है."- सुनील पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार

2025 या 2030 की तैयारी?: अरुण पांडेय का मानना है कि 2025 में एनडीए की तरफ से नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी होंगे लेकिन सभी यह मानकर चल रहे हैं कि यह उनका अंतिम मुख्यमंत्रित्व काल है. चिराग पासवान भी यह जान रहे हैं कि बिहार में युवा नेतृत्व ही चुनाव के मैदान में दिखाई देगा. यही कारण है कि चिराग पासवान अपने आपको तेजस्वी यादव के खिलाफ युवा विकल्प के रूप में देख रहे हैं. इसी बहाने वह 2030 के लिए खुद को पेश करने की तैयारी में जुट गए हैं.
"वर्तमान में भले ही बिहार में बीजेपी बड़ी पार्टी हो लेकिन चिराग से बड़ा चेहरा उनकी पार्टी में विकल्प के तौर पर सामने नहीं आ पा रहा है. यही कारण है कि चिराग पासवान 2025 नहीं 2030 बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे हैं. उन्हें लग रहा है कि वह बिहार में मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर बेहतर विकल्प बन सकते हैं."- अरुण पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार

क्या मोदी मंत्रिमंडल से इस्तीफा देंगे?: वरिष्ठ पत्रकार कौशलेंद्र प्रियदर्शी का मानना है कि चिराग पासवान भले ही बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ें लेकिन वह केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा नहीं देंगे. संविधान में यह छूट दी गई है कि कोई लोकसभा का सदस्य या मंत्री बिना मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिए चुनाव लड़ सकता है. वे कहते हैं कि बिहार में पार्टी को स्थापित करने के लिए चिराग पासवान विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहते हैं. हालांकि 2020 में लगभग डेढ़ सौ सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद मात्र एक सीट पर उनको जीत हासिल मिली थी.
"2020 विधानसभा चुनाव में एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़े थे. इस बार चिराग पासवान एनडीए के साथ रहकर बिहार में पार्टी के जनाधार को मजबूत करने के लिए वह एक मैसेज देने का प्रयास कर रहे हैं कि उनकी राजनीति का मूल उद्देश्य बिहार ही है. यदि विधानसभा का चुनाव चिराग पासवान जीत भी जाते हैं तो वह केंद्रीय मंत्रिमंडल में बने रहेंगे और विधायक पद से ही इस्तीफा देना बेहतर समझेंगे."- कौशलेंद्र प्रियदर्शी, वरिष्ठ पत्रकार

सामान्य सीट से क्यों लड़ेंगे चिराग?: इस बारे में एलजेपीआर प्रवक्ता कहते हैं कि सामान्य सीट से चुनाव लड़ने का मकसद यह है कि जब भी उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष रिजर्व सीट से चुनाव लड़ते हैं तो लोग कहते हैं कि यह केवल कास्ट की पॉलिटिक्स करते हैं. एक खास जाति एवं वर्ग के नेता के रूप में उनको पेश किया जाता है. चिराग पासवान ने बिहार की राजनीति में अपने आप को सभी वर्गों के नेता के रूप में स्थापित किया है. यही कारण है कि पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में उनको सामान्य सीट से चुनाव लड़ाने का प्रस्ताव पारित हुआ है.
"चिराग पासवान जी ने बिहार की राजनीति में अपने आप को सभी वर्गों के नेता के रूप में अपने आप को स्थापित किया है. यही कारण है कि पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी में चिराग पासवान को सामान्य सीट से चुनाव लड़ाने का प्रस्ताव पारित हुआ है. जब उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष ने ही स्पष्ट कर दिया है कि वह मुख्यमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं और बिहार में एनडीए की सरकार बने. मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार फिर से सत्ता में आएं, यह उनकी पार्टी का मुख्य मकसद है."- राजेश भट्ट, प्रवक्ता, लोजपा (रामविलास)

प्रयोग के पीछे बीजेपी की चाल?: इस सवाल पर एलजेपीआर प्रवक्ता राजेश भट्ट का कहना है कि उनकी पार्टी किसी की 'बी' टीम नहीं है. वह कहते हैं कि चिराग पासवान एनडीए के मजबूत घटक हैं और वफादारी के साथ एनडीए में हैं. उन्होंने दावा किया कि उनके नेता की स्वीकारिता एनडीए में है, उन्होंने पद और प्रतिष्ठा को बचपन से देखा है. एनडीए के लोग भी एलजेपीआर चीफ की ताकत को पहचानते हैं.

क्या बोली बीजेपी?: बिहार बीजेपी के प्रवक्ता दानिश इकबाल का मानना है कि किसी भी पार्टी के नेता को चुनाव लड़ने का अधिकार है और सभी नेता अपनी रणनीति के तहत ही चुनावी मैदान में उतरते हैं. वे कहते हैं कि लोजपा की तरफ से बयान आया है कि चिराग पासवान चुनाव लड़ सकते हैं और उन्होंने भी स्पष्ट किया है कि वह क्यों चुनाव लड़ना चाहते हैं. चिराग पासवान अपनी पार्टी के सबसे बड़े नेता है और पार्टी के फेस हैं.

"चिराग पासवान में स्पष्ट कर दिया है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही बिहार विधानसभा का चुनाव होगा. बीजेपी का भी मानना है कि बिहार में मुख्यमंत्री पद के लिए कोई वैकेंसी नहीं है. चिराग पासवान का भी मकसद बिहार में फिर से एनडीए की सरकार बनाने की है. साथ ही अधिक से अधिक लोजपा प्रत्याशियों की जीत सुनिश्चित करना है. इसलिए वह विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहते हैं."- दानिश इकबाल, प्रवक्ता, बिहार बीजेपी
जेडीयू को भी आपत्ति नहीं: जेडीयू प्रवक्ता अभिषेक झा ने भी कहा कि हर एक दल के कार्यकर्ताओं की इच्छा होती है कि उनकी पार्टी के नेता सर्वोच्च पद पर बैठें, इसमें कोई गलत बात नहीं है. उन्होंने कहा कि पहले ही एनडीए की तरफ से यह स्पष्ट कर दिया गया है कि यहां मुख्यमंत्री पद की कोई वैकेंसी नहीं है. इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के मजबूत नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाएगा. इसलिए कहीं कोई कन्फ्यूजन जैसी कोई बात नहीं है.

"चिराग पासवान के विधानसभा चुनाव लड़ने की चर्चा हो रही है, इसमें कोई आपत्ति नहीं है. यह लोग जनशक्ति पार्टी और एनडीए गठबंधन की मजबूती के लिए अच्छा होगा. इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के मजबूत नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाएगा. कुछ लोग गलत नॉरेटिव गढ़ने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन जहां नीतीश जी का नेतृत्व हो, वहां सारे इक्वेशन फेल हो जाते हैं."- अभिषेक झा, प्रवक्ता, जनता दल यूनाइटेड
आरजेडी का एनडीए पर तंज: चिराग पासवान के बिहार की राजनीति में सक्रिय होने के सवाल पर आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी का कहना है कि एनडीए में अभी से ही मुख्यमंत्री के पद को लेकर विवाद शुरू हो गया है. इसीलिए नीतीश कुमार के बाद अब चिराग पासवान भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार हो गए हैं. हालांकि वे कहते हैं कि कोई कुछ भी कर ले लेकिन बिहार की जनता तेजस्वी यादव को सीएम के रूप में देखना चाहती है.

"चिराग पासवान को भी लग रहा है कि एनडीए के अंदर उनके पार्टी की उपेक्षा हो रही है. यही कारण है कि चिराग पासवान और बिहार की राजनीति में सक्रिय होने का मन बना लिए हैं लेकिन हकीकत यह है कि बिहार की जनता तेजस्वी प्रसाद यादव के नेतृत्व में सरकार बनाने को आतुर है."- मृत्युंजय तिवारी, प्रवक्ता, राष्ट्रीय जनता दल
कितना आसान होगा चिराग के लिए चेहरा बनना? इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार सुनील पांडे कहते हैं कि चिराग पासवान बिहार की राजनीति के भविष्य हैं लेकिन उनको कॉस्मेटिक पॉलिटिक्स से बाहर निकलना पड़ेगा. चिराग पासवान को राजनीति विरासत में मिली है. उनके पिताजी रामविलास पासवान ने समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने का प्रयास किया. यही कारण है कि उन्होंने अपनी पार्टी में प्रदेश की कमान हमेशा सवर्ण नेताओं को दी. अब वह पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए उनके अधूरे सपने को सीएम बनकर पूरा करना चाहते हैं.

तेजस्वी के सामने विकल्प बनना चाहते हैं चिराग: वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का मानना है कि बिहार की राजनीति में युवाओं का दौर शुरू हो गया है. 2020 से ही महागठबंधन तेजस्वी यादव के नेतृत्व में चुनाव की तैयारी कर चुका है. एनडीए की तरफ से चिराग पासवान युवा के रूप में एक बेहतर विकल्प बन सकते हैं, क्योंकि इंडिया में चिराग पासवान के कद का कोई युवा चेहरा नजर नहीं आ रहा है. वे कहते हैं, 'चिराग पासवान भी यह समझ रहे हैं कि बिहार की राजनीति में भले ही इस बार के चुनाव में ना सही लेकिन अगले चुनाव में वह तेजस्वी यादव के सामने बेहतर विकल्प बन सकते हैं.'

चिराग पासवान का सफर: 43 वर्षीय चिराग पासवान पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे हैं. दिल्ली में उनकी पढ़ाई-लिखाई हुई है. उन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री ली और साल 2011 में फिल्म 'मिले ना मिले हम' से अपने कैरियर की शुरुआत की. इस फिल्म में उनके साथ कंगना रनौत अभिनेत्री थीं. हालांकि फिल्म नहीं चली और वह राजनीति में आ गए. पिता ने उनको पार्टी के पार्लियामेंट्री बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया. 2014 में जमुई (सुरक्षित) सीट से लोकसभा सांसद बन गए. 2019 में भी उसी सीट से सांसद बने. वहीं 2024 में पिता की पारंपरिक सीट हाजीपुर (सुरक्षित) से चुनाव जीते हैं. फिलहाल वह एलजेपीआर के राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ-साथ मोदी कैबिनेट में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री भी हैं.

बिहार में कौन-कौन बने दलित सीएम?: बिहार में अब तक तीन दलित नेता मुख्यमंत्री बने हैं. 1968 में सबसे पहले भोला पासवान शास्त्री इस पद पर पहुंचे. वह पहली बार मार्च 1968 से जून 1968 तक सीएम बने. दूसरी बार जून 1969 से जुलाई 1969 तक और तीसरी बार जून 1971 से जनवरी 1972 तक मुख्यमंत्री की पद पर रहे. इसके बाद राम सुंदर दास 21 अप्रैल 1979 से 17 फरवरी 1980 तक और जीतनराम मांझी 20 मई 2014 से 20 फरवरी 2015 तक सूबे की सत्ता पर काबिज रहे. हालांकि कोई भी दलित सीएम 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके.

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