पटना: राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने बिहार में 225 सीट जीतने का लक्ष्य रखा है. इसके लिए तमाम जिलों में एनडीए का संयुक्त सम्मेलन आयोजित किया जा चुका है और अब बड़े नेताओं को जंग-ए-मैदान में उतारने की तैयारी है. 'मोदी के हनुमान' चिराग पासवान के कंधों पर एनडीए की कमजोर कड़ी को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी है. शाहाबाद को साधने के लिए उन्होंने 8 जून को प्रचार का शंखनाद भी कर दिया है.
एनडीए की सबसे कमजोर कड़ी है शाहाबाद: कभी शाहाबाद क्षेत्र एनडीए का गढ़ हुआ करता था. शत प्रतिशत सीटों पर एनडीए की जीत होती थी लेकिन पिछले कुछ चुनावों से परिस्थितियों बदल गई हैं और वाम दलों ने शाहाबाद क्षेत्र में अपनी पैठ बना ली है. वाम दल के कैडर वोट की बदौलत शाहाबाद क्षेत्र में महागठबंधन बेहतर परफॉर्म कर रहा है. लोकसभा चुनाव के दौरान भी एनडीए के लिए शाहाबाद सबसे कमजोर कड़ी साबित हुई और करारी हार का सामना करना पड़ा.

शाहाबाद में महागठबंधन की शानदार जीत: लोकसभा चुनाव 2024 की अगर बात कर लें तो बक्सर सीट जो एनडीए का मजबूत पॉकेट मानी जाती थी, उस सीट पर भी महागठबंधन ने बाजी मार ली. राष्ट्रीय जनता दल के सुधाकर सिंह वहां से सांसद चुने गए. सासाराम लोकसभा सीट पर कांग्रेस पार्टी में बीजेपी को पटखनी दे दी और वहां से कांग्रेस के मनोज कुमार सांसद चुन लिए गए.
2 लोकसभा सीटों पर माले का कब्जा: वहीं, काराकाट लोकसभा सीट पर एनडीए के बड़े नेता उपेंद्र कुशवाहा मैदान में थे लेकिन वह भी चुनाव हार गए और भाकपा माले से राजाराम वहां से सांसद चुन लिए गए. आरा लोकसभा सीट से भी केंद्रीय मंत्री आरके सिंह चुनाव हार गए और वहां से भाकपा माले के सुदामा प्रसाद चुनाव जीते. इस तरह से शाहबाद क्षेत्र की दो लोकसभा सीट पर भाकपा माले का कब्जा है.

2020 चुनाव में भी एनडीए की हार: 2020 विधानसभा चुनाव में भी एनडीए का सूपड़ा साफ हो गया था. शाहबाद क्षेत्र में कुल मिलाकर 22 विधानसभा सीट है. जेडीयू का जहां खाता भी नहीं खुला, वहीं केवल आरा और बड़हरा सीट ही बचा सकी. हालांकि बाद में 2024 में उपचुनाव हुए तो तरारी और रामगढ़ विधानसभा सीट पर बीजेपी ने कब्जा जमाया. वहीं, विधानसभा चुनाव के बाद बसपा के टिकट पर चुनाव जीते जमा खान को जेडीयू ने अपनी पार्टी में शामिल कराया. फिलहाल शाहाबाद क्षेत्र में एनडीए के 5 विधायक हैं.

शाहाबाद में चिराग के आसरे एनडीए: शाहाबाद क्षेत्र में महादलित और पासवान वोटर कई विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. पासवान वोटर 5.3 प्रतिशत है. पासवान वोटों का कुछ हिस्सा भाकपा माले के खाते में चला जाता है. जिस वजह से एनडीए को लगातार नुकसान उठाना पड़ा रहा है. अब ऐसे में एनडीए ने इस बार अपनी रणनीति में बदलाव किया है और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान को शाहाबाद की जंग के मैदान में उतारा है. चिराग के जरिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन वहां वाम दलों के वोटो में सेंधमारी करना चाहता है.

चिराग ने किया प्रचार का शंखनाद: चिराग पासवान ने आरा से चुनावी अभियान की शुरुआत भी कर दी है. शनिवार को रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने दावा किया है कि बदलाव की शुरुआत हो चुकी है. चिराग ने कहा कि वह बिहार की सभी 243 सीटों पर लड़ेंगे और एनडीए के सभी उम्मीदवारों को जिताने के लिए प्रचार करेंगे.

एलजेपीआर ने किया जीत का दावा: लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रवक्ता राजेश भट्ट ने कहा कि हमारे नेता चिराग पासवान ने शाहाबाद की धरती से बदलाव का शंखनाद कर दिया है. शाहबाद क्षेत्र के दलित, पिछड़े और अति पिछड़े समाज के लोग चिराग पासवान के पीछे उमड़ चुके हैं. ये भीड़ बताती है कि लोग क्या चाहते हैं. उनका दावा है कि लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा में भी हमलोग शत प्रतिशत परिणाम हासिल करेंगे.

"आरा में जो हमारे नेता की रैली हुई थी, वह इस बात को तस्दीक करती है कि इस बार वाम दल के किले को चिराग पासवान ध्वस्त करने के लिए तैयार हैं और शत प्रतिशत सीटों पर एनडीए का कब्जा होने जा रहा है."- राजेश भट्ट, प्रवक्ता, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास)

क्या बोले बीजेपी प्रवक्ता?: भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल भी मानते हैं कि चिराग पासवान के कारण जरूर गठबंधन को फायदा होगा. वे कहते हैं, 'लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान उम्मीद के मुताबिक हमलोगों ने प्रदर्शन नहीं किया था लेकिन उपचुनाव में हमने महागठबंधन से दो सीटें छीन ली थी. चिराग पासवान एनडीए के बड़े नेता हैं और उनकी सक्रियता का लाभ गठबंधन को जरूर मिलेगा.'

'भीड़ जुटाने से वोट नहीं मिलता': हालांकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के विधायक सूर्यकांत पासवान नहीं मानते हैं कि चिराग पासवान के कारण वाम दलों के मतों में किसी प्रकार का कोई बिखराव होगा. उन्होंने कहा कि दलितों के मसले पर चिराग पासवान कभी भी आवाज नहीं उठाते, इसलिए वह इस चुनाव में कोई फैक्टर नहीं बनने वाले हैं.

"चिराग पासवान हवा हवाई नेता हैं. कुछ भीड़ जुट जाने का मतलब यह नहीं होता है कि वोट उनके साथ है. दलितों के मसले पर चिराग पासवान कभी भी आवाज नहीं उठाते. बिहार के अंदर हाल के दिनों में कई ऐसी घटना हुई. जिस पर दलित समुदाय आक्रोशित था. चिराग पासवान ने सुधि लेना भी मुनासिब नहीं समझा."- सूर्यकांत पासवान, विधायक, सीपीआई

क्या कहते हैं जानकार?: राजनीतिक विश्लेषक सुनील पांडे का मानना है कि दो चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को झटका लगा है और इस बार चिराग के जरिए एनडीए दलित-महादलित, पिछड़ा और अति पिछड़ा वोट को साधना चाहती है. अगर वह वाम दलों के वोट बैंक में सेंधमारी करने में कामयाब होते हैं तो जरूर इसका चुनाव परिणाम पर असर पड़ेगा.

"चिराग पासवान अगर वाम दलों के कैडर वोट में सेंधमारी करने में कामयाब हो जाते हैं तो शाहाबाद में एनडीए बेहतर परफॉर्म कर पाएगा. चिराग पासवान ने ऐलान कर महागठबंधन के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है. आने वाले समय में समीकरण में बदलाव देखने को मिल सकता है, हालांकि अभी इंतजार करना होगा."-सुनील पांडेय, राजनीतिक विश्लेषक
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