छिंदवाड़ा: गरीबों और आदिवासियों का बटुआ कहे जाने महुआ के फूलों का टपकना शुरू हो गया है, जिसको लेकर लोग जंगल और खेतों में महुआ बीनते दिखाई दे रहे हैं. ऐसी ही तस्वीर पांढुर्णा की विधायक नीलेश उईके की सामने आई है. जिसमें वे खुद अपने खेतों में महुआ बीनते दिखाई दे रहे हैं.
गरीबों का बटुआ कहलाता है महुआ
दरअसल, महुआ का पेड़ गरीबों के लिए नगदी फसल मानी जाती है, उसे गरीबों का बटुआ भी कहा जाता है. खासतौर पर जंगली इलाकों में इसके पेड़ पाए जाते हैं. जिसका फूल गर्मी के दिनों में टपकता है और जो काफी महंगे दामों में बिकता है. इसके साथ ही महुआ के पेड़ के बीज को गुल्ली बोला जाता है, जिससे तेल निकलता है. गर्मी के दिनों में ग्रामीण और आदिवासी आमतौर पर महुआ बीनते दिखाई दिए देते हैं.
महुआ बीनते नजर आए विधायक
महुआ के फूलों का टपकना शुरू हो गया है, ग्रामीण सहित आदिवासी इलाकों में लोग सुबह से खेतों और जंगलों में महुआ बीनते नजर आ रहे हैं. पांढुर्ना के विधायक नीलेश उईके भी अपने खेतों में महुआ बीन रहे हैं. ईटीवी भारत ने जब विधायक से बात की तो उन्होंने कहा कि "यह हमारी रोजी-रोटी और पुश्तैनी काम है. जब भी जन सेवा के बाद समय मिलता है, तो मैं अपने सारे काम खुद करता हूं और हमेशा महुआ भी बीनता हूं, ताकि आमदनी होती रहे."
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महुआ बीनना हमारा पुश्तैनी काम
विधायक नीलेश उईके ने कहा, " महुआ का पेड़ आदिवासी और गरीबों के लिए पैसे देने वाले पेड़ से कम नहीं होता है, क्योंकि एक फूल टपकता है और वह पैसे में कन्वर्ट होता है. गर्मी के मौसम में आदिवासी इस फूल को बीन कर सुखाते हैं और फिर पूरे साल धीरे-धीरे बेचकर अपने खर्चों में उपयोग करते हैं." उन्होंने कहा, "हमारा पुश्तैनी काम खेती करना और महुआ बीनने का है."