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छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को किया निरस्त, जान लीजिए वजह - HIGH COURT DECISION

हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 497 के तहत अपीलकर्ता पर मुकदमा चलाना समझ से परे है.

High Court decision
ट्रायल कोर्ट का फैसला निरस्त (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : April 20, 2025 at 7:33 AM IST

3 Min Read

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के एक फैसले को सुनवाई के बाद निरस्त कर दिया है. हाई कोर्ट ने सत्र न्यायालय द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के तहत व्याभिचार का दोषी ठहराए जाने के आदेश को निरस्त किया. घटना में शादी का झूठा आश्वासन देकर एक अविवाहित महिला के साथ बार बार संबंध बनाने के लिए आरोपी को दोषी ठहराया गया था. प्रकरण के अनुसार पीड़िता ने 10 जनवरी 2015 को अपीलकर्ता के खिलाफ एक रिपोर्ट दर्ज कराई जिसमें आरोप लगाया कि छह साल पहले अपीलकर्ता ने उससे गुप्त तरीके से शादी की थी.

ट्रायल कोर्ट के फैसले को किया निरस्त: पीड़िता ने कहा कि आरोपी ने वादा किया था कि उसकी छोटी बहन की शादी होगी उसके बाद वो रीति-रिवाजों का पालन करते हुए उससे फिर से शादी करेगा. पांच वर्षों में वह कई बार गर्भवती हुई, लेकिन हर बार आरोपी उसका गर्भपात करा देता. इसके बाद महिला को पता चला कि अपीलकर्ता ने डेढ़ साल पहले दूसरी महिला से शादी कर ली है. आरोपों के आधार पर आरोपी के खिलाफ धारा 376 के तहत रिपोर्ट दर्ज की गई.

सिंगल बेंच ने सुनाया फैसला: जांच पूरी होने के बाद सत्र न्यायाधीश, धमतरी के समक्ष आरोप पत्र दायर किया गया. शुरू में धारा 376 के तहत दुष्कर्म के आरोप तय किए. सुनवाई के बाद धारा 497 के तहत आरोपी को व्यभिचार का दोषी ठहराया गया. फैसले से असंतुष्ट आरोपी ने इसके विरुद्ध हाई कोर्ट में आपराधिक अपील प्रस्तुत की. धारा 497 को देखते हुए न्यायालय ने कहा कि व्याभिचार एक अपराध है जो किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति की पत्नी के साथ किया जाता है. कोर्ट ने जोर देते हुए कहा कि वर्तमान मामले में पीड़िता के पति ने किसी भी अदालत के समक्ष व्यभिचार की शिकायत नहीं की है.

अपीलकर्ता पर मुकदमा: हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि धारा 497 के तहत अपीलकर्ता पर मुकदमा चलाना समझ से बाहर है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने धारा 497 को असंवैधानिक माना है. यह भी माना गया कि यह प्रावधान पुरुषों और महिलाओं के साथ अलग अलग व्यवहार करके संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन है. इन आधारों पर अपीलकर्ता की दोष सिद्धि को गलत पाकर जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा की सिंगल बेंच ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया. साथ ही अपीलकर्ता को सभी आरोपों से बरी कर दिया.

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ट्रायल कोर्ट के फैसले को किया निरस्त: पीड़िता ने कहा कि आरोपी ने वादा किया था कि उसकी छोटी बहन की शादी होगी उसके बाद वो रीति-रिवाजों का पालन करते हुए उससे फिर से शादी करेगा. पांच वर्षों में वह कई बार गर्भवती हुई, लेकिन हर बार आरोपी उसका गर्भपात करा देता. इसके बाद महिला को पता चला कि अपीलकर्ता ने डेढ़ साल पहले दूसरी महिला से शादी कर ली है. आरोपों के आधार पर आरोपी के खिलाफ धारा 376 के तहत रिपोर्ट दर्ज की गई.

सिंगल बेंच ने सुनाया फैसला: जांच पूरी होने के बाद सत्र न्यायाधीश, धमतरी के समक्ष आरोप पत्र दायर किया गया. शुरू में धारा 376 के तहत दुष्कर्म के आरोप तय किए. सुनवाई के बाद धारा 497 के तहत आरोपी को व्यभिचार का दोषी ठहराया गया. फैसले से असंतुष्ट आरोपी ने इसके विरुद्ध हाई कोर्ट में आपराधिक अपील प्रस्तुत की. धारा 497 को देखते हुए न्यायालय ने कहा कि व्याभिचार एक अपराध है जो किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति की पत्नी के साथ किया जाता है. कोर्ट ने जोर देते हुए कहा कि वर्तमान मामले में पीड़िता के पति ने किसी भी अदालत के समक्ष व्यभिचार की शिकायत नहीं की है.

अपीलकर्ता पर मुकदमा: हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि धारा 497 के तहत अपीलकर्ता पर मुकदमा चलाना समझ से बाहर है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने धारा 497 को असंवैधानिक माना है. यह भी माना गया कि यह प्रावधान पुरुषों और महिलाओं के साथ अलग अलग व्यवहार करके संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन है. इन आधारों पर अपीलकर्ता की दोष सिद्धि को गलत पाकर जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा की सिंगल बेंच ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया. साथ ही अपीलकर्ता को सभी आरोपों से बरी कर दिया.

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