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घोड़ों के अस्तबल में कैद था आजादी का परवाना, खूंखार डकैत वाले छतरपुर जेल की कहानी - CHHATARPUR BRITISH ERA PRISON

ब्रिटिश राज में घोड़े के अस्तबल में बंद किए गए थे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, आज भी गवाही देती हैं इसकी सलाखें.

CHHATARPUR BRITISH ERA PRISON
रोचक है बिजावर जेल की कहानी (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : June 9, 2025 at 2:38 PM IST

Updated : June 9, 2025 at 2:53 PM IST

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छतरपुर : मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में रियासत काल की एक ऐसी इमारत मौजूद है, जो आज जेल के रूप में जानी जाती है लेकिन कम ही लोग जानते होंगे कि कभी ये घोड़ों का अस्तबल हुआ करती थी. रियासत काल में जिस जगह घोड़ों को बांधने का काम किया जाता था, वहां ब्रिटिश हुकूमत ने स्वतंत्रता सेनानियों को भी बंदी बनाए रखा था. बाद में इस जेल में कई खूंखार डकैतों को भी कैद किया गया. जानें छतरपुर से 35 किमी दूर बनी इस सबसे अनोखी जेल की कहानी.

CHHATARPUR PRISON BUILT ON STABLES
जेल पहले थी महाराजा सावंत सिंह के घोड़ों का अस्तबल (Etv Bharat)

जेल पहले थी महाराजा सावंत सिंह के घोड़ों का अस्तबल

जिले के बिजावर रियासत का इतिहास बहुत रोचक और पुराना है, जिसे जानने और देखने के लिए आज भी लोग दूर-दूर से आते हैं. यहां बनी पुरानी इमारतें, महल, कुएं, बावड़ी, मंदिर आज भी उस दौर की गवाही देते हैं. इस पुरानी रियासात पर कभी रियासतों का भी दबदबा हुआ करता था. धीरे-धीरे परिस्थितियों में बदलाव हुआ और फिर ब्रिटिश शासन की हुकूमत चलने लगी. आजादी से पहले रियासत काल की कई इमारतों को ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने कब्जे में लेकर उनका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था, कुछ ऐसा ही हुआ महाराजा सावंत सिंह के घोड़ों के अस्तबल के साथ.

जानकारी देते इतिहासकार (Etv Bharat)

ईस्ट इंडिया कंपनी ने बनाई थी जेल

दरअसल, छतरपुर जिले से 35 किलोमीटर दूरी पर बसी पुरानी रियासत आज तहसील के रूप में जानी जाती है. बिजावर रियासत के महाराज राजा सावंत सिंह के घोड़ों को जिस स्थान पर रखा जाता था, उस अस्तबल को अंग्रेजी हुकूमत के वक्त ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने कब्जे में लेकर विशाल जेल बना दी थी. जेल के बाहर आज भी रखी तोपें अपने इतिहास की गवाही देतीं हैं. छतरपुर जिले के बिजावर में बनी जेल सबसे पुरानी जेल बताई जाती है. आजादी से पहले ईस्ट इंडिया कंपनी इस जेल में स्वतंत्रता सेनानी व कैदियों को रखती थी.

Chhatarpur British Era prison
छतरपुर की बिजावर जेल (Etv Bharat)

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और खूंखार डकैत रहे कैद

छतरपुर जिले के बिजावर में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा बनाई गई जेल में आजादी के पहले कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और आजादी के बाद बुंदेलखंड के खूंखार डकैत देवी सिंह, मूरत सिंह, पूजा बब्बा सहित कई डकैतों को कैद रखा गया. जेल के मुख्य द्वार पर सन् 1926 की स्थापना शिला भी लगी हुई है. लेकिन अब उस पर जेल प्रशासन द्वारा लोहे से ढक दिया है.

रोचक है बिजावर रियासत का इतिहास

छतरपुर जिले की पुरानी ऐतिहासिक रियासत बिजावर जो कभी आजादी के पहले भारत की सैकड़ों रियासतों में से एक हुआ करता था, जिसे ब्रिटिश शासन ने 11 तोपों की सलामी वाली रियासत का दर्जा दिया था. इस रियासत पर कभी क्षत्रिय राजाओं तो कभी गोंड साम्राज्य का राज रहा. बिजावर रियासत पर बुंदेला महाराजा छत्रसाल का भी राज रहा, जिनके नाम पर छतरपुर नाम रखा गया. बाद में उनके वंशज उत्तराधिकारी जगत सिंह को बिजावर का राजपाठ मिला.

इतिहासकार शंकर लाल बताते हैं, '' बिजावर जेल अंग्रेजों के समय की बनी हुई सबसे पुरानी जेल है. इस जेल का निर्माण आजादी के पहले 1926 में करवाया गया था. रियासत के बाद अंग्रेजी शासन ने इस रियासत को 11 तोपों की सलामी वाली रियासत से नवाजा था. कई स्वतंत्रता सेनानी ओर आजादी के बाद बुन्देलखण्ड के दस्यू इसी जेल में कैद रहे.''

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CHHATARPUR PRISON BUILT ON STABLES
जेल पहले थी महाराजा सावंत सिंह के घोड़ों का अस्तबल (Etv Bharat)

जेल पहले थी महाराजा सावंत सिंह के घोड़ों का अस्तबल

जिले के बिजावर रियासत का इतिहास बहुत रोचक और पुराना है, जिसे जानने और देखने के लिए आज भी लोग दूर-दूर से आते हैं. यहां बनी पुरानी इमारतें, महल, कुएं, बावड़ी, मंदिर आज भी उस दौर की गवाही देते हैं. इस पुरानी रियासात पर कभी रियासतों का भी दबदबा हुआ करता था. धीरे-धीरे परिस्थितियों में बदलाव हुआ और फिर ब्रिटिश शासन की हुकूमत चलने लगी. आजादी से पहले रियासत काल की कई इमारतों को ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने कब्जे में लेकर उनका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था, कुछ ऐसा ही हुआ महाराजा सावंत सिंह के घोड़ों के अस्तबल के साथ.

जानकारी देते इतिहासकार (Etv Bharat)

ईस्ट इंडिया कंपनी ने बनाई थी जेल

दरअसल, छतरपुर जिले से 35 किलोमीटर दूरी पर बसी पुरानी रियासत आज तहसील के रूप में जानी जाती है. बिजावर रियासत के महाराज राजा सावंत सिंह के घोड़ों को जिस स्थान पर रखा जाता था, उस अस्तबल को अंग्रेजी हुकूमत के वक्त ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने कब्जे में लेकर विशाल जेल बना दी थी. जेल के बाहर आज भी रखी तोपें अपने इतिहास की गवाही देतीं हैं. छतरपुर जिले के बिजावर में बनी जेल सबसे पुरानी जेल बताई जाती है. आजादी से पहले ईस्ट इंडिया कंपनी इस जेल में स्वतंत्रता सेनानी व कैदियों को रखती थी.

Chhatarpur British Era prison
छतरपुर की बिजावर जेल (Etv Bharat)

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और खूंखार डकैत रहे कैद

छतरपुर जिले के बिजावर में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा बनाई गई जेल में आजादी के पहले कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और आजादी के बाद बुंदेलखंड के खूंखार डकैत देवी सिंह, मूरत सिंह, पूजा बब्बा सहित कई डकैतों को कैद रखा गया. जेल के मुख्य द्वार पर सन् 1926 की स्थापना शिला भी लगी हुई है. लेकिन अब उस पर जेल प्रशासन द्वारा लोहे से ढक दिया है.

रोचक है बिजावर रियासत का इतिहास

छतरपुर जिले की पुरानी ऐतिहासिक रियासत बिजावर जो कभी आजादी के पहले भारत की सैकड़ों रियासतों में से एक हुआ करता था, जिसे ब्रिटिश शासन ने 11 तोपों की सलामी वाली रियासत का दर्जा दिया था. इस रियासत पर कभी क्षत्रिय राजाओं तो कभी गोंड साम्राज्य का राज रहा. बिजावर रियासत पर बुंदेला महाराजा छत्रसाल का भी राज रहा, जिनके नाम पर छतरपुर नाम रखा गया. बाद में उनके वंशज उत्तराधिकारी जगत सिंह को बिजावर का राजपाठ मिला.

इतिहासकार शंकर लाल बताते हैं, '' बिजावर जेल अंग्रेजों के समय की बनी हुई सबसे पुरानी जेल है. इस जेल का निर्माण आजादी के पहले 1926 में करवाया गया था. रियासत के बाद अंग्रेजी शासन ने इस रियासत को 11 तोपों की सलामी वाली रियासत से नवाजा था. कई स्वतंत्रता सेनानी ओर आजादी के बाद बुन्देलखण्ड के दस्यू इसी जेल में कैद रहे.''

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Last Updated : June 9, 2025 at 2:53 PM IST
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