कोटा: मानसून का सीजन आने वाला है. ऐसे में नदी नालों से होकर बारिश का पानी बांधों तक पहुंचेगा, जिससे साल भर सिंचाई और पेयजल का प्रबंध होना है. वर्तमान स्थिति की बात की जाए तो चंबल नदी के बांधों में भरपूर पानी है. वहीं, हाड़ौती में 78 डैम हैं, जिनमें से 35 बांध खाली पड़े हुए हैं. यह पूरी तरह से सूख कर रीत गए हैं. इनके आसपास के लोग इससे प्रभावित भी हो रहे हैं. इन बांधों में 4 मिलियन क्यूबिक मीटर से बड़े 12 और छोटे 23 डैम हैं, जो सूखे पड़े हैं. वहीं, 71 डैम में 50 फीसदी से कम पानी है. केवल 7 डैम ऐसे हैं, जिनमें 50 फीसदी से ज्यादा पानी है. इन सब रीते हुए बांधों को बारिश का इंतजार है.
बड़े बांधों में बचा है महज 22 फीसदी पानी : कोटा संभाग में बड़े बांधों की बात की जाए तो 12 डैम ऐसे हैं, जिनमें बिल्कुल भी पानी नहीं है. इनमें कोटा जिले में हाल ही में बनकर तैयार हुए ईआरसीपी के पहले बांध नोनेरा में पानी नहीं भरा जा रहा है. इसकी कैपेसिटी 226.65 मिलियन क्यूबिक मीटर है. इसके अलावा बारां जिले का गोपालपुरा, बिलास, उम्मेद सागर, भीमलत, इकलेरा सागर, रटलाई, कालीसोट, छतरपुरा, झालावाड़ जिले का सारण खेड़ी, सारोला और बूंदी जिले का रुणीजा शामिल है. चंबल नदी के बांधों को छोड़कर संभाग के अन्य बड़े बांध की बात की जाए तो उनमें कुल कैपेसिटी 1303.92 मिलियन क्यूबिक मीटर है, लेकिन इनमें केवल 22 फीसदी पानी है, यह 288.44 एमसीएम है.

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6 बड़े डैम ऐसे, जिनमें 50 फीसदी से ज्यादा पानी : हाड़ौती संभाग में चार एमसीएम से बड़े 45 डैम हैं. इनमें केवल 6 बांधों में ही 50 फीसदी से ज्यादा पानी है. इनमें बूंदी जिले का चाकन, कोटा जिले का ताखली, बारां जिले का हिंगलोट, झालावाड़ जिले का राजगढ़, कालीसिंध और रेवा डैम शामिल हैं. वहीं, 12 बांध बिल्कुल रीते हुए हैं और 16 बांध ऐसे हैं, जिनमें 10 फीसदी से कम पानी है.

छोटे 23 बांधों में बिल्कुल पानी नहीं : हाड़ौती के 4 मिलियन क्यूबिक मीटर से छोटे बांधों की बात की जाए तो हाड़ौती के चारों जिलों में ऐसे 33 बांध है, इनमें से 23 बांध पूरी तरह से रीते हुए हैं. इनमें बारां जिले का अहमदी, नारायण खेड़ा, खटका, महोदरी, सेमली फाटक व नाहरगढ़ हैं. बूंदी जिले का बंसोली, मोतीपुरा, चंद्रा का तालाब, भटवाड़ी, मैंडी, सथुर माताजी शामिल हैं. वहीं, झालावाड़ जिले का कदालिया जसवंतपुरा, बिनायगा, बोरदा, गोवर्धनपुरा, ठीकरिया, मथानिया, कंवरपुरा और बोरबन्द शामिल हैं. वहीं, कोटा जिले का दरा और डोलिया डैम भी पूरी तरह खाली हैं.

महज 5 फीसदी के आसपास पानी : हाड़ौती के ही इन छोटे बांधों की पूर्ण क्षमता 87.62 मिलियन क्यूबिक मीटर है, जबकि इनमें केवल 4.94 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी है, यानी केवल 5.64 फीसदी ही पानी है. बाकी जो डैम हैं, उनमें भी नाम मात्र पानी ही शेष है. केवल बूंदी जिले का नारायणपुर बांध में 50 फीसदी से ज्यादा पानी है. शेष बचे हुए 9 बांधों में 3 से लेकर 33 फीसदी तक पानी है.

गरड़ा निवासी उमेश शर्मा कहते हैं कि छोटे और बड़े डैम हाड़ौती में जीवन दायिनी हैं. लाखों हेक्टेयर एरिया में इन बांध से मिलने वाले पानी से सिंचाई होती है. इन डैम में पानी आने के चलते ही आसपास के इलाकों में वाटर लेवल ऊंचा उठ जाता है, जिससे नलकूप और हैंडपंप में भी पानी आता है. पेयजल की समस्या भी दूर होती है. सिंचाई के लिए यह सब कुछ महत्वपूर्ण है.

अधिकांश बांध से नहर, धोरे या वितरिका निकली हुई है. यह किसान के खेत तक पानी पहुंचा देती है, इसीलिए किसान मानसून का बेसब्री से इंतजार करता है. हर बार उसकी उम्मीद यह रहती है कि उसके आसपास का बांध पूरी तरह से भर जाए. : रूपनारायण यादव, जिला मंत्री, भारतीय किसान संघ
जेएस और कोटा बैराज फुल : चंबल नदी के बांधों की बात की जाए तो इनमें 62.42 फीसदी पानी है. चंबल नदी के राजस्थान के 3 बांधों की बात की जाए तो वह लगभग पूरे भरे जैसे ही हैं. मध्य प्रदेश में स्थित चंबल नदी के सबसे बड़े बांध गांधी सागर बांध पर पंप स्टोरेज प्लांट बनाया जाना है. इसके चलते बीते दिनों उसका लेवल नीचे गिराया गया था और पानी छोड़ा गया, जिसे जल संसाधन विभाग राजस्थान में राणा प्रताप सागर बांध को भर लिया है. ऐसे में वर्तमान में राणा प्रताप सागर बांध में 96 फीसदी पानी है, जबकि कोटा बैराज में 100 और जवाहर सागर डैम में 92 फीसदी पानी है.

डैम में 2790 एमसीएम पानी है. जवाहर सागर बांध की क्षमता 67.12 है, उसमें 61.84 एमसीएम पानी है. कोटा बैराज की क्षमता 112.06 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी है और इतना पानी इसमें भरा हुआ है. : हरीश तिवाड़ी, सहायक अभियंता, राणा प्रताप सागर बांध
सबसे बड़ी चुनौती जेएस डैम का भरना : चंबल नदी का सबसे बड़ा बांध गांधी सागर मध्य प्रदेश के मंदसौर में स्थित है. इस बांध से ही राजस्थान और मध्य प्रदेश में सिंचाई का पानी उपलब्ध कराया जाता है. गांधी सागर डैम की क्षमता 7164.94 मिलियन क्यूबिक मीटर है, जबकि उसमें 3434 एमसीएम पानी है. यह भी 50 फीसदी से ज्यादा खाली है. बारिश के सीजन में इस बार गांधी सागर बांध को भरा जाएगा. यह भी एक चुनौती से कम नहीं होगा. राणा प्रताप सागर (आरपीएस) बांध की बात की जाए तो उसकी क्षमता 2905 एमसीएम है.


हर साल मानसून आते आते बांधों की यही स्थिति हो जाती है. मानसून के सीजन में अधिकांश डैम लबालब हो जाते हैं. या यूं कहें तो करीब 90 फीसदी डैम भर जाते हैं. बारिश के दौरान अधिकांश डैम ओवर फ्लो होकर छलक भी जाते हैं. वहीं, कुछ डैम के गेट खोलकर पानी की निकासी की जाती है. लाखों क्यूसेक पानी नदियों में छोड़ना पड़ता है. चंबल के बांधों से निकासी आम बात है. : संजय कुमार सिंह, अधिशासी अभियंता, जल संसाधन विभाग