वाराणसी: आज (30 अप्रैल) अक्षय तृतीया का पर्व पूरे देश में मनाया जा रहा है. सनातन धर्म में अक्षय तृतीया का विशेष महत्व है. इस दिन दान के साथ पितरों को समर्पित चीजों से अर्जित पुण्य को भी अक्षय यानी कभी ना नष्ट होने वाला बताया जाता है. भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए इस दिन देश भर में अलग-अलग तरीके से लोग पूजा-पाठ करने के साथ खरीदारी करते हैं.
वहीं, आध्यात्म की नगरी काशी में अक्षय तृतीया के दिन पुष्करिणी कुंड में विशेष आयोजन होता है. इस कुंड में स्नान करने की विशेष मान्यता है. इस कुंड से जुड़ी मान्यता ऐसी है कि उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक से लोग यहां पहुंचते हैं. यह कुंड बेहद पवित्र माना गया है. भगवान विष्णु के पसीने और उनके सुदर्शन चक्र से निर्मित इस कुंड की कहानी बेहद रोचक है.
पुष्करिणी कुंड में स्नान का महत्व: ऐसी मान्यता है यदि अक्षय तृतीया के दिन मध्यान्ह काल में काशी के पुष्करिणी कुंड में स्नान किया जाए तो पुर्नजन्म से मुक्ति यानी मोक्ष की प्राप्ति होती है. वाराणसी के इस पवित्र चक्र पुष्कारिणी कुंड पर हर वर्ष अक्षय तृतीया के दिन विभिन्न आयोजन होते हैं. इस बार भी यहां पर बड़ा आयोजन है. अक्षय तृतीया के दिन शाम को मणिकर्णिका माता की पौराणिक अष्टधातु की प्रतिमा यहां लाई जाती है. वर्ष में सिर्फ एक बार ही यह प्रतिमा भ्रमण पर निकलती है, जिसे स्थापित करके कुंड में स्नान की शुरुआत होती है. यह स्नान पूजन दूसरे दिन चतुर्थी तक चलता है. यहां पर दक्षिण भारत से लोगों का बहुत बड़ी संख्या में आते हैं.

भगवान विष्णु ने की थी यहां शिव आराधना: काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर मणिकर्णिका घाट पर स्थापित इस तक पहुंचाने के लिए संकरी गलियों से होते पहुंचना पड़ता है. दरअसल, मणिकर्णिका कोई श्मशान नहीं बल्कि महातीर्थ के रूप में पूजा जाता है. समय के साथ लोगों ने इसे महाश्मशान के रूप में स्थापित कर दिया, लेकिन सच तो यही है, कि यह हजारों साल पुराना वह महातीर्थ है, जहां स्वयं भगवान विष्णु अपने आराध्य शिव की आराधना के लिए पहुंचे थे.

60 हजार वर्ष पुराना महातीर्थ: इस स्थान के तीर्थ पुरोहित और मणिकार्णिका कुंड का संरक्षण करने वाले परिवार के कृपा शंकर द्विवेदी का कहना है कि यह महातीर्थ 60000 वर्ष से भी ज्यादा पुराना है. ऐसी मान्यता है, कि गंगा को धरती पर आए 5160 साल हो चुके हैं. लेकिन यह स्थान जिसे चक्र पुष्कर्णी मणिकर्णिका तीर्थ के नाम से जाना जाता है, वह लगभग 60 हजार साल पुराना है. यहां पर श्री हरि विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र को चलाकर इस स्थान का निर्माण किया और कठिन तपस्या करते हुए उनके शरीर के पसीने से यहां पर जल स्त्रोत बन गया. आज भी यहां पर जल कहां से आता है, यह रहस्य बना हुआ है. भयानक से भयानक गर्मी में भी यह जल स्त्रोत बेहद ठंडा रहता है.
कैसे करें अक्षय तृतीया के दिन स्नान: पंडित कृपाशंकर का कहना है कि यह स्थान अपने आप में महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि भगवान विष्णु की तपस्या के साथ ही माता पार्वती और भगवान शिव के रमणीक स्थल के रूप में बेहद पवित्र स्थान है. यहां पर माता पार्वती के साथ भगवान शिव स्नान करने पहुंचते हैं और अनादि काल पहले भगवान शिव के कान का कुंडल और माता पार्वती के कानों की मणि यहां गिरी थी, जिसके बाद इस स्थान का नाम मणिकर्णिका चक्र पुष्कर्णी पड़ा. उन्होंने बताया कि ऐसा माना जाता है कि अक्षय तृतीया और उसके अगले दिन मध्यान काल में यदि कोई व्यक्ति पहले गंगा फिर चक्र पुष्कर्णी कुंड और फिर गंगा स्नान करता है, तो उसे बार-बार जन्म लेने के चक्र काल से मुक्ति मिल जाती है. इस कुंड में अक्षय तृतीया के दिन स्नान करने मात्र से ही पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है.
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