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नवरात्रि में कन्याओं के साथ क्यों होती है एक बालक की पूजा ? अगर लांगूर ना मिले तो क्या करें ? - CHAITRA NAVRATRI 2025

नवरात्रि में कन्या पूजन में एक बालक को भी बैठाया जाता है. जानें क्यों कन्या पूजन में बटुक भैरव या लांगूर की पूजा होती है?

Chaitra Navratri 2025
चैत्र नवरात्रि 2025 (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : April 4, 2025 at 2:29 PM IST

Updated : April 6, 2025 at 9:37 AM IST

3 Min Read

कुल्लू: आज देशभर में राम नवमी का त्योहार मनाया जा रहा है. भक्तों द्वारा माता दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न तरह के धार्मिक कार्य किए जा रहे हैं. वहीं, नवरात्रि की नवमी के दिन भक्तों द्वारा कन्या पूजन किया जा रहा है, ताकि कन्या पूजन के जरिए उन्हें माता दुर्गा का आशीर्वाद मिल सके. आचार्य विजय कुमार ने बताया कि कन्या पूजन के समय भक्तों को कुछ बातों का खास ध्यान रखना चाहिए. कन्या पूजन में कन्याओं के साथ एक बालक को भी आमंत्रित करना चाहिए.

"धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता दुर्गा के साथ बटुक भैरव भी होते हैं. ऐसे में कन्या पूजन में बालक को आमंत्रित कर बटुक भैरव के रूप में उनका पूजन करना चाहिए, ताकि माता दुर्गा के साथ-साथ भक्तों को बटुक भैरव का भी आशीर्वाद मिल सके." - आचार्य विजय कुमार

कन्या पूजन पर क्यों होती है एक बालक की पूजा ?

  • देवी मां की पूजा बटुक भैरव की पूजा के बिना अधूरी है.
  • कन्या पूजन में कन्याओं के साथ एक बालक की पूजा करना जरूरी माना जाता है.
  • पूजा में बालक को बटुक भैरव का रूप माना जाता है.
  • बाबा भैरव नाथ का सौम्य रूप बटुक भैरव का माना जाता है.
  • देवी मां के जितने शक्तिपीठ और प्रसिद्ध मंदिर हैं, वहां द्वार में प्रवेश करते ही भैरव बाबा के मंदिर स्थापित हैं.
  • हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार भैरव नाथ मां देवी के शक्तिपीठों की रक्षा करते हैं.
  • बटुक भैरव के दर्शन किए बिना देवी मां के दर्शन पूर्ण नहीं माने जाते.
  • इस लिए कन्या पूजन के दौरान बालक को बटुक भैरव के रूप में पूजा जाता है.
  • जिससे भक्त पर मां देवी की कृपा दृष्टि सदैव बनी रहे.

लांगूर क्यों कहते हैं, ये किसका स्वरूप हैं?

आचार्य विजय कुमार ने बताया कि अलग-अलग इलाकों में कन्या पूजन के साथ एक बालक को बिठाने की परंपरा है. कुछ लोग इसे लांगूर या फिर बटुक के रूप में पूजते हैं. लांगूर का मतलब भगवान हनुमान और बटुक का मतलब भगवान भैरव होते हैं. माता दुर्गा के मंदिर में प्रवेश द्वार पर दोनों ही भगवान हनुमान और बटुक भैरव की स्थापना की जाती है. ऐसे में एक बालक को कन्या पूजन के दौरान अवश्य बैठाया जाता है और भगवान हनुमान या फिर बटुक भैरव का प्रतीक मानकर उनकी पूजा अर्चना की जाती है.

अगर लांगूर ना मिले तो क्या करें?

वहीं, कन्या पूजन के दौरान अगर कोई छोटा बालक न मिले, तो भक्त कन्याओं के साथ एक अलग से भोजन की थाली रखें और बटुक को उसमें भोग लगाएं. उसके बाद में यह थाली किसी छोटे बालक को दी जा सकती है. अगर पूजन के बाद भी बालक न मिले, तो इस थाली में रखा भोग भैरव के प्रतीक किसी कुत्ते या फिर हनुमान जी के प्रतीक किसी वानर को भी अर्पित किया जा सकता है.

ये भी पढ़ें: कन्या पूजन में कन्याओं को भूलकर भी न दें ये तोहफे, इन बातों का रखें खास ध्यान

ये भी पढ़ें: नवरात्र के दौरान अखंड ज्योति बुझ जाए तो क्या करें ? इन बातों का रखें ध्यान

कुल्लू: आज देशभर में राम नवमी का त्योहार मनाया जा रहा है. भक्तों द्वारा माता दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न तरह के धार्मिक कार्य किए जा रहे हैं. वहीं, नवरात्रि की नवमी के दिन भक्तों द्वारा कन्या पूजन किया जा रहा है, ताकि कन्या पूजन के जरिए उन्हें माता दुर्गा का आशीर्वाद मिल सके. आचार्य विजय कुमार ने बताया कि कन्या पूजन के समय भक्तों को कुछ बातों का खास ध्यान रखना चाहिए. कन्या पूजन में कन्याओं के साथ एक बालक को भी आमंत्रित करना चाहिए.

"धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता दुर्गा के साथ बटुक भैरव भी होते हैं. ऐसे में कन्या पूजन में बालक को आमंत्रित कर बटुक भैरव के रूप में उनका पूजन करना चाहिए, ताकि माता दुर्गा के साथ-साथ भक्तों को बटुक भैरव का भी आशीर्वाद मिल सके." - आचार्य विजय कुमार

कन्या पूजन पर क्यों होती है एक बालक की पूजा ?

  • देवी मां की पूजा बटुक भैरव की पूजा के बिना अधूरी है.
  • कन्या पूजन में कन्याओं के साथ एक बालक की पूजा करना जरूरी माना जाता है.
  • पूजा में बालक को बटुक भैरव का रूप माना जाता है.
  • बाबा भैरव नाथ का सौम्य रूप बटुक भैरव का माना जाता है.
  • देवी मां के जितने शक्तिपीठ और प्रसिद्ध मंदिर हैं, वहां द्वार में प्रवेश करते ही भैरव बाबा के मंदिर स्थापित हैं.
  • हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार भैरव नाथ मां देवी के शक्तिपीठों की रक्षा करते हैं.
  • बटुक भैरव के दर्शन किए बिना देवी मां के दर्शन पूर्ण नहीं माने जाते.
  • इस लिए कन्या पूजन के दौरान बालक को बटुक भैरव के रूप में पूजा जाता है.
  • जिससे भक्त पर मां देवी की कृपा दृष्टि सदैव बनी रहे.

लांगूर क्यों कहते हैं, ये किसका स्वरूप हैं?

आचार्य विजय कुमार ने बताया कि अलग-अलग इलाकों में कन्या पूजन के साथ एक बालक को बिठाने की परंपरा है. कुछ लोग इसे लांगूर या फिर बटुक के रूप में पूजते हैं. लांगूर का मतलब भगवान हनुमान और बटुक का मतलब भगवान भैरव होते हैं. माता दुर्गा के मंदिर में प्रवेश द्वार पर दोनों ही भगवान हनुमान और बटुक भैरव की स्थापना की जाती है. ऐसे में एक बालक को कन्या पूजन के दौरान अवश्य बैठाया जाता है और भगवान हनुमान या फिर बटुक भैरव का प्रतीक मानकर उनकी पूजा अर्चना की जाती है.

अगर लांगूर ना मिले तो क्या करें?

वहीं, कन्या पूजन के दौरान अगर कोई छोटा बालक न मिले, तो भक्त कन्याओं के साथ एक अलग से भोजन की थाली रखें और बटुक को उसमें भोग लगाएं. उसके बाद में यह थाली किसी छोटे बालक को दी जा सकती है. अगर पूजन के बाद भी बालक न मिले, तो इस थाली में रखा भोग भैरव के प्रतीक किसी कुत्ते या फिर हनुमान जी के प्रतीक किसी वानर को भी अर्पित किया जा सकता है.

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Last Updated : April 6, 2025 at 9:37 AM IST
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