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ये है हिमाचल का 15 मंजिला 'ताजमहल', टूटे दिल से राजा ने 'अमर' कर दिया था अपना प्रेम - CHAHNI KOTHI

बंजार में स्थित चैहनी कोठी 700 साल पुरानी प्रेम की निशानी है, जिसे राजा डाढ़ी ठाकुर ने रानी चैहणी की याद में बनवाया था.

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : June 1, 2025 at 5:31 PM IST

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कुल्लू: भारत की धरती पर प्रेम की अनेक अमर कहानियां आज भी सांस ले रही हैं. कुछ ग्रंथों में लिखी गईं, तो कुछ पत्थरों और संगमरमर में तराशी गईं हैं और जब प्रेम दिल में उतर कर पत्थरों में ढल जाए, तो वो केवल स्मृति नहीं, इतिहास बन जाता है. कहते हैं कि जब प्यार पत्थरों से बात करता है तो कुछ ऐसा अजूबा बना देता है जो सदियों तक खड़ा रहता है.

आपने ताजमहल के बारे में सुना ही होगा, लेकिन क्या पहाड़ों की गोद में बनीं 15 मंजिला ऊंची इमारत के बारे में सुना है. ये सिर्फ एक इमारत नहीं एक राजा के टूटे और दुखी दिल की आवाज है, जो अब भी वादियों में गूंजती है. राजा को रानी से ऐसा इश्क था जो मरने के बाद भी अमर हो गया. हिमाचल प्रदेश की सुरम्य वादियों में स्थित कुल्लू के चैहनी कोठी भी एक ऐसी ही अमर प्रेम गाथा की साक्षी है. ये सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि सात सौ साल पुराने उस प्रेम की जीवंत मिसाल है, जिसे एक राजा ने अपनी रानी की याद में अमर कर दिया.

बंजार में बनी चैहणी कोठी
बंजार में बनी चैहणी कोठी (सोशल मीडिया)

इस कोठी में छिपा है इतिहास

कुल्लू जिले के बंजार क्षेत्र में स्थित यह ऐतिहासिक कोठी, न सिर्फ स्थापत्य की दृष्टि से बेजोड़ है, बल्कि इसकी हर दीवार, हर शहतीर में एक भावनात्मक इतिहास छिपा हुआ है. भूकंपों और समय की मार को सहते हुए भी ये कोठी आज गर्व से खड़ी है. ये इमारत काष्ठकुणी शैली में तैयार की गई है. ये बंजार से 5 किलोमीटर और श्रृंगा ऋषि मंदिर बागी से 1 किलोमीटर की दूरी पर है. यह गांव इसी कोठी के कारण पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.

राजा ने रानी की याद में किया था इसका निर्माण

इतिहासकार डॉक्टर सूरत ठाकुर ने बताया कि 'इस क्षेत्र में ढाढिया ठाकुर का राज चलता था और वो अपनी पत्नी चैहणी से काफी प्रेम करता था, लेकिन बाद में अचानक उसकी पत्नी का देहांत हो गया और वो इसकी याद में काफी उदास रहता था. पत्नी की मौत के बाद ठाकुर ने ही उसकी याद में ही ये अनूठी कोठी बनवाई थी, जो आज भी उनके अमर प्रेम की याद दिलाती है. रानी के नाम पर ही इसे चैहणी कोठी पड़ा. पहले ये कोठी 15 मंजिल ऊंची थी. साल 1905 के भूकंप में इसकी पांच मंजिलें गिर गईं, लेकिन थड़े समेत अब भी इसकी 10 मंजिलें विद्यमान हैं. अभी इस कोठी की ऊपर की मंजिल में जोगनियों की मूर्तियां विद्यमान हैं, जिनकी त्यौहार के समय पूजा अर्चना की जाती है.'

कुल्लुवी काष्ठकुणी शैली में बनी है ये कोठी

राजा की रानी चली गई... लेकिन पीछे छोड़ गई एक इमारत, जो आज भी मोहब्बत की काहानी कहती है. पुरातत्व की दृष्टि से ये कोठी महत्वपूर्ण वास्तुकृति है. चैहणी कोठी को कुल्लुवी काष्ठकुणी से बनवाया गया है. इसका आधार वर्गाकार चौकोर है. प्रथम मंजिल से लेकर अंतिम मंजिल तक दीवारों की लम्बाई-चौड़ाई बराबर हैं. चिनाई पत्थर और देवदार की लकड़ी की शहतीरों से की गई है. चारों तरफ दीवारों पर एक के ऊपर दूसरी शहतीर लगाई हुई है. इनके बीच में साफ किए हुए पत्थरों की चिनाई की गई है. यही क्रम लगातार छत तक चलता हुआ दिखाई देता है. अंतिम मंजिल में दीवारों से बाहर 4 फुट चौड़ा बरामदा बना है. बीच-बीच में झरोखे रखे गए हैं, जिनसे चारों ओर नजर रखी जा सकती है.

बंजार में बनी चैहणी कोठी
बंजार में बनी चैहणी कोठी (सोशल मीडिया)

आज भी यहां आते हैं ढाढिया ठाकुर के वंशज

इस कोठी में 5 मंजिल तक केवल पत्थर का थड़ा बनाया गया है. उसके बाद काठकुणी की चिनाई हुई है. अंतिम मंजिल तक पहुंचने के लिए थड़े से बरामदे तक देवदार के बड़े पेड़ की शहतीर से सीढ़ी लगाई गई है. इस कोठी के साथ ही ऊपर की तरफ देवता श्रृंगा ऋषि का भंडार गृह 5वीं मंजिल पर कोट शैली में बना है, जिसमें देवता का अनाज और बड़े बर्तन रखे जाते हैं. आज भी इस कोट में ढाढिया ठाकुर के वंशज आते हैं और ढाढिया ठाकुर की तलवारें इत्यादि इसमें अब भी मौजूद हैं.

देवता श्रृंगा ऋषि का मोहरा कोठी में मौजूद

हिमालय नीति अभियान गुमान सिंह ठाकुर के संयोजक गुमान सिंह ने कहा कि 'यहां इसी कोठी में देवता श्रृंगा ऋषि का एक मोहरा भी विद्यमान है, जिसे कुल्लू के राजा मान सिंह ने सन 1674 ई. में देवता को चढ़ाया था. एक मोहरा राजा टेढ़ी सिंह ने भी देवता को चढ़ाया था. पहले विवाह-शादियों तथा हवन-यज्ञ इत्यादि में यह मोहरा लोगों के घरों में ले जाया जाता था, लेकिन बाद इसे यही रखा गया और यहां पर इसकी पूजा अर्चना की जाती है.'

बंजार में बनी चैहणी कोठी
बंजार में बनी चैहणी कोठी (सोशल मीडिया)

पांच मंजिला मुरली मनोहर का मंदिर मौजूद

चैहनी कोठी के दक्षिण में 20 फुट की दूरी पर मुरली मनोहर का पुरातन मंदिर है. गुमान सिंह ने बताया कि 'मुरली मननोहर मंदिर का निर्माण मंडी के राजा मंगल सेन ने करवाया था. राजा मंगल सेन ने मुरली मनोहर की मूर्ति यहां पर मंगलौर से मंगवाई थी, जिसे कुल्लू के शासकों ने स्थापित किया था. ये मंदिर भी 5 मंजिला है. देवता श्रृंगा ऋषि जब-जब भी इस गांव में आते हैं, तब-तब उनका रथ मुरली मनोहर मंदिर में ही ठहरता है. यहां पर होली और जन्माष्टमी के उत्सव धूमधाम से मनाए जाते हैं.'

बंजार में बनी चैहणी कोठी
बंजार में बनी चैहणी कोठी (सोशल मीडिया)

जोगनी की होती है पूजा

देवता ऋषि ऋंगा ने इस चैहनी कोठी में योगनियों की स्थापना की. बंजार के स्थानीय निवासी लक्ष्मण कुमार, नवल किशोर का कहना है कि जोगनियों का मतलब वन देवियों से हैं और ग्रामीण इलाकों में वन देवियों को भी माता दुर्गा का रूप माना जाता है. ऐसे में श्रृंगा ऋषि ने इस कोठी के सबसे ऊपरी हिस्से में जोगनियों की स्थापना की है और त्योहारों के समय जोगनियों का विशेष रूप से पूजन यहां पर किया जाता है. यहां पर तीज त्यौहार के समय कुछ विशेष लोग ही कोठी में प्रवेश करते हैं और पूजा पाठ संपन्न होने के बाद में वापस उतर जाते हैं. बाकी लोगों को कोठी के भीतर जाने की अनुमति नहीं है.

ये भी पढ़ें: कुल्लू में इस बार मई माह में गिर गया पर्यटन कारोबार, जून में हालात सुधरने की उम्मीद

कुल्लू: भारत की धरती पर प्रेम की अनेक अमर कहानियां आज भी सांस ले रही हैं. कुछ ग्रंथों में लिखी गईं, तो कुछ पत्थरों और संगमरमर में तराशी गईं हैं और जब प्रेम दिल में उतर कर पत्थरों में ढल जाए, तो वो केवल स्मृति नहीं, इतिहास बन जाता है. कहते हैं कि जब प्यार पत्थरों से बात करता है तो कुछ ऐसा अजूबा बना देता है जो सदियों तक खड़ा रहता है.

आपने ताजमहल के बारे में सुना ही होगा, लेकिन क्या पहाड़ों की गोद में बनीं 15 मंजिला ऊंची इमारत के बारे में सुना है. ये सिर्फ एक इमारत नहीं एक राजा के टूटे और दुखी दिल की आवाज है, जो अब भी वादियों में गूंजती है. राजा को रानी से ऐसा इश्क था जो मरने के बाद भी अमर हो गया. हिमाचल प्रदेश की सुरम्य वादियों में स्थित कुल्लू के चैहनी कोठी भी एक ऐसी ही अमर प्रेम गाथा की साक्षी है. ये सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि सात सौ साल पुराने उस प्रेम की जीवंत मिसाल है, जिसे एक राजा ने अपनी रानी की याद में अमर कर दिया.

बंजार में बनी चैहणी कोठी
बंजार में बनी चैहणी कोठी (सोशल मीडिया)

इस कोठी में छिपा है इतिहास

कुल्लू जिले के बंजार क्षेत्र में स्थित यह ऐतिहासिक कोठी, न सिर्फ स्थापत्य की दृष्टि से बेजोड़ है, बल्कि इसकी हर दीवार, हर शहतीर में एक भावनात्मक इतिहास छिपा हुआ है. भूकंपों और समय की मार को सहते हुए भी ये कोठी आज गर्व से खड़ी है. ये इमारत काष्ठकुणी शैली में तैयार की गई है. ये बंजार से 5 किलोमीटर और श्रृंगा ऋषि मंदिर बागी से 1 किलोमीटर की दूरी पर है. यह गांव इसी कोठी के कारण पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.

राजा ने रानी की याद में किया था इसका निर्माण

इतिहासकार डॉक्टर सूरत ठाकुर ने बताया कि 'इस क्षेत्र में ढाढिया ठाकुर का राज चलता था और वो अपनी पत्नी चैहणी से काफी प्रेम करता था, लेकिन बाद में अचानक उसकी पत्नी का देहांत हो गया और वो इसकी याद में काफी उदास रहता था. पत्नी की मौत के बाद ठाकुर ने ही उसकी याद में ही ये अनूठी कोठी बनवाई थी, जो आज भी उनके अमर प्रेम की याद दिलाती है. रानी के नाम पर ही इसे चैहणी कोठी पड़ा. पहले ये कोठी 15 मंजिल ऊंची थी. साल 1905 के भूकंप में इसकी पांच मंजिलें गिर गईं, लेकिन थड़े समेत अब भी इसकी 10 मंजिलें विद्यमान हैं. अभी इस कोठी की ऊपर की मंजिल में जोगनियों की मूर्तियां विद्यमान हैं, जिनकी त्यौहार के समय पूजा अर्चना की जाती है.'

कुल्लुवी काष्ठकुणी शैली में बनी है ये कोठी

राजा की रानी चली गई... लेकिन पीछे छोड़ गई एक इमारत, जो आज भी मोहब्बत की काहानी कहती है. पुरातत्व की दृष्टि से ये कोठी महत्वपूर्ण वास्तुकृति है. चैहणी कोठी को कुल्लुवी काष्ठकुणी से बनवाया गया है. इसका आधार वर्गाकार चौकोर है. प्रथम मंजिल से लेकर अंतिम मंजिल तक दीवारों की लम्बाई-चौड़ाई बराबर हैं. चिनाई पत्थर और देवदार की लकड़ी की शहतीरों से की गई है. चारों तरफ दीवारों पर एक के ऊपर दूसरी शहतीर लगाई हुई है. इनके बीच में साफ किए हुए पत्थरों की चिनाई की गई है. यही क्रम लगातार छत तक चलता हुआ दिखाई देता है. अंतिम मंजिल में दीवारों से बाहर 4 फुट चौड़ा बरामदा बना है. बीच-बीच में झरोखे रखे गए हैं, जिनसे चारों ओर नजर रखी जा सकती है.

बंजार में बनी चैहणी कोठी
बंजार में बनी चैहणी कोठी (सोशल मीडिया)

आज भी यहां आते हैं ढाढिया ठाकुर के वंशज

इस कोठी में 5 मंजिल तक केवल पत्थर का थड़ा बनाया गया है. उसके बाद काठकुणी की चिनाई हुई है. अंतिम मंजिल तक पहुंचने के लिए थड़े से बरामदे तक देवदार के बड़े पेड़ की शहतीर से सीढ़ी लगाई गई है. इस कोठी के साथ ही ऊपर की तरफ देवता श्रृंगा ऋषि का भंडार गृह 5वीं मंजिल पर कोट शैली में बना है, जिसमें देवता का अनाज और बड़े बर्तन रखे जाते हैं. आज भी इस कोट में ढाढिया ठाकुर के वंशज आते हैं और ढाढिया ठाकुर की तलवारें इत्यादि इसमें अब भी मौजूद हैं.

देवता श्रृंगा ऋषि का मोहरा कोठी में मौजूद

हिमालय नीति अभियान गुमान सिंह ठाकुर के संयोजक गुमान सिंह ने कहा कि 'यहां इसी कोठी में देवता श्रृंगा ऋषि का एक मोहरा भी विद्यमान है, जिसे कुल्लू के राजा मान सिंह ने सन 1674 ई. में देवता को चढ़ाया था. एक मोहरा राजा टेढ़ी सिंह ने भी देवता को चढ़ाया था. पहले विवाह-शादियों तथा हवन-यज्ञ इत्यादि में यह मोहरा लोगों के घरों में ले जाया जाता था, लेकिन बाद इसे यही रखा गया और यहां पर इसकी पूजा अर्चना की जाती है.'

बंजार में बनी चैहणी कोठी
बंजार में बनी चैहणी कोठी (सोशल मीडिया)

पांच मंजिला मुरली मनोहर का मंदिर मौजूद

चैहनी कोठी के दक्षिण में 20 फुट की दूरी पर मुरली मनोहर का पुरातन मंदिर है. गुमान सिंह ने बताया कि 'मुरली मननोहर मंदिर का निर्माण मंडी के राजा मंगल सेन ने करवाया था. राजा मंगल सेन ने मुरली मनोहर की मूर्ति यहां पर मंगलौर से मंगवाई थी, जिसे कुल्लू के शासकों ने स्थापित किया था. ये मंदिर भी 5 मंजिला है. देवता श्रृंगा ऋषि जब-जब भी इस गांव में आते हैं, तब-तब उनका रथ मुरली मनोहर मंदिर में ही ठहरता है. यहां पर होली और जन्माष्टमी के उत्सव धूमधाम से मनाए जाते हैं.'

बंजार में बनी चैहणी कोठी
बंजार में बनी चैहणी कोठी (सोशल मीडिया)

जोगनी की होती है पूजा

देवता ऋषि ऋंगा ने इस चैहनी कोठी में योगनियों की स्थापना की. बंजार के स्थानीय निवासी लक्ष्मण कुमार, नवल किशोर का कहना है कि जोगनियों का मतलब वन देवियों से हैं और ग्रामीण इलाकों में वन देवियों को भी माता दुर्गा का रूप माना जाता है. ऐसे में श्रृंगा ऋषि ने इस कोठी के सबसे ऊपरी हिस्से में जोगनियों की स्थापना की है और त्योहारों के समय जोगनियों का विशेष रूप से पूजन यहां पर किया जाता है. यहां पर तीज त्यौहार के समय कुछ विशेष लोग ही कोठी में प्रवेश करते हैं और पूजा पाठ संपन्न होने के बाद में वापस उतर जाते हैं. बाकी लोगों को कोठी के भीतर जाने की अनुमति नहीं है.

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