नई दिल्ली: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के जेल जाने और सरकार का कामकाज ठप होने की बीजेपी विधायकों द्वारा राष्ट्रपति से शिकायत के बाद से बीते कुछ दिनों से राष्ट्रपति शासन की चर्चा इस समय सुर्खियों में है. राष्ट्रपति ने बीजेपी विधायकों के ज्ञापन को संज्ञान लेते हुए उसे गृह मंत्रालय को भेज दिया है. उधर, बीजेपी के विधायक व विधानसभा में नेता विपक्ष विजेंद्र गुप्ता साफ कहते हैं कि दिल्ली में प्रशासनिक व्यवस्था पंगु हो चुकी है. केंद्र सरकार की योजनाओं को जानबूझकर दिल्ली में लागू नहीं किया जा रहा है. कैग की 11 रिपोर्ट्स विधानसभा के पटल पर नहीं रखी गई है और सरकार का कामकाज ठप है.
गृह मंत्रालय को दो पत्र भेज चुके हैं LG: भाजपा के राष्ट्रपति को ज्ञापन देने से पहले भी प्रशासनिक कामकाज ठप होने का हवाला देकर उपराज्यपाल वीके सक्सेना गृह मंत्रालय को दो पत्र भेज चुके हैं. इसमें दिल्ली सरकार के मंत्री राजकुमार आनंद का अचानक मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद मंत्री पद खाली होने का ज़िक्र किया था. मंगलवार को पूरे दिन AAP के शीर्ष नेता संजय सिंह, आतिशी, सौरभ भारद्वाज व अन्य नेता खुलकर आरोप लगाते रहे कि दिल्ली में ऐसे हालात जानबूझकर बनाए जा रहे हैं कि राष्ट्रपति शासन लागू हो जाए.
भारत सरकार इंतजार करेगी: इस संबंध में दिल्ली सरकार के पूर्व मुख्य सचिव उमेश सहगल का कहना है, "अगर राष्ट्रपति बीजेपी विधायकों द्वारा लगाए आरोपों और शिकायत से संतुष्ट हो गई कि दिल्ली में सरकार नहीं चल रही है, तो वह राष्ट्रपति शासन लागू कर सकती है. मेरे हिसाब से दिल्ली में 8 महीने से कोई स्थिति नहीं बदली है. पहले भी हालत वही थे, अभी भी वैसे हालात बने हुए हैं. अरविंद केजरीवाल के जमानत पर सुप्रीम कोर्ट में फैसला सुरक्षित है. अगर उन्हें बेल मिल जाती है तो प्रदेश का काम चलना शुरू हो जाएगा."
"मेरा मानना है कि भारत सरकार इसका इंतजार करेगी. हालांकि, दिल्ली में एमसीडी का काम अटका पड़ा है. दिल्ली में ग्रेड ए के अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग जो कमेटी करती है, उसके हेड मुख्यमंत्री हैं, उसकी कोई मीटिंग आठ महीने में नहीं हो पाई है." -उमेश सहगल, पूर्व मुख्य सचिव, दिल्ली सरकार
10 साल पहले भी दिल्ली में लगा था राष्ट्रपति शासन: दिल्ली में वर्तमान हालात को देखते हुए राष्ट्रपति शासन लगेगा या नहीं, यह तय नहीं हुआ है. लेकिन इससे पहले दिल्ली में जब फरवरी 2014 में राष्ट्रपति शासन लगा था, तब उसके कारण भी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी आम आदमी पार्टी ही थी. राजनीति में आने के बाद अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में जब आम आदमी पार्टी ने दिसंबर 2013 में विधानसभा का चुनाव लड़ा था तो पार्टी के सिर्फ 28 सीट ही जीती थी. सरकार चलाने के लिए 36 विधायकों का समर्थन चाहिए. तब कांग्रेस के समर्थन से आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में सरकार बनाई. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बने.
यह सरकार कुल 49 दिन तक ही चली. दिल्ली विधानसभा में जब विपक्ष में बैठी भाजपा ने केजरीवाल सरकार से जन लोकपाल बिल लाने को मांग की तो सरकार वह बिल तो लाई लेकिन कांग्रेस का समर्थन इस बिल को नहीं मिला. ऐसी स्थिति बनी की मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 49 दिन की सरकार चलाने के बाद ही इस्तीफा देना पड़ा. मुख्यमंत्री विधानसभा से सीधे कनॉट प्लेस स्थित तब के पार्टी कार्यालय पहुंचे और वहां पर उन्होंने सार्वजनिक रूप से इस्तीफा का ऐलान कर दिया.
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तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के इस्तीफा को स्वीकारते हुए तत्काल प्रभाव से दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया. यह जानकारी तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग के कार्यालय से सार्वजनिक की गई थी. तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग ने दिल्ली विधानसभा को जन लोकपाल विधेयक पेश नहीं करने का सुझाव दिया था. उन्होंने कहा था कि इसके लिए पहले केंद्र सरकार की मंजूरी लेना जरूरी है. तब मुख्यमंत्री ने उपराज्यपाल पर निशाना साधते हुए कहा कि वह केंद्र सरकार के वायसराय की तरह काम करते हैं जो सोचती है कि अभी ब्रिटिश सरकार है.
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