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केज कल्चर से फिश फार्मिंग, सरभोंका जलाशय में मछुआरों को हो रहा अच्छा मुनाफा, सालाना 1600 मीट्रिक टन मछली उत्पादन - FISH PRODUCTION

मछली पालन विभाग की तरफ से सरभोंका जलाशय में एक्वा पार्क की स्थापना का भी प्लान है.

CAGE CULTURE FISH FARMING
केज कल्चर से मछली उत्पादन (ETV Bharat Chhattisgarh)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : April 3, 2025 at 5:26 PM IST

5 Min Read

कोरबा: छत्तीसगढ़ में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़े और वनांचल पोड़ी उपरोड़ा विकासखंड के ग्राम सरभोंका के निमऊ कछार में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना और जिला खनिज संस्थान न्यास के सहयोग से सरभोंका जलाशय में स्थानीय मछुवारे केज के माध्यम से मछली का उत्पादन कर रहे हैं. यह इलाका बहुउद्देशीय मिनीमाता बांगो डैम के कार्यक्षेत्र का भी इलाका है.

सरभोंका जलाशय में दूर-दूर तक अच्छी खासी तादात में जलराशि मौजूद है. जिसके कारण यहां केज कल्चर के जरिए मछली का उत्पादन हो रहा है. मछुआरों के समिति की आमदनी तो बढ़ी ही है, अब मछली पालन विभाग की तरफ से यहां एक्वा पार्क की स्थापना का प्लान है. इस योजना की स्वीकृति सीधे भारत सरकार से प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत मिली है. हालांकि अभी यह योजना बेहद शुरुआती स्तर में है. विस्तृत दिशा निर्देश आने बाकी हैं, लेकिन अधिकारियों ने जमीनी तैयारी शुरू कर दी है.

केज कल्चर से मछली उत्पादन (ETV Bharat Chhattisgarh)

स्थानीय मछुआरे इस तरह से कर रहे हैं काम : हाल ही में कलेक्टर अजीत वसंत ने भी इस क्षेत्र का दौरा किया था और व्यवस्थाओं का जायजा लिया. मछली पालन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार फिलहाल यहां केज कल्चर के माध्यम से मछुआरे हर साल 80 से 90 हजार की आमदनी कमा रहे हैं.
इसके साथ ही साफ-सफाई, मछली के परिवहन और बिक्री में भी आमदनी होती है. सरभोंका जलाशय में 800 केज लगाए गए हैं. जिसमें 9 पंजीकृत मछुवारा समितियां काम कर रही हैं. जिनके 160 सदस्यों को 5-5 केज प्रति सदस्य उपलब्ध कराया गया है. उन्हें प्रशिक्षित और अनुभवी व्यक्ति द्वारा केज के माध्यम से मछली उत्पादन बढ़ाने के लिए समय-समय पर मार्गदर्शन भी मिल रहा है.

Cage Culture Fish Farming
केज कल्चर से मछली उत्पादन (ETV Bharat Chhattisgarh)

छत्तीसगढ़ के बाहर दूसरे राज्यों में निर्यात : 800 केज के जरिए यहां 1600 मीट्रिक टन मछलियों का उत्पादन सलाना किया जा रहा है. यहां से उत्पादन की जाने वाली मछली को न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि राज्य के बाहर निर्यात किया जाता है. जिससे मछुआरों को अतिरिक्त आमदनी होती है.

प्रशासन ने मछुआरा को दिया है बेहतर सुविधा का भरोसा : केज कल्चर के जरिए मछली पालन से मछुआरों के जीवनस्तर में भी बदलाव आया है. कलेक्टर वसंत ने जिले में केज कल्चर को बढ़ावा देने और इसके माध्यम से स्थानीय ग्रामीणों मछुवारों को रोजगार का अवसर प्राप्त होने से आर्थिक लाभ मिलने और केज के विस्तार के लिए जिला प्रशासन द्वारा हर प्रकार सहयोग की बात कही है. लैण्डिंग सेंटर, प्रोसेसिंग यूनिट के विस्तार का भी प्लान है जिससे कि मछलियों को निर्यात करने के लिए बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया जा सके और ज्यादा से ज्यादा मुनाफा प्राप्त किया जा सके.

केज कल्चर से मछली पालन से किसानों को लाभ तो हुआ है, लेकिन अभी मछुआरा समिति के कई मछुआरे काफी पिछड़े हुए हैं. जिन्हें और भी मदद की दरकार है. सरभोंका में केज कल्चर से मछली उत्पादन किया जा रहा है, वहां प्रोसेसिंग यूनिट लगाने की भी जरूरत है. प्रशासन ने हर संभव मदद देने का वादा भी किया है. हालांकि वर्तमान में मछली किसानों की आमदनी बढ़ी है. आने वाले समय में इसका और भी विस्तार किया जाए, और ज्यादा सुविधाएं दी जाएगी. तो यह मछुआरों के लिए और भी बेहतर होगा.- सुखदेव केंवट, मीडिया प्रभारी, केंवट समाज, बरपाली

एक्वा पार्क को मिली है स्वीकृति : सरभोंका में फिलहाल केज कल्चर से अच्छी खासी तादात में मछलियों का उत्पादन हो रहा है. बांगो डैम के कार्यक्षेत्र में होने के कारण यहां पर्याप्त मात्रा में जलराशि मौजूद है. संभवत: या छत्तीसगढ़ का पहला ऐसा क्षेत्र होगा जहां एक्वा पार्क के विस्तार की योजना है. प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से इस परियोजना को स्वीकृति मिल चुकी है. हालांकि अधिकारी अब विस्तृत दिशा निर्देश का इंतजार कर रहे हैं, जिससे कि यह स्पष्ट हो सके कि एक्वा पार्क के विस्तार में किस तरह से काम किया जाना है और आने वाले समय में यह पूरा क्षेत्र कैसे एक्वा टूरिज्म का एक केंद्र बिंदु बन सके, जो कि छत्तीसगढ़ में अपने एक्वा टूरिज्म के लिए पहचाना जाएगा. इस परियोजना की सबसे अच्छी बात यह भी है कि, इस योजना में स्थानीय मछुआरों और उनके परिवारों की आमदनी का ध्यान रखा गया है. इस परियोजना में स्थानीय मछुआरों की अहम भूमिका होगी.

फिलहाल केज कल्चर से मछलियों का उत्पादन एक्वा पार्क की स्थापना प्रस्तावित : मछली पालन विभाग के सहायक संचालक क्रांति कुमार बघेल कहते हैं कि सरभोंका के जलाशय में फिलहाल केज कल्चर से मछलियों का उत्पादन हो रहा है. यहां से प्रत्येक मछुआरे की आमदनी 80 से 90 हजार की सालाना है. वह इससे अधिक मुनाफा भी कमा लेते हैं. केज कल्चर के जरिए एक केज में मछलियों को पाला जाता है और वहीं मछलियां बड़ी होती हैं. इसके बाद इन्हें केज से निकलकर प्रोसेस करके निर्यात किया जाता है. सरभोंका से छत्तीसगढ़ और राज्य के बाहर भी मछलियों का निर्यात हो रहा है. 1600 टन मछलियों का उत्पादन सालाना किया जा रहा है. भविष्य में यहां एक्वा पार्क के स्थापना की योजना है, फिलहाल यह बेहद शुरुआती फेज में है. भारत सरकार से योजना को स्वीकृति मिली है.

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सरभोंका जलाशय में दूर-दूर तक अच्छी खासी तादात में जलराशि मौजूद है. जिसके कारण यहां केज कल्चर के जरिए मछली का उत्पादन हो रहा है. मछुआरों के समिति की आमदनी तो बढ़ी ही है, अब मछली पालन विभाग की तरफ से यहां एक्वा पार्क की स्थापना का प्लान है. इस योजना की स्वीकृति सीधे भारत सरकार से प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत मिली है. हालांकि अभी यह योजना बेहद शुरुआती स्तर में है. विस्तृत दिशा निर्देश आने बाकी हैं, लेकिन अधिकारियों ने जमीनी तैयारी शुरू कर दी है.

केज कल्चर से मछली उत्पादन (ETV Bharat Chhattisgarh)

स्थानीय मछुआरे इस तरह से कर रहे हैं काम : हाल ही में कलेक्टर अजीत वसंत ने भी इस क्षेत्र का दौरा किया था और व्यवस्थाओं का जायजा लिया. मछली पालन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार फिलहाल यहां केज कल्चर के माध्यम से मछुआरे हर साल 80 से 90 हजार की आमदनी कमा रहे हैं.
इसके साथ ही साफ-सफाई, मछली के परिवहन और बिक्री में भी आमदनी होती है. सरभोंका जलाशय में 800 केज लगाए गए हैं. जिसमें 9 पंजीकृत मछुवारा समितियां काम कर रही हैं. जिनके 160 सदस्यों को 5-5 केज प्रति सदस्य उपलब्ध कराया गया है. उन्हें प्रशिक्षित और अनुभवी व्यक्ति द्वारा केज के माध्यम से मछली उत्पादन बढ़ाने के लिए समय-समय पर मार्गदर्शन भी मिल रहा है.

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केज कल्चर से मछली उत्पादन (ETV Bharat Chhattisgarh)

छत्तीसगढ़ के बाहर दूसरे राज्यों में निर्यात : 800 केज के जरिए यहां 1600 मीट्रिक टन मछलियों का उत्पादन सलाना किया जा रहा है. यहां से उत्पादन की जाने वाली मछली को न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि राज्य के बाहर निर्यात किया जाता है. जिससे मछुआरों को अतिरिक्त आमदनी होती है.

प्रशासन ने मछुआरा को दिया है बेहतर सुविधा का भरोसा : केज कल्चर के जरिए मछली पालन से मछुआरों के जीवनस्तर में भी बदलाव आया है. कलेक्टर वसंत ने जिले में केज कल्चर को बढ़ावा देने और इसके माध्यम से स्थानीय ग्रामीणों मछुवारों को रोजगार का अवसर प्राप्त होने से आर्थिक लाभ मिलने और केज के विस्तार के लिए जिला प्रशासन द्वारा हर प्रकार सहयोग की बात कही है. लैण्डिंग सेंटर, प्रोसेसिंग यूनिट के विस्तार का भी प्लान है जिससे कि मछलियों को निर्यात करने के लिए बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया जा सके और ज्यादा से ज्यादा मुनाफा प्राप्त किया जा सके.

केज कल्चर से मछली पालन से किसानों को लाभ तो हुआ है, लेकिन अभी मछुआरा समिति के कई मछुआरे काफी पिछड़े हुए हैं. जिन्हें और भी मदद की दरकार है. सरभोंका में केज कल्चर से मछली उत्पादन किया जा रहा है, वहां प्रोसेसिंग यूनिट लगाने की भी जरूरत है. प्रशासन ने हर संभव मदद देने का वादा भी किया है. हालांकि वर्तमान में मछली किसानों की आमदनी बढ़ी है. आने वाले समय में इसका और भी विस्तार किया जाए, और ज्यादा सुविधाएं दी जाएगी. तो यह मछुआरों के लिए और भी बेहतर होगा.- सुखदेव केंवट, मीडिया प्रभारी, केंवट समाज, बरपाली

एक्वा पार्क को मिली है स्वीकृति : सरभोंका में फिलहाल केज कल्चर से अच्छी खासी तादात में मछलियों का उत्पादन हो रहा है. बांगो डैम के कार्यक्षेत्र में होने के कारण यहां पर्याप्त मात्रा में जलराशि मौजूद है. संभवत: या छत्तीसगढ़ का पहला ऐसा क्षेत्र होगा जहां एक्वा पार्क के विस्तार की योजना है. प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से इस परियोजना को स्वीकृति मिल चुकी है. हालांकि अधिकारी अब विस्तृत दिशा निर्देश का इंतजार कर रहे हैं, जिससे कि यह स्पष्ट हो सके कि एक्वा पार्क के विस्तार में किस तरह से काम किया जाना है और आने वाले समय में यह पूरा क्षेत्र कैसे एक्वा टूरिज्म का एक केंद्र बिंदु बन सके, जो कि छत्तीसगढ़ में अपने एक्वा टूरिज्म के लिए पहचाना जाएगा. इस परियोजना की सबसे अच्छी बात यह भी है कि, इस योजना में स्थानीय मछुआरों और उनके परिवारों की आमदनी का ध्यान रखा गया है. इस परियोजना में स्थानीय मछुआरों की अहम भूमिका होगी.

फिलहाल केज कल्चर से मछलियों का उत्पादन एक्वा पार्क की स्थापना प्रस्तावित : मछली पालन विभाग के सहायक संचालक क्रांति कुमार बघेल कहते हैं कि सरभोंका के जलाशय में फिलहाल केज कल्चर से मछलियों का उत्पादन हो रहा है. यहां से प्रत्येक मछुआरे की आमदनी 80 से 90 हजार की सालाना है. वह इससे अधिक मुनाफा भी कमा लेते हैं. केज कल्चर के जरिए एक केज में मछलियों को पाला जाता है और वहीं मछलियां बड़ी होती हैं. इसके बाद इन्हें केज से निकलकर प्रोसेस करके निर्यात किया जाता है. सरभोंका से छत्तीसगढ़ और राज्य के बाहर भी मछलियों का निर्यात हो रहा है. 1600 टन मछलियों का उत्पादन सालाना किया जा रहा है. भविष्य में यहां एक्वा पार्क के स्थापना की योजना है, फिलहाल यह बेहद शुरुआती फेज में है. भारत सरकार से योजना को स्वीकृति मिली है.

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