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बुरहानपुर में 65 किलो करेले से बनाई गणेश प्रतिमा, वाणी में मधुरता बनाए रखने का दे रही संदेश - Burhanpur Unique Karela Ganesh

पिछले कुछ सालों से गणेश पंडालों से झांकियों की परंपरा लगभग खत्म हो गई थी लेकिन इस बार बुरहानपुर में नजारा बदला हुआ है. यहां कई गणेश पंडालों में इस बार झांकिया भी दिखाई दे रही हैं. इन झांकियों के माध्यम से लोगों को संदेश दिया जा रहा है.

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Sep 14, 2024, 7:52 AM IST

BURHANPUR UNIQUE KARELA GANESH
बुरहानपुर में करेले से बनाई गणेश प्रतिमा (ETV Bharat)

बुरहानपुर: चारों तरफ गणेश उत्सव की रौनक देखने को मिल रही है. जगह-जगह पंडालों में बप्पा की आकर्षक व प्रेरणादायक प्रतिमाएं विराजित की गई हैं. इधर महाराष्ट्र से सटे बुरहानपुर में एक बार फिर गणेश उत्सव के मौके पर आकर्षक और संदेश वाचक झांकिया बनाने की परंपरा लौट रही है. यहां एक ऐसे ही पंडाल में करेले से बनी गणपति की प्रतिमा स्थापित की गई है. पंडाल में भगवान कृष्ण और द्रोपदी की एक झांकी भी लोगों के आकर्षण का केन्द्र बनी है.

वाणी में मधुरता बनाए रखने का प्रतिमा दे रही संदेश (ETV Bharat)

गणपति मूर्ति बनाने में 65 किलो करेले का उपयोग

शहर के सिंधीबस्ती के युवा और कृषि केंद्र संचालक किशोर आडवाणी ने करेले से निर्मित गणपति की मूर्ति बनाई है. इस मूर्ति में 65 किलो करेले का उपयोग किया गया है. यह मूर्ति लोगों को लुभा रही है. शाम होते ही पंडाल जगमगा रहा है. बड़ी संख्या में भक्त गणेशजी के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं.

मूर्ति को करेले से बनाने के पीछे का मकसद

सार्वजनिक बाल गणेश मंडल के किशोर आडवाणी ने बताया कि "इस मूर्ति को बनाने के पीछे का मकसद है कि लोगों के व्यवहार में बदलाव आए. लोगों से यह अपील की जा रही है कि अपनी वाणी में कड़वे शब्दों का उपयोग नहीं करें बल्कि मीठे शब्दों का इस्तेमाल करें. वाणी में सदैव मधुरता बनाए रखें इससे आपसी व्यवहार अच्छा बना रहता है."

Lord Krishna Draupadi tableau
भगवान कृष्ण और द्रोपदी की झांकी (ETV Bharat)

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भगवान कृष्ण और द्रोपदी की झांकी

किशोर आडवाणी ने बताया कि "पंडाल में भगवान कृष्ण और द्रोपदी की एक झांकी भी सजाई है. इसमें रक्षाबंधन का असल और पौराणिक महत्व बताया गया है. इससे यह संदेश दिया गया है कि रक्षाबंधन का मतलब क्या है. वर्तमान समय में कलाई पर रक्षा सूत्र बंधवाओ और शाम को किसी होटल में खाना खा आओ. रक्षा बंधन का असल मकसद क्या है उसे झांकी के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है. रक्षाबंधन का चलन हमारे देवी देवताओं के समय से है. यमराज, भगवान कृष्ण सहित कई देवी देवताओं ने इस त्योहार को मनाया है. बहनों की रक्षा का जिम्मा उठाया. प्राचीन समय में बहनों के हर सुख दुख में भाई खड़े रहते थे लेकिन कलयुग में यह जिम्मेदारी नजरअंदाज हो रही हैं."

बुरहानपुर: चारों तरफ गणेश उत्सव की रौनक देखने को मिल रही है. जगह-जगह पंडालों में बप्पा की आकर्षक व प्रेरणादायक प्रतिमाएं विराजित की गई हैं. इधर महाराष्ट्र से सटे बुरहानपुर में एक बार फिर गणेश उत्सव के मौके पर आकर्षक और संदेश वाचक झांकिया बनाने की परंपरा लौट रही है. यहां एक ऐसे ही पंडाल में करेले से बनी गणपति की प्रतिमा स्थापित की गई है. पंडाल में भगवान कृष्ण और द्रोपदी की एक झांकी भी लोगों के आकर्षण का केन्द्र बनी है.

वाणी में मधुरता बनाए रखने का प्रतिमा दे रही संदेश (ETV Bharat)

गणपति मूर्ति बनाने में 65 किलो करेले का उपयोग

शहर के सिंधीबस्ती के युवा और कृषि केंद्र संचालक किशोर आडवाणी ने करेले से निर्मित गणपति की मूर्ति बनाई है. इस मूर्ति में 65 किलो करेले का उपयोग किया गया है. यह मूर्ति लोगों को लुभा रही है. शाम होते ही पंडाल जगमगा रहा है. बड़ी संख्या में भक्त गणेशजी के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं.

मूर्ति को करेले से बनाने के पीछे का मकसद

सार्वजनिक बाल गणेश मंडल के किशोर आडवाणी ने बताया कि "इस मूर्ति को बनाने के पीछे का मकसद है कि लोगों के व्यवहार में बदलाव आए. लोगों से यह अपील की जा रही है कि अपनी वाणी में कड़वे शब्दों का उपयोग नहीं करें बल्कि मीठे शब्दों का इस्तेमाल करें. वाणी में सदैव मधुरता बनाए रखें इससे आपसी व्यवहार अच्छा बना रहता है."

Lord Krishna Draupadi tableau
भगवान कृष्ण और द्रोपदी की झांकी (ETV Bharat)

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भगवान कृष्ण और द्रोपदी की झांकी

किशोर आडवाणी ने बताया कि "पंडाल में भगवान कृष्ण और द्रोपदी की एक झांकी भी सजाई है. इसमें रक्षाबंधन का असल और पौराणिक महत्व बताया गया है. इससे यह संदेश दिया गया है कि रक्षाबंधन का मतलब क्या है. वर्तमान समय में कलाई पर रक्षा सूत्र बंधवाओ और शाम को किसी होटल में खाना खा आओ. रक्षा बंधन का असल मकसद क्या है उसे झांकी के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है. रक्षाबंधन का चलन हमारे देवी देवताओं के समय से है. यमराज, भगवान कृष्ण सहित कई देवी देवताओं ने इस त्योहार को मनाया है. बहनों की रक्षा का जिम्मा उठाया. प्राचीन समय में बहनों के हर सुख दुख में भाई खड़े रहते थे लेकिन कलयुग में यह जिम्मेदारी नजरअंदाज हो रही हैं."

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