बिलासपुर : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सीजीएमएससी में 411 करोड़ के मेडिकल उपकरण खरीदी घोटाले के 4 आरोपियों की अग्रिम जमानत खारिज कर दी है. कोर्ट ने माना कि एसीबी और ईओडब्ल्यू की प्रारंभिक जांच में इनकी भूमिका सामने आई है लिहाजा जमानत का लाभ नहीं दिया जा सकता है. आपको बता दें कि एसीबी और ईओडब्ल्यू की टीम ने मोक्षित कार्पोरेशन और अन्य के खिलाफ धारा 120-बी, 409 आईपीसी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(2), 13(1)(ए), 7(सी) के तहत मामला दर्ज किया है.
क्यों हाईकोर्ट ने जमानत याचिका की खारिज : राज्य शासन की तरफ से उप महाधिवक्ता डॉ. सौरभ पांडेय ने अग्रिम जमानत का विरोध करते हुए कहा कि रिकॉर्डर्स एंड मेडिकेयर सिस्टम्स ने मोक्षित कॉर्पोरेशन और श्री शारदा इंडस्ट्रीज के साथ मिलकर पूल टेंडरिंग की. तीनों कंपनियों के रीजेंट के नाम, पैकेज और दरें एक जैसी थीं. यह सामान्य नहीं है. इससे साफ है कि टेंडर में गड़बड़ी की गई. दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि मामले की जांच शुरुआती चरण में है.कई सह-आरोपियों को हिरासत में लिया जा चुका है. 411 करोड़ के घोटाले में इनकी संलिप्तता प्रथम दृष्टया दिखती है. इस आधार पर हाईकोर्ट ने राजेश गुप्ता, अभिषेक कौशल, नीरज गुप्ता और अविनेश कुमार की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी है.
क्या है सीजीएमएससी घोटाला ?: स्वास्थ्य विभाग ने साल 2021 में उपकरणों और मशीनों की खरीदी की प्रक्रिया शुरू की थी.सीजीएमएससी (छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड) ने 26-27 दिन में 411 करोड़ की खरीदी का आदेश जारी किया. इसमें आरोप है कि मशीनों की जरूरत का सही आंकलन नहीं किया गया. भंडारण की सुविधा भी नहीं थी. इसके बाद भी बड़ी संख्या में मशीनें खरीदी गईं.रीएजेंट की रख-रखाव की कोई व्यवस्था नहीं थी, फिर भी स्वास्थ्य केन्द्रों में स्टोर करा दिया गया. वहीं सीजीएमएससी के अधिकारियों की ओर से रीएजेंट सप्लाई करने वाली कंपनी को व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने की शासन की प्रक्रिया का पालन नहीं करते हुए खरीदी की गई.आरोप है कि ईडीटीए ट्यूब 2352 रुपए प्रति नग की दर से खरीदी गई, जबकि अन्य संस्थाएं यही ट्यूब 8.50 रुपए में खरीद रही थीं.इससे करोड़ों का नुकसान हुआ.
आरोपियों ने खुद को टेंडर प्रक्रिया से बताया अलग : इसके साथ ही दवा-उपकरण की सप्लाई करने वाले फर्म रिकॉर्डर्स एंड मेडिकेयर सिस्टम्स पर आरोप है कि उसने मोक्षित कॉर्पोरेशन और अन्य कंपनियों के साथ मिलकर टेंडर में गड़बड़ी की. चारों कंपनियों के उत्पाद एक जैसे थे.इससे टेंडर प्रक्रिया में मिलीभगत का संदेह हुआ.केस दर्ज करने के बाद एसीबी और ईओडब्ल्यू की टीम ने मोक्षित कॉर्पोरेशन के डायरेक्टर को गिरफ्तार किया है. जिसके बाद फर्म के प्रमोटर, कर्मचारी पंजाब और हरियाणा निवासी अविनेश कुमार, राजेश गुप्ता, अभिषेक कौशल और नीरज गुप्ता ने संभावित गिरफ्तारी से बचने अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी. इसमें कहा गया कि एफआईआर में उनका नाम नहीं है. उनके खिलाफ कोई सीधा आरोप नहीं है. वे केवल कंपनी के कर्मचारी, प्रमोटर, निदेशक और कार्यकारी निदेशक हैं. टेंडर प्रक्रिया में उनकी कोई भूमिका नहीं थी.
कॉस्टेबल की अनिवार्य सेवानिवृत्ति खारिज : हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने एक पुलिस कांस्टेबल की अनिवार्य सेवानिवृत्ति को खारिज कर दिया, क्योंकि सजा अनुपातहीन थी. न्यायालय ने कहा कि अनुशासनात्मक अधिकारियों को कांस्टेबलों पर बड़ा दंड लगाने से पहले पुलिस विनियमन नियम के विनियमन 226 के तहत दिए गए कम दंड पर विचार करना चाहिए.न्यायालय ने कहा कि बर्खास्तगी अंतिम उपाय होना चाहिए और तब तक नहीं की जानी चाहिए जब तक कि अन्य सभी उपाय विफल न हो जाएं.
क्या है मामला ?: रामसागर सिन्हा बिलासपुर के सकरी में कांस्टेबल थे. 31.08.2017 को अनुशासनात्मक अधिकारी ने उनके खिलाफ आरोप पत्र जारी किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि उन्होंने महत्वपूर्ण शिविर सुरक्षा ड्यूटी करने से इनकार कर दिया. वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों की अवहेलना की. अधिकारियों ने दावा किया कि उनके कार्यों ने पुलिस विनियमन संख्या 64 के उप-नियम (2) (4) (5) और छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल अधिनियम, 1968 की धारा 16 और 17 का उल्लंघन किया है.
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