पटना : ट्रांसफर की प्रतीक्षा में बैठे बिहार के हजारों शिक्षक निराश हैं. वजह है कि 50000 से अधिक शिक्षकों का स्थानांतरण नहीं हो पाया है और जिनका स्थानांतरण हुआ है, मनचाही पोस्टिंग नहीं मिल पाई है. वहीं पटना जिले के लिए सबसे अधिक स्थानांतरण के आवेदन मिले थे. लेकिन शुरुआती चरण में ही बीमारी और असाध्य रोग के आधार पर गिने-चुने शिक्षकों का पटना में स्थानांतरण हुआ और बाकी का स्थानांतरण नहीं हुआ. ऐसे में जो पटना में स्थानांतरण के लिए शिक्षक आवेदन किए थे वह काफी निराशा है.
'हमें वापस हमारी पुरानी पोस्टिंग चाहिए' : बिहार के हजारों शिक्षकों के चेहरों पर इन दिनों निराशा और हताशा के गहरे बादल छाए हैं. जिस स्थानांतरण को वे अपनी ज़िंदगी की नई शुरुआत मान रहे थे, वही उनके लिए नई समस्याओं का सबब बन गया है. शिक्षा विभाग के पोर्टल पर 1.30 लाख शिक्षकों का स्थानांतरण तो हो गया, लेकिन कई लोग नई जगह से खुश नहीं हैं.

अब ये शिक्षक विभाग के सामने गुहार लगा रहे हैं कि उनका स्थानांतरण रद्द करके उन्हें पहले वाली जगह वापस भेज दिया जाए और इसके लिए दोबारा आवेदन भी कर रहे हैं. उनका कहना है कि जहां वे पहले पढ़ा रहे थे, वही जगह उनकी व्यक्तिगत जरूरतों के लिए सबसे उपयुक्त थी.
पटना के लिए खत्म नहीं हो रहा इंतजार : स्थानांतरण की इस कहानी में सबसे बड़ा आकर्षण और सबसे बड़ी नाकामी राजधानी पटना रही. हैरान करने वाला आंकड़ा यह है कि स्थानांतरण के लिए सिर्फ पटना जिले के लिए ही 17,000 से अधिक आवेदन आए थे. यह संख्या पटना की जमीनी हकीकत को बयां करती है. विभाग के मुताबिक, पटना के 3,323 सरकारी स्कूलों में पहले से ही लगभग 25,000 शिक्षक तैनात हैं. यहां शिक्षक-छात्र अनुपात पहले ही संतुलन में है. प्राथमिक स्कूलों में औसतन 4-5 और मध्य विद्यालयों में 8-9 शिक्षक हैं. ऐसे में इतनी बड़ी संख्या में पटना की मांग करने वाले शिक्षकों का सपना टूटना तय था और यही हुआ.

मां-बाप बूढ़े हैं, मैं दूर कैसे रहूं? : अनीश सिंह की कहानी उन हजारों शिक्षकों जैसी है, जो परिवार और नौकरी के बीच फंसे हैं. पटना के रहने वाले अनीश की पोस्टिंग बीपीएससी के जरिए सीमांचल में हो गई. वह पटना आना चाहते थे लेकिन उनका ट्रांसफर नहीं हुआ.
''घर में बूढ़े माता-पिता हैं. एक तरफ उनकी देखभाल की जिम्मेदारी, दूसरी तरफ रोजी-रोटी के लिए दूर नौकरी करना. यह दोनों काम एक साथ नहीं हो पा रहे. मेरा दिल हर पल टूट रहा है.''- अनीश सिंह, शिक्षक
'पति पटना में, मैं बेगूसराय में' : शिक्षिका पूजा कुमारी का दर्द अलग ही किस्म का है. वह बेगूसराय में पढ़ाती हैं, जबकि उनके पति पटना में सरकारी नौकरी करते हैं. यह दूरी सिर्फ किलोमीटर की नहीं, बल्कि पूरे परिवार के सुख-चैन की दूरी बन गई है. पूजा की आवाज़ में ममता का दर्द साफ झलकता है.
"हम चाहते हैं कि मेरी भी पोस्टिंग पटना हो जाए. ड्यूटी के साथ-साथ परिवार को भी समय दे सकूं. बच्चों की ठीक से देखभाल हो सके. शुरू में कहा गया था कि नजदीक का जिला मिलेगा, लेकिन यह तो बहुत दूर हो गया. एक मां और पत्नी के तौर पर मेरा दिल उदास है."- पूजा कुमारी, शिक्षिका
'ससुराल पटना में, पोस्टिंग मधुबनी में' : शिक्षिका सनोवर अंजुम का सपना टूटने का दर्द भी कुछ कम नहीं है. उनका ससुराल पटना में है, लेकिन नियुक्ति मधुबनी में हुई है. जब स्थानांतरण की नीति आई, तो उन्होंने पूरी उम्मीद से पटना के लिए आवेदन किया. लेकिन आज उनका चेहरा मायूसी से भरा है.
"पोर्टल पर मेरा ट्रांसफर हुआ ही नहीं दिखता, कोई विचार नहीं हुआ. मैं विभाग से साफ मांग करती हूं कि महिला शिक्षकों को उनके मनचाहे जिले में पोस्टिंग दी जानी चाहिए.''- सनोवर अंजुम, शिक्षिका
बीमार सास-ससुर और पटना में पति : शिक्षिका बबीता रानी के लिए तो जैसे हर दिन एक नई लड़ाई है. उनकी पोस्टिंग जहानाबाद में है, जबकि उनके बीमार सास-ससुर पटना में रहते हैं. पति का पटना में बिजनेस है. बबीता इकलौती बहू होने के नाते खुद उनकी देखभाल करना चाहती हैं. बबीता की आवाज में थकान और निराशा है. लेकिन बबीता को उम्मीद है कि उनके जैसे शिक्षकों पर सरकार कोई निर्णय लेगी.
''सक्षमता पास करके विशिष्ट शिक्षक बनी तो सोचा था कि सालों से चली आ रही परेशानी खत्म हो जाएगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं, परेशानी जस की तस है. सरकार को इसपर ध्यान देने की जरूरत है."- बबीता रानी, शिक्षिका
'पति का इलाज चल रहा है, मुझे पटना ट्रांसफर चाहिए' : प्रियंका कुमारी वर्तमान में समस्तीपुर में पढ़ाती हैं, लेकिन उनका दिल और घर पटना में धड़कता है. उन्होंने अपने पति के मेडिकल ग्राउंड पर पटना स्थानांतरण के लिए आवेदन किया था. लेकिन विभाग की ओर से उनका स्थानांतरण नहीं हुआ. प्रियंका कहती है कि वह सरकार से गुजारिश करती हैं कि उनकी बात सुनी जाए. मेरे पति का इलाज पटना में चल रहा है. कृपया मुझे पटना ट्रांसफर कर दिया जाए.
शिक्षक संघ ने शिक्षा विभाग से किया आग्रह : इन तमाम आहत हृदयों की पीड़ा को बिहार राज्य विद्यालय अध्यापक संघ ने गंभीरता से उठाया है. संघ के अध्यक्ष दीपांकर गौरव साफ शब्दों में कहते हैं, पटना राजधानी है, इसलिए यहां पोस्टिंग का आकर्षण स्वाभाविक है. लेकिन विभाग को सर्वोच्च प्राथमिकता उन जरूरतमंद शिक्षकों को देनी चाहिए, जिनके लिए पटना में पोस्टिंग सचमुच जीवन रेखा है. जैसे मेडिकल ग्राउंड पर या पति-पत्नी दोनों की नौकरी के मामले. उनका आग्रह है कि ऐसे आवेदनों पर संवेदनशीलता और तत्परता से विचार कर उन्हें मंजूरी दी जानी चाहिए.
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