पटना: बिहार विधान परिषद 113 साल का हो गया है. इन 113 साल में कई बदलाव हुए और कई अहम फैसले लिए गए. स्थापना दिवस के मौके पर इसके इतिहास पर चर्चा करेंगे.
गौरवशाली इतिहास: इतिहासकार और लेखक तेजकर झा कहते हैं कि बिहार विधान परिषद का गौरवशाली इतिहास रहा है. इसकी स्थापना का भी किस्सा ऐतिहासिक है, क्योंकि उस वक्त देश में अंग्रेजी शासन थी. एक अप्रैल 1912 को उस वक्त बिहार विधान परिषद की स्थापना हुई जब बंगाल से बिहार और ओडिशा प्रांत को अलग किया गया था.
मॉर्ले मिंटो (एक अधिनियम जो 1909 में ब्रिटिश शासन के द्वारा बनाया गया था.) इसका मकसद था कि भारत में ब्रिटिश शासन में भारतीय की भागीदारी बढ़े. इसी अधिनियम के तहत चुनाव प्रणाली की शुरुआत की गयी थी.
इसी कानून के तहत बनाए गए भारतीय परिषद अधिनियम 1909 के आलोक में 25 अगस्त 1911 को भारत सरकार ने सचिव को पत्र भेजकर बिहार को बंगाल से अलग करने की सिफारिश की. इस सिफारिश का उत्तर 1 नवंबर 1911 को आया. इंग्लैंड के सम्राट ने दिल्ली दरबार में 12 दिसंबर 1911 को बिहार-ओडिशा प्रांत के लिए लेफ्टीनेंट गवर्नर नियुक्त किया.
22 मार्च 1912 को बिहार-ओडिशा प्रांत का गठन हो गया. इसके बाद एक अप्रैल 1912 को चार्ल्स स्टुअर्ट बेली (ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासक) बिहार-ओडिशा के लेफ्टीनेंट गवर्नर बने. इन्हें सलाह देने के लिए भारतीय काउंसिल एक्ट 1861 और 1909 में संसोधन कर गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट बनाया गया. इसी के तहत 1 अप्रैल 1912 को बिहार विधान परिषद का गठन किया गया.
"विधान परिषद का गठन अंग्रेजी शासन काल में हुआ था. शुरुआती दौर में विधान परिषद सलाहकारी था. गवर्नर विधान परिषद के सलाह को मानने के लिए बाध्य नहीं थे. उसे दौर में जो इनकम टैक्स देते थे, वही विधान परिषद के सदस्यों के चुनाव में हिस्सा ले सकते थे. विधान परिषद के ऊपर एग्जीक्यूटिव काउंसिल हुआ करता था." - तेजकर झा, इतिहासकार

शुरुआत में 43 सदस्य: उस वक्त बिहार विधान परिषद में 3 पदेन सदस्य, 21 निर्वाचित सदस्य और 19 मनोनित कुल 43 सदस्य रखे गए. परिषद का गठन होने के बाद पहली बैठक 20 जनवरी 1913 को पटना कॉलेज बांकीपुर से सभागार में हुई थी. उस वक्त विधान परिषद का अपना भवन नहीं था. भवन बनने के बाद पहली बैठक 7 फरवरी 1921 को हुई थी, जिसकी अध्यक्षता सर वॉल्टर माडे (इंग्लैंड के प्रसिद्ध लेखक और ब्रिटिश प्रशासक) ने की थी.
1920 में भारत सरकार अधिनियम 1919 के अनुसार बिहार और ओडिशा को अलग कर दिया गया. 1935 में बिहार और ओडिशा को अलग अलग प्रांत में विभाजित कर दिया गया. इसी दौरान एक सदनीय विधायिका द्विसदनीय में बदल गयी. उच्च सदन में विधान परिषद और निम्न सदन में बिहार विधानसभा.
विधान परिषद को उच्च सदन की संज्ञा दी जाती है. अंग्रेजी शासन काल में विधान परिषद के जरिए ही सत्ता और शासन का संचालन होता था बाद के दिनों में विधानसभा का कॉन्सेप्ट आया है. विधान परिषद में सबसे लंबे विधायी अनुभव वाले विधान पार्षद नवल किशोर यादव कहते हैं कि अंग्रेजी शासन काल में विधान परिषद का गठन हुआ था.
"1913 में पहली बैठक हुई थी. विधान परिषद को उच्च सदन कहा जाता था. बाद के दिनों में विधान परिषद अस्तित्व में आया. सरकार अलग-अलग विषयों पर परिषद में चर्चा करती थी." -नवल किशोर यादव, विधान पार्षद

वर्तमान में 75 सदस्य: 1952 में पहले आम चुनाव के बाद बिहार विधान परिषद सदस्यों की संख्या 43 से बढ़ाकर 72 कर दी गयी. 1958 तक इसकी संख्या 96 हो गयी थी. इसके बाद संसद द्वारा पारित बिहार पुनर्गठन अधिनियम के तहत साल 2000 में बिहार से झारखंड को अलग कर दिया गया. झारखंड अलग होने के बाद परिषद के सदस्यों की संख्या घटाकर 75 कर दी गयी. वर्तमान में सदस्यों की संख्या 75 ही है. इसमें 63 निर्वाचित और 12 मनोनित सदस्य हैं, जिसमें दो सीट खाली है.
दरभंगा महाराज की भूमिका अहम: आपको बता दें कि एग्जीक्यूटिव काउंसिल में चार सदस्य होते थे, जिसमें एक गवर्नर, दो अंग्रेज और एक जगह बिहार के किसी शख्स को मिलती थी. बिहार के प्रतिनिधि के रूप में दरभंगा महाराज रामेश्वर सिंह को जगह मिली हुई थी. इसके अलावा गवर्नर के अलावा दो अंग्रेज एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य हुआ करते थे.
पहली बैठक में बच्चों के शिक्षा पर हुई थी चर्चा: विधान परिषद की पहली बैठक में कई नामचीन हस्तियों ने हिस्सा लिया था. सभा के पहले अध्यक्ष डॉ सच्चिदानंद सिन्हा ने भी पहली बैठक मैं हिस्सा लिया था. खान बहादुर ख्वाजा मोहम्मद नूर ने भी पहली बैठक में हिस्सा लिया था जो बात के दिनों में सभापति भी बने. पहली बैठक कोई बच्चों के शिक्षा मताधिकार और भूमि संबंधी नियमों पर चर्चा हुई थी.
नीतीश कुमार भी है विधान परिषद के सदस्य: संविधान सभा के पहले अध्यक्ष डॉ सच्चिदानंद सिन्हा विधान परिषद के सदस्य रह चुके हैं. इसके अलावा सर गणेश दत्त भी विधान परिषद का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. स्वतंत्रता सेनानी जगलाल चौधरी और इमाम ब्रदर्स भी विधानसभा के सदस्य के रूप में काम कर चुके हैं. नीतीश कुमार भी विधान परिषद के सदस्य के रूप में लंबे समय से कम कर रहे हैं और फिलहाल वह मुख्यमंत्री भी हैं. नीतीश कुमार चार बार विधान परिषद के सदस्य रह चुके हैं.
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