पटना: बिहार की राजनीति लंबे समय से वोट बैंक आधारित राजनीति के इर्द-गिर्द घूमती रही है. हर चुनाव में राजनीतिक दलों की रणनीति इन सामाजिक समूहों के इर्द-गिर्द तैयार की जाती है. खासकर अति पिछड़ा वर्ग, दलित, मुस्लिम, यादव, कुर्मी, ब्राह्मण, राजपूत जैसे समुदायों की राजनीतिक हिस्सेदारी ने कई सरकारों की नींव रखी और कईयों को गिराया.
बिहार में 36% वोट बैंक पर नजर: बिहार में अक्टूबर-नवंबर में बिहार विधानसभा चुनाव होना है. बीजेपी की नजर इस बार अति पिछड़ा वर्ग के उस 36% वोट बैंक पर है, जो चुनाव परिणामों में निर्णायक भूमिका निभा सकता है.भारतीय जनता पार्टी ने पूरी ताकत झोंक रखी है. तमाम दलों ने भी गुणा-गणित में जुट गए हैं. भाजपा ने एक विशेष कार्यक्रम और जन संवाद अभियान की योजना तैयार की है जिसमें हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी भी शामिल होंगे.
6 जुलाई को नायब सैनी आएंगे बिहार:माली समाज द्वारा आगामी 6 जुलाई को पटना स्थित श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में एक भव्य सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है. इस कार्यक्रम में हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी को बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया गया है.

बिहार में हो चुका है छह जातिगत सम्मेलन: प्रदेश कार्यालय में अब तक आधे दर्जन से अधिक जातिगत सम्मेलन का आयोजन किया जा चुका है. प्रदेश कार्यालय में अब तक नाई समाज, लोहार समाज, पासी समाज, कुम्हार समाज और माली समाज का सम्मेलन हो चुका है. भाजपा कोटे के मंत्री अपने समाज के सम्मेलनों में हिस्सा भी ले रहे हैं.
"हम अति पिछड़ों को मुख्यधारा में लाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं पार्टी से हम अपने हक की मांग भी कर रहे हैं. विधानसभा चुनाव में बात टिकट की हो या फिर संगठन में जगह मिलने की सभी स्तर पर हमारी दावेदारी है. 6 जुलाई को हम माली समाज का बड़ा सम्मेलन होने जा रहा है. जिसमें हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी भी हिस्सा लेने वाले हैं." - प्रभात मालाकार, भाजपा नेता, माली समाज

अति पिछड़ों के बदौलत नीतीश बने ताकतवर: बिहार में 36.01% वोट शेयर अति पिछड़ाओं का है और अति पिछड़ा समुदाय में कुल 112 जातियां हैं. नीतीश कुमार ने बिहार में पिछड़ों को अपने पक्ष में करने के लिए पहले तो पंचायत स्तर पर आरक्षण दी और फिर उसके बाद उनके लिए कई योजनाएं लागू की. नीतीश कुमार की योजनाओं के चलते बड़ी संख्या में अति पिछड़ा समुदाय के लोग जदयू के साथ जुड़े. बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की ताकत भी अति पिछड़ा वोट बैंक से है.
"अति पिछड़ों के बगैर कोई बिहार की सत्ता में काबिज नहीं हो सकता है. अति पिछड़ा वोट बैंक को साधने के लिए सभी दल एक्सरसाइज कर रहे हैं. भाजपा भी पीछे रहना नहीं चाहती है. भविष्य में भाजपा अति पिछड़ाओं के बदौलत अपने पैर पर खड़ा होना चाहती है. जातिगत सम्मेलन के द्वारा राजनीतिक दल वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की कवायद करते हैं." -रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार
अति पिछड़ा को भाजपा ने दी तवज्जो: भारतीय जनता पार्टी की नजर भी अब अति पिछड़ा वोट बैंक पर है. भाजपा को इस बात का इल्म है कि बगैर अति पिछड़ाओं के वह अकेले दम पर बिहार में सरकार नहीं बना सकते. इस लिहाज से अति पिछड़ों को अपने साथ लाने के लिए भाजपा ने कई स्तर पर रणनीति तैयार की है. बोर्ड निगम आयोग में भी अति पिछड़ा समुदाय से आने वाले नेताओं को जगा दी गई है. बीजेपी दफ्तर में अति पिछड़ा समुदाय से आने वाले जातियों का सम्मेलनों का दौर भी शुरू हो चुका है.

"हम सभी समाज की चिंता करते हैं. अति पिछड़ा समाज भी हमारी प्राथमिकताओं में शामिल है. हमारी सरकार ने अति पिछड़ों के लिए बहुत सारे कार्य किए हैं. सम्मेलनों के जरिए हम उनकी जरूरत को समझने की कोशिश करते हैं. इसके साथ ही हम यह भी बताते हैं कि हमारी सरकार आपके लिए क्या कर रही है और क्या करने वाली है."-दानिश इकबाल, भाजपा प्रवक्ता
कांग्रेस ने नहीं दिया वाजिब हक: भूमि सुधार एवं राजस्व मंत्री संजय सरावगी ने भी कार्यक्रम में हिस्सा लिया. मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने अति पिछड़ों की चिंता की है और एनडीए की सरकार ने अति पिछड़ों को मजबूत करने के लिए कई योजनाएं लागू की है. कांग्रेस पार्टी ने काका कालेलकर समिति की रिपोर्ट को लागू नहीं किया जिसके चलते अति पिछड़ों को वाजिब हक नहीं मिला. नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की सरकार ने अति पिछड़ों और पिछड़ों को आरक्षण का लाभ दिलाया.

अति पिछड़ों के बदौलत लालू हासिल करते थे सत्ता: आपको बता दें कि बिहार में जब लालू प्रसाद यादव का शासनकाल था तब लालू प्रसाद यादव जिन्न निकालने की बात कहते थे. बैलेट बॉक्स जब खुलता था तो लालू प्रसाद के पक्ष में नतीजे आते थे. लालू प्रसाद यादव वोट बैंक को जिन्न कहते थे. आज वही वोट बैंक अति पिछड़ा वोट बैंक कहलाता है. जब लालू प्रसाद यादव के हाथ से सत्ता गई तब धीरे-धीरे उनका अति पिछड़ा वोट बैंक भी रूठ गया. अब उस वोट बैंक पर नीतीश कुमार ने कब्जा जमा लिया.
बिहार में चुनाव कब होंगे?: बिहार की वर्तमान यानी नीतीश सरकार का कार्यकाल 23 नवंबर 2020 से शुरू हुआ था. नीतीश सरकार का कार्यकाल इस साल यानी 2025 में 22 नवंबर तक है. जाहिर है कि इससे पहले चुनाव होंगे. माना जा रहा है कि सितंबर से अक्टूबर के बीच आचार संहित लग जाएगी. माना ये भी जा रहा है कि अक्टूबर से नवंबर के शुरुआती हफ्ते के बीच वोटिंग और मतों की गिनती संपन्न कराई जा सकती है.
ये भी पढ़ें
बिहार चुनाव से पहले मुकेश सहनी की VIP का कैंपेन सॉन्ग लॉन्च, कहा- तेजस्वी ही CM चेहरा
कांग्रेस का आरोप, बिहार में चुनाव जीतने को वोटर लिस्ट से छेड़छाड़ कर सकती है भाजपा
उपेंद्र कुशवाहा 30 और चिराग पासवान 40.. NDA के भीतर सीटों को लेकर घमासान, जानिए इनसाइड स्टोरी
JDU और BJP में बंटेगी आधी-आधी सीट, 40 में निपटेंगे चिराग-मांझी-कुशवाहा!
20 जून को सिवान में पीएम मोदी की रैली, बिहार चुनाव से पहले तीसरा दौरा
क्या बीजेपी ने चिराग पासवान को समर्थन किया? बिहार चुनाव के लिए 'प्लान बी' पर चर्चा