उदयपुर. दक्षिणी राजस्थान में भील प्रदेश बनाने की मांग एक बार फिर उठने लगी है. गुरुवार को आदिवासियों के आस्था केंद्र कहे जाने वाले मानगढ़ धाम में महारैली का आयोजन हुआ. वहीं, अब सांसद मन्नालाल रावत ने एक बड़ा बयान दिया है. रावत ने कहा कि बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम पर इकट्ठा होकर कुछ लोग अलग राज्य की मांग कर रहे हैं. वे अंग्रेजों के विचारों से प्रेरित हैं. वहां जाकर भ्रामक वातावरण बना रहे हैं. वहां जाने वाले एक संगठन के लोग हैं, जो केवल कट्टरता व जातिवाद का जहर फैलाने का काम कर रहे हैं.
सावधान रहने की जरूरत : सांसद रावत ने कहा कि कुछ लोग आदिवासियों के बीच भ्रम फैलाने का काम कर रहे हैं. सरेआम कह रहे हैं कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं. समाज और क्षेत्र को ऐसे तत्वों से सावधान रहने की जरूरत है. सामाजिक समरसता को खराब करने के लिए इस तरह की बातें नहीं होनी चाहिए.
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दरअसल, गुरुवार को जिला परिषद सभागार में मीडियाकर्मियों से मुखातिब हुए सांसद रावत ने कहा कि मानगढ़ धाम तो आदिदेव महादेव, आदिशक्ति का स्थान है, जहां जनजाति समाज अपनी सनातन परंपरा के अनुसार अपने गुरु के आदेश पर पूर्णिमा के दिन घी लेकर हवन करने के लिए गया था. इस जनजाति समाज पर 1913 में अंग्रेजों ने भारी गोलाबारी कर नरसंहार किया था. आज जो लोग अलग राज्य की मांग को लेकर वहां गए. वे उन्हीं नरसंहार करने वालों की राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं.
आदिवासियों के लिए बनाई गई योजनाओं को गिनाया : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र व मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की राज्य सरकार ने स्थानीय जनजाति समाज व दक्षिणी राजस्थान के लिए लाभकारी योजनाएं दी हैं. उसकी बौखलाहट में यह तत्व वहां जा कर वैचारिक प्रदूषण फैला रहे हैं. सांसद डॉ. मन्नालाल रावत ने कहा कि जनजाति समाज शुरू से ही षड्यंत्र का शिकार हुआ है. साल 1950 में जब संविधान बना, उस समय अनुसूचित जाति की परिभाषा को लेकर राष्ट्रपति की ओर से जो नोटिफिकेशन जारी हुआ था, उसमें स्पष्ट था कि जो हिंदू समाज का व्यक्ति है, वही अनुसूचित जाति का कहलाएगा.
अनुसूचित जनजाति के लिए भी यही प्रावधान लागू होना था. उसमें भी हिंदू संस्कृति मानने वाले को ही आदिवासी मानते हुए जनजाति आरक्षण का लाभ मिलना था, लेकिन जनजाति समाज के साथ दोहरा मापदंड अपनाया गया. उन्हें प्रलोभन दिया गया. उन पर दबाव बनाने के प्रयास हुए. वहीं, जनजाति समाज के जो लोग हिन्दू परंपरा व आस्था को छोड़ चुके हैं, उन्हें अब जनजाति आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए.