भोपाल: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के इतिहास से जुड़ा एक नया दावा सामने आया है. भोपाल के इतिहास पर लंबे शोध के बाद इतिहासकार शाहनवाज खान ये दावा करते हैं कि भोपाल नवाब हमीदुल्ला खान ने 14 अगस्त 1947 को ही रात सवा आठ बजे भारत संघ के इन्स्ट्रमेंट ऑफ एक्सेशन पर दस्तखत कर दिए थे.
इस तरह भोपाल स्वाधीनता दिवस के पहले ही भारत का हिस्सा बन चुका था. शाहनवाज का कहना है कि 6 जनवरी 1949 से विलीनीकरण का जो आंदोलन छेड़ा गया वो असल में भोपाल को मध्यभारत में शामिल किए जाने का आंदोलन था. भोपाल के गजेटियर समेत नेशनल आर्काइव के आधार पर वे ये दावा कर रहे हैं और ये दस्तावेज उनकी किताब भोपाल रियासत का हिस्सा हैं.
15 अगस्त के पहले भारत संघ में शामिल हुआ भोपाल
भोपाल रियासत के भारतीय संघ का हिस्सा बनने को लेकर इतिहासकार शाहनवाज खान ने रिसर्च के बाद किताब लिखी है. इसमें उन्होंने लिखा है कि भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खान ने 14 अगस्त 1947 को रात 8 बजकर 15 पर इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेसेशन पर दस्तखत कर दिए थे यानि इसी दिन भोपाल रियासत भारत संघ का हिस्सा बन चुकी थी.

वे कहते हैं कि "मैंने भोपाल के इतिहास को लेकर काफी रिसर्च की है जिस आधार पर मैं ये कह रहा हूं. ये दस्तावेज मैंने नेशनल आर्काइव से हासिल किया है और उसे अपनी किताब में छापा भी है. नेशनल आर्काइव से जो दस्तावेज प्राप्त किया है, उसमें उस समय के गर्वनर लार्ड माउंटबेटन और नवाब हमीदुल्ला खान के दस्तखत भी हैं."

भोपाल के इतिहास में 1949 खास कैसे?
हांलाकि एक तथ्य ये भी है कि भोपाल की आजादी की तारीख एक जून 1949 है. भारत की आजादी के 2 साल बाद भोपाल रियासत भारत गणराज्य का हिस्सा बनी थी. इस पर इतिहासकार शहनवाज खान कहते हैं कि "मैंने बहुत रिसर्च किया है. भोपाल के इतिहास पर वीपी मेनन की किताब भी देखी. भोपाल के गजेटियर भी देखे, नेशनल आर्काइव से पेपर जुटाए. 1949 को लेकर जो कहा जाता है उसकी हकीकत ये है कि जब 14 अगस्त 1949 को नवाब हमीदुल्ला खान ने इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेसेशन पर दस्तखत कर दिए."


इतिहासकार शहनवाज खान बताते हैं कि "भोपाल समेत जो देश भर में 562 रियासतें वहां भी इसी प्रक्रिया से वे भारत संघ का हिस्सा बने. इन रियासतों में कोई प्रशासनिक व्यवस्था नहीं थी. तमाम शर्तें तय होनी थी. एक झटके में तो मर्जर नहीं हो सकता था. कौन सी जायदाद सरकार को दी जानी है. तब ये कहा गया था कि जब तक ट्रांसफर ऑफ पॉवर नहीं हो जाता तब तक के लिए नवाब हमीदुल्ला खान संवैधानिक प्रमुख बनें रहेंगे. शहनवाज कहते हैं एक जून 1949 को प्रशासनिक तौर पर भी भोपाल भारतीय संघ में चला जाएगा. इसका उल्लेख जो मर्जर एग्रीमेंट है उसमें खास तौर पर लिखा गया है."


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मध्यभारत में शामिल होने चला आंदोलन
इतिहासकार शहनवाज खान बताते हैं कि "जब ये तय हुआ तो नवाब हमीदुल्ला खान से कहा गया कि जनता की सरकार बनाई जाए. नवाब हमीदुल्ला खां ने कहा कि तब स्वतंत्रता संग्राम में शामिल रहे प्रजा मंडल से भी कहा गया कि हम मंत्रिमंडल बनाना चाहते हैं. 8 नाम दीजिए जिसमें से 4 शामिल होंगे और 4 नहीं होंगे. चार लोग शामिल भी हो गए और चार लोग जो शामिल नहीं हुए वो नाराज हो गए.
उनमें एक मास्टर लाल सिंह, कुतुसहबाई ये बहुत ज्यादा नाराज हो गए और इन्होंने कहा कि हमें काबिल होते हुए इस मंत्रिमण्डल में शामिल नहीं किया गया. फिर ये बात उठी कि भोपाल को अगर मध्यभारत में शामिल कर दिया जाए तो बड़ा मंत्रिमण्डल मिल जाएगा तब भोपाल को मध्यभारत में शामिल करने का विलीनीकरण आंदोलन चलाया गया. मध्यभारत की रियासत में 6 जनवरी 1949 को ये आंदोलन शुरू हुआ और 30 जनवरी 1949 को आंदोलन खत्म हो गया."