भोपाल: लोहे की जंग से बना हुआ रंग बाघ प्रिंट की नई रौनक बनकर कपड़े पर लौटा है. सिर्फ रंग और प्रिंट नई इंडिगो के साथ बाघ में 150 साल पुरानी रवायत की वापसी हुई है. इस्माईल खत्री के दादा अली जी के इंडिगो प्रिंट की बाघ में वापसी हुई है. बता दें कि इंडिगो आजादी के दौर से बहुत पहले की बात है, जिसके छापे का कपड़ा मिनटों मे बाजार में बिक जाया करता था. अब उमर फारुक खत्री ने बाघ में इंडिगो प्रिंट के साथ अपनी रवायत को नई रवानी दी है.
भोपाल में बाघ महोत्सव में उमड़ रहे शहरवासी
भोपाल में चल रहा बाघ महोत्सव इस बार खास है. जीआई टैग पा चुके बाघ प्रिंट के साथ इस बार इस महोत्सव में बाघ से जुड़ा 150 पुराना इतिहास भी लौटा है. जिस इंडिगो प्रिंट को बाघ प्रिंट के जनक इस्माईल खत्री के बेटे उमर फारुक खत्री इस महोत्सव में लेकर आए हैं. ये इंडिगो प्रिंट उमर फारुक के परदादा अली जी ने ईजाद किया था. उमर बताते हैं "जंग लगे लोहे से इडिगो रंग तैयार होता है. वह उस दौर को याद करते हुए कहते हैं कि जब उनके परदादा इसे बनाया करते थे तो बाजार मे सबसे आखिर मे आने के बावजूद वे सबसे पहले इसे बेचकर चले जाते थे."


डेढ़ सौ साल पहले इंडिगो प्रिंट डिमांड में था
उमर फारुक खत्री बताते हैं "इंडिगो प्रिट उस समय भी बेहद डिमांड में था. 150 साल पहले लोगों की पसंद रहे इस प्रिंट की अब बाघ प्रिंट के साथ वापसी हुई है. बकरी की मेगनी और अरंडी के तेल की रंगत बाघ प्रिंट में है." इस प्रिंट को ईजाद करने वाले इस्माईल खत्री के बेटे उमर फारुक खत्री बताते हैं "मैंने अपने पिता से बाघ प्रिंट का काम सीखा था, जो हरे, नीले और गुलाबी महरून रंग बाघ पर उतरते है, वे सब नेचुरल तरीके से तैयार होते हैं."


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कैसे बनता है बाघ प्रिंट
बाघ प्रिंट के बारे में उमर बताते हैं "पहले बकरी की मेगनी और अरडी के तेल में कपड़े को डालते हैं. कपड़ा लंबी प्रक्रिया से गुजरता है. उसे कूटा भी जाता है. कोशिश की जाती है कि रंग उसके अंदर समाहित हो जाएं. इसके बाद साफ पानी से धोने के बाद बडी हरड़ के पाउडर से कपड़े को डाय करके बेस तैयार किया जाता है. बाघ प्रिंट के अलग-अलग रंगों को तैयार करने के लिए लोहे के जंग के पानी से लेकर इमली से भी रंग तैयार होता है और फिटकरी का भी इस्तेमाल किया जाता है. प्रिंट को तैयार करने में बहती नदी के पानी में कपड़े को चलाए जाने की प्रक्रिया है और फिर कड़ाहे मे तपाए जाने की भी."