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बच्ची के सिर से जुड़ा था जुड़वा भ्रूण, एम्स भोपाल के डाक्टरों ने दी नई जिंदगी - BHOPAL AIIMS OPERATION

भोपाल एम्स में डॉक्टरों ने बेहद रिस्की ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया. जहां बच्ची के सिर से भ्रूण जुड़ा हुआथा.

BHOPAL AIIMS OPERATION
एम्स भोपाल के डाक्टरों ने दी नई जिंदगी (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : April 8, 2025 at 8:22 PM IST

2 Min Read

भोपाल: एम्स भोपाल के डाक्टरों ने एक 3 वर्षीय बच्ची के जटिल ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया. जिसमें बच्ची के खोपड़ी और श्रोणि की हड्डियों के बीच एक विकसित जुड़वा भ्रूण चिपका हुआ था. ऑपरेशन करने वाले डाक्टरों ने बताया कि परजीवी जुड़वां एक दुर्लभ स्थिति होती है. जब गर्भ में दो जुड़वां बच्चे बनने लगते हैं, लेकिन उनमें से एक का विकास बीच में रुक जाता है.

जिससे यह अधूरा जुड़वां बच्चा अपने पूरी तरह विकसित हो रहे जुड़वां से चिपका रहता है. इस अधूरे जुड़वां को ही परजीवी जुड़वां कहा जाता है, क्योंकि वह खुद से नहीं जी सकता और अपने जुड़वां पर निर्भर रहता है.

रीढ़ की हड्डी से चिपका था अधूरा शरीर

एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक डॉ. अजय सिंह ने बताया कि "मध्यप्र देश के अशोकनगर जिले का रहने वाला एक परिवार अपनी बच्ची को लेकर एम्स भोपाल की ओपीडी में आया था. 3 वर्षीय इस बच्ची के गर्दन के पिछले हिस्से में जन्म से ही एक मांसल उभार था. जिसे देखने के बाद बच्ची को एम्स भोपाल के न्यूरोसर्जरी विभाग में भर्ती कराया गया.

फिर उसकी एमआरआई और सीटी स्कैन समेत अन्य जांच कराई गई. जिसमें पता चला कि उसकी खोपड़ी और रीढ़ की हड्‌डी से एक अधूरे शरीर का पैर और श्रोणि ह‌ड्डियां (Pelvic Bones) जुड़ी हुई थी, जो दिमाग के बेहद नाजुक हिस्से ब्रेन स्टेम से चिपकी हुई थी."

3 अप्रैल को एम्स में हुआ ऑपरेशन

इस मामले की जटिलता को देखते हुए बच्ची की सर्जरी के लिए डॉ. राधा गुप्ता, डॉ. अंकुर (रेडियोलोजी विभाग), डॉ. रियाज अहमद (बाल शल्य चिकित्सा विभाग) और डॉ. वेद प्रकाश (प्लास्टिक सर्जरी विभाग) के साथ अंतर्विभागीय बैठक आयोजित की गई. इसमें निर्णय लिया गया कि बच्ची को नामर्ल जिंदगी देने के लिए जल्द सर्जरी की जाए. 3 अप्रैल 2025 को यह दुर्लभ सर्जरी डॉ. सुमित राज द्वारा सफलतापूर्वक की गई.

जिसमें डॉ. जितेन्द्र शाक्य व डॉ. अभिषेक ने भी पूरा सहयोग किया. इस उपलब्धि पर डॉ. अजय सिंह ने कहा कि "एम्स भोपाल, मध्य भारत में विश्व स्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं. ऐसे कॉम्पलेक्स मामलों में सफलता, हमारे डॉक्टरों की विशेषज्ञता, आपसी समन्वय और संस्थान की श्रेष्ठ संरचनागत सुविधाओं का परिणाम है."

भोपाल: एम्स भोपाल के डाक्टरों ने एक 3 वर्षीय बच्ची के जटिल ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया. जिसमें बच्ची के खोपड़ी और श्रोणि की हड्डियों के बीच एक विकसित जुड़वा भ्रूण चिपका हुआ था. ऑपरेशन करने वाले डाक्टरों ने बताया कि परजीवी जुड़वां एक दुर्लभ स्थिति होती है. जब गर्भ में दो जुड़वां बच्चे बनने लगते हैं, लेकिन उनमें से एक का विकास बीच में रुक जाता है.

जिससे यह अधूरा जुड़वां बच्चा अपने पूरी तरह विकसित हो रहे जुड़वां से चिपका रहता है. इस अधूरे जुड़वां को ही परजीवी जुड़वां कहा जाता है, क्योंकि वह खुद से नहीं जी सकता और अपने जुड़वां पर निर्भर रहता है.

रीढ़ की हड्डी से चिपका था अधूरा शरीर

एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक डॉ. अजय सिंह ने बताया कि "मध्यप्र देश के अशोकनगर जिले का रहने वाला एक परिवार अपनी बच्ची को लेकर एम्स भोपाल की ओपीडी में आया था. 3 वर्षीय इस बच्ची के गर्दन के पिछले हिस्से में जन्म से ही एक मांसल उभार था. जिसे देखने के बाद बच्ची को एम्स भोपाल के न्यूरोसर्जरी विभाग में भर्ती कराया गया.

फिर उसकी एमआरआई और सीटी स्कैन समेत अन्य जांच कराई गई. जिसमें पता चला कि उसकी खोपड़ी और रीढ़ की हड्‌डी से एक अधूरे शरीर का पैर और श्रोणि ह‌ड्डियां (Pelvic Bones) जुड़ी हुई थी, जो दिमाग के बेहद नाजुक हिस्से ब्रेन स्टेम से चिपकी हुई थी."

3 अप्रैल को एम्स में हुआ ऑपरेशन

इस मामले की जटिलता को देखते हुए बच्ची की सर्जरी के लिए डॉ. राधा गुप्ता, डॉ. अंकुर (रेडियोलोजी विभाग), डॉ. रियाज अहमद (बाल शल्य चिकित्सा विभाग) और डॉ. वेद प्रकाश (प्लास्टिक सर्जरी विभाग) के साथ अंतर्विभागीय बैठक आयोजित की गई. इसमें निर्णय लिया गया कि बच्ची को नामर्ल जिंदगी देने के लिए जल्द सर्जरी की जाए. 3 अप्रैल 2025 को यह दुर्लभ सर्जरी डॉ. सुमित राज द्वारा सफलतापूर्वक की गई.

जिसमें डॉ. जितेन्द्र शाक्य व डॉ. अभिषेक ने भी पूरा सहयोग किया. इस उपलब्धि पर डॉ. अजय सिंह ने कहा कि "एम्स भोपाल, मध्य भारत में विश्व स्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं. ऐसे कॉम्पलेक्स मामलों में सफलता, हमारे डॉक्टरों की विशेषज्ञता, आपसी समन्वय और संस्थान की श्रेष्ठ संरचनागत सुविधाओं का परिणाम है."

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