जोधपुर: आने वाले समय के साथ बदलते पारिस्थितिकी तंत्र के अनुरूप सभी को ढलना होगा. इसको लेकर हर स्तर पर काम हो रहा है. खास कर धरती के बढ़ते तापमान को ध्यान में रखते हुए सरकार भी काम कर रही है. इसके तहत ही तेज गर्मी में पकने वाले बाजरे के इस विशेष गुण की खोज कर इसका प्रयोग अन्य फसल में करने पर शोध शुरू हो किया जा रहा है.
दरअसल, बाजरे की फसल 45 डिग्री तक की गर्मी के साथ लवणता झेलती हुए तैयार होती है. इसे ध्यान में रखते हुए प्रदेश के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने इसके लिए बाजरे में उत्तरदायी जीन की पहचान करने और अन्य फसलों में इसे प्रत्यारोपित कर गुणवत्ता में वृद्धि करने संबंधी प्रोजेक्ट जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के वनस्पति शास्त्र विभाग को इसका प्रोजेक्ट दिया है. विभाग ने बायोटेक्नोलॉजी स्कीम के तहत इस परियोजना के लिए करीब 17 लाख रुपए की स्वीकृति की है.
परियोजना की मुख्य अन्वेषक एवं जेएनवीयू के वनस्पति विभाग की सहायक आचार्य डॉ. श्वेता झा ने बताया कि हम बाजरे इस विशेष गुण के उत्तरदायी जीन की पहचान नेक्स्ट जेनेरेशन सीक्वेंसिंग (आरएनए सेक) तकनीक से करेंगे. इनका जेनेटिक इंजीनियरिंग तकनीक से फंक्शनल कैरेक्टराइजेशन किया जाएगा. उन्होंने बताया कि इससे पहले हमे वनस्पति प्रोटियोमिक्स पद्धति से साल्ट व सूखा के लिए जिम्मेदार प्रोटीन की खोज के लिए केंद्र से प्रोजेक्ट मिला था. इसके तहत हमने प्रोटीन चिन्हित किया था. अब इस प्रोजेक्ट में उसे आगे बढ़ाएंगे.

पहले टमाटर बाद में चावल पर होगा प्रयोग : बाजरे की फसल के शुष्कता व लवणता में पकने के उसमें मौजूद उत्तरदायी जीन की खोज के बाद हमे इसका प्रयोग टमाटर पर किया जाएगा. टमाटर में बाजरे का जीन डालकर उसमें शुष्कता, लवणता और तेज गर्मी सहन की क्षमता जांची जाएगी. इसके बाद बाजरे का जीन चावल में डाल कर प्रयोग किया जाएगा. इसके बाद अन्य फसलों में डाला जा सकेगा.

भविष्य के लिए बड़ी उपलब्धि होगी शोध : डॉ. श्वेता झा ने बताया कि बाजरे में अन्य फसलों से कहीं अधिक पोषक तत्व हैं. यह रेगिस्तान की विषम परिस्थितियों में भी जीवित रहता है, लेकिन अभी तक इसका आण्विक स्तर पर पूरी तरह से कैरेक्टराइजेशन नहीं किया गया है. प्रोटियोमिक्स के बाद नेक्स्ट जेनरेशन सीक्वेंसिंग तकनीक से इसमें लवण और शुष्कता को झेलने वाले जीन की पहचान भविष्य में एक बड़ी उपलिब्ध होगी.