बाराबंकी: हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के बाद दुनिया में जिस भारतीय ओलंपियन को याद किया जाता है वो थे बाबू केडी सिंह. जिन्होंने ना सिर्फ 1948 और 52 के ओलंपिक में देश को गोल्ड दिलाया बल्कि कई मौके पर वो ध्यानचंद से भी अच्छा खेले. उस महान खिलाड़ी बाबू केडी सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में हुआ. वो आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके चाहने वाले उनकी मंशा को परवान चढ़ा रहे हैं. यूपी हॉकी टीम और रेलवे की टीम का कई सालों तक हिस्सा रहे खिलाड़ी सलाहुद्दीन किदवई पिछले छह सालों से हॉकी खिलाड़ियों की नर्सरी तैयार कर रहे हैं. सलाहुद्दीन की तमन्ना है कि जिस तरह कभी पूरी दुनिया में बाराबंकी को बाबू केडी सिंह की हॉकी के लिए जाना जाता था उसी तरह एक बार फिर इसका नाम हो.
केडी सिंह को खेलते देख बने खिलाड़ी
जिले के नगर पंचायत बंकी में बच्चों को हॉकी की बारीकियां सिखा रहे पूर्व खिलाड़ी सलाहुद्दीन किदवई को बचपन से ही हॉकी खेलने का शौक रहा. घर में हॉकी का माहौल भी था. बाबू केडी सिंह को हॉकी खेलते देखा तो उनके जैसा बनने की ख्वाहिश हुई. बड़े हुए तो पहले लखनऊ इलेवन से खेले, फिर लखनऊ यूनिवर्सिटी के कप्तान बने, उसके बाद सलाउद्दीन का चयन यूपी की हॉकी टीम में हो गया और अगले तीन साल तक टीम के लिए खेलते रहे फिर रेलवे में नौकरी मिल गई तो रेलवे टीम से खेले. रेलवे से रिटायरमेंट के बाद ग्रामीण परिवेश के बच्चों में हॉकी खेल की ललक देखी तो उन्हें तराशकर बाबू केडी सिंह की हॉकी को जिंदा करने की ठान ली.
2019 में हॉकी की नर्सरी खोलने की शुरुआत
साल 2019 में जब सलाहुद्दीन किदवई ने हॉकी की नर्सरी तैयार करने का फैसला किया तो शुरूआत में काफी तलाश करने के बाद भी उनको कहीं ग्राउंड नहीं मिला. उसके बाद उन्होंने बंकी में एक आदमी से उसकी जमीन मांगी और वहीं अस्थाई रूप से हॉकी ग्राउंड बना लिया. यहीं हर रोज सुबह 6 बजे से साढ़े 8 बजे तक वो बच्चों को हॉकी की ट्रेनिंग देते हैं.
शुरू में महज कुछ बच्चे ही आए सीखने
खिलाड़ी से कोच की नई भूमिका में आए सलाहुद्दीन बताते हैं कि शुरुआत में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. कुछ बच्चों से ट्रेनिंग कैंप की शुरूआत हुई. लेकिन अब तो अभिभावक खुद अपने बच्चों को लेकर आते हैं और उनसे अपने बच्चों को ट्रेंड करने के लिए कहते हैं. किदवई कहते हैं कि कभी क्रिकेट की तरह हॉकी भी रेगुलर खेली जाती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब क्रिकेट में ज्यादा ग्लैमर और पैसा है. जिसके चलते हॉकी की तरफ लोगों का रुझान कम है.
ग्रामीण इलाकों में हॉकी को प्रमोट किया जाए
सलाहुद्दीन कहते हैं कि इस खेल को प्रमोट करने के लिए छोटी-छोटी जगहों पर हॉकी होनी चाहिए जिससे खिलाड़ियों को प्रोत्साहन मिले. इसके अलावा खिलाड़ियों को सुविधाएं मिले उनके लिए जॉब गारंटी हो. सलाहुद्दीन कि मंशा है कि उनके बच्चे भले ही नेशनल लेवल पर न खेल पाएं लेकिन उन्हें अच्छा नागरिक बनाकर समाज में एक मान सम्मान मिल सके.
बच्चों को फ्री में मिलती ट्रेनिंग
कोच सलाहुद्दीन इन बच्चों को फ्री में न सिर्फ हॉकी किट उपलब्ध कराते हैं बल्कि इनके खाने पीने का इंतजाम भी करते हैं. खास बात ये है कि इसके लिए ये किसी से कोई चंदा नहीं लेते और न ही कोई सरकारी ऐड. हां ये जरूर है कि इनकी हॉकी को लेकर दीवानगी देखकर समाज के तमाम लोग खुद ही इनकी मदद करते हैं.
डिस्ट्रिक्ट लेवल टूर्नामेंट में हिस्सा ले रहे बच्चे
कैंप में आने वाले बच्चे डिस्ट्रिक्ट लेवल पर होने वाले टूर्नामेंट में हिस्सा लेते हैं, क्लबों से खेलते हैं. ट्रेनिंग ले रहे बच्चों में अंडर-14 जूनियर की दो टीमें हैं, अंडर- 19 की एक टीम है, एक टीम सीनियर्स की है. सलाहुद्दीन किदवई का इरादा है कि वे इन बच्चों को ट्रेंड कर उन्हें स्पोर्ट होस्टल में भर्ती करा दें ताकि वे आगे बढ़ सकें. निश्चय ही संसाधन और प्रॉपर कोचिंग के अभाव में जहां तमाम प्रतिभावान बच्चे आगे नहीं बढ़ पाते ऐसे में सलाहुद्दीन की ओर से इन बच्चों को तराशने के लिए शुरू की गई ये पहल काबिले तारीफ है.
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