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बनारसी सिल्क से सिर्फ साड़ी नहीं, होम डेकोर आईटम भी होते तैयार; युवा एंटरप्रेन्योर ने जानिए कैसे बदली पहचान

2003 में मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी करने के बाद जब रजत पाठक बनारस लौटे तो अपने पुश्तैनी बनारसी साड़ी के कारोबार को नया रूप दिया.

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बनारस के युवा एंटरप्रेन्योर रजत पाठक के प्रोडक्ट. (Photo Credit; Rajat Pathak)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : October 2, 2025 at 2:30 PM IST

9 Min Read
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वाराणसी: अपनी पीढ़ियों की बातों और चीजों को संरक्षित करना आज की युवा पीढ़ी शायद भूलती जा रही है. अपने परिवार अपनी अलग पहचान की चाहत के साथ युवा कहीं न कहीं अब पुश्तैनी चीजों को छोड़कर अपनी एक नई पहचान बनाने की जद्दोजहद करने में जुटे हैं.

ऐसे में बनारस का एक ऐसा युवा एंटरप्रेन्योर है जिसने न सिर्फ सन 1835 के बाद शुरू हुए अपने पुश्तैनी साड़ी के कारोबार को एक नया रंग दिया, बल्कि साड़ी सिर्फ औरतों का श्रृंगार है, इस मानसिकता को भी बदल दिया.

2003 में मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी करने के बाद जब रजत पाठक बनारस लौटे तो उन्होंने यह सोचा भी नहीं था कि अपने पुश्तैनी कारोबार में साड़ी को सिर्फ महिलाओं के श्रृंगार से उठाकर घर की साथ सज्जा के लिए बनाने में इसका एक बड़ा काम होगा.

बनारस के युवा एंटरप्रेन्योर रजत पाठक की सफलता पर संवाददाता की रिपोर्ट. (Video Credit; ETV Bharat)

बनारस के रजत पाठक ने कुछ ऐसा ही काम किया. 2003 में इंटरनेशनल एक्सपोर्ट का लाइसेंस लेने के बाद देश ही नहीं बल्कि यूरोप के साथ ही गल्फ कंट्रीज में अपने पुश्तैनी कारोबार को एक नया रंग देते हुए परिवार और हजारों लोगों की जीविका को मजबूत करने का काम किया. बनारसी सिल्क के होम डेकोर आइटम को नेशनल से इंटरनेशनल पहुंचने का प्रयास किया.

रजत ने बनारसी साड़ी उद्योग की उस मानसिकता को भी बदलने का काम किया, जिसे लेकर लोग बस यही समझते हैं कि बनारसी है तो साड़ी ही होगी. रजत पाठक बताते हैं कि मेरा मानना था सिल्क कोई धर्म नहीं है, जो परिवर्तन नहीं किया जा सकता. सिल्क के साथ मैंने कुछ ट्रायल किया. इस ट्रायल में पहले तो कुछ दिक्कतें आई. सबसे बड़ी दिक्कत थी मशीनरी की. क्योंकि, हमारे पास साड़ी की मशीनरी तो थी, लेकिन इस तरह की चीज बनाने के लिए सुविधा नहीं थी.

हमने इस पर काम शुरू किया और होम डेकोर आइटम को जॉर्जेट और बनारसी सिल्क के कपड़ों पर बनाना शुरू किया. अलग-अलग तरह के डिजाइन तैयार किए और इसे इंटरनेशनल एग्जीबिशन में ले जाना शुरू किया. जिसका नतीजा यह हुआ कि हमें नेशनल ही इंटरनेशनल लेवल पर ऑर्डर मिलने शुरू हुए.

बनारस के युवा एंटरप्रेन्योर रजत पाठक अपनी पत्नी के साथ.
बनारस के युवा एंटरप्रेन्योर रजत पाठक अपनी पत्नी के साथ. (Photo Credit; Rajat Pathak)

पहला विदेशी ऑर्डर 25 लाख का मिला: रजत के प्रयासों को पंख तब लगे जब 2004 में दिल्ली में लगे पहले इंटरनेशनल फेयर में उन्हें लगभग 25 लाख रुपए का आर्डर मिला, वह भी लंदन से. रजत बताते हैं कि साड़ी से हटकर बनारसी सिल्क पर जब उन्होंने काम शुरू किया तो उन्हें इंडोनेशिया, सिंगापुर, मलेशिया, दुबई, अबू धाबी, शारजाह, सऊदी अरब में से एक के बाद एक आर्डर आने शुरू हुए. हमने बनारसी सिल्क को लोकल से इंटरनेशनल पहुंचा दिया. वह भी साड़ी से हटकर.

बनारस का मतलब सिर्फ साड़ियां ही नहीं: रजत का कहना है कि विदेश के डिजाइनर हमें सैंपल देते थे और हम कुछ अपनी तरफ से प्रोडक्ट तैयार करते थे. हमने दुबई, सऊदी अरब, ट्रेड फेयर में अपने स्टॉल लगाने शुरू किए और इस बात से अपने को अलग किया कि हम सिर्फ बनारसी साड़ी वाले हैं. हमने सिनर्जी न्यूट्रल नाम चुना और मैसेज देने की कोशिश की है कि बनारस का मतलब सिर्फ साड़ियां ही नहीं है.

विदेशी प्रदर्शनियों में लगाए अपने स्टॉल: रजत बताते हैं कि मेरा सफर 2003 से शुरू हुआ. अंतरराष्ट्रीय व्यापार का सपना देखकर मैंने पढ़ाई की. डीजीएफटी से लाइसेंस लेने के बाद पहली एग्जिबिशन 2004 में लगाई. टैक्स इंडिया, इंडेक्स दुबई, साउथ इंडिया अरब और इंडोनेशिया से लेकर अलग-अलग जगह पर हमने अपने प्रोडक्ट के स्टॉल लगाए.

रजत का कहना है कि बनारस में अगर सिल्क नाम होता है तो लोग यही सोचते हैं कि सिर्फ सिल्क के कपड़ों से ही सब कुछ बनता है, जबकि ऑर्गेनजा, मलमरी और अलग-अलग तरह के फैब्रिक का यूज भी होता है. हमने साड़ी की चौड़ाई से भी ज्यादा और ऑर्गेंजा फैब्रिक के पर्दे, बनारसी सिल्क कपड़े में बनाए.

बनारस के युवा एंटरप्रेन्योर रजत पाठक यूपी सरकार की ओर से सम्मानित भी किया जा चुका है.
बनारस के युवा एंटरप्रेन्योर रजत पाठक यूपी सरकार की ओर से सम्मानित भी किया जा चुका है. (Photo Credit; Rajat Pathak)

दुबई के महलों में बनारसी सिल्क के पर्दे: यह पर्दे दुबई और अबू धाबी के तमाम महलों में इस्तेमाल होना शुरू हुए. हमारे फैब्रिक का इस्तेमाल गारमेंट मैन्युफैक्चरर्स में शुरू किया. एथेनिक गारमेंट्स के लिए इसका इस्तेमाल होता था, लेकिन जब हमने इंटरनेशनल मार्केट में अपने प्रॉडक्ट्स को रखा तो उसके बाद इंडिया की बिगेस्ट एक्सपोर्ट हाउसेस ओरिएंट क्राफ्ट शाही एक्सपोर्ट के साथ में हमने काम किया.

चीन के कारोबार को किया डाउन: फिलिपींस की एक डिजाइनर ने ऑर्गेनजा के कपड़े पर एक गाउन तैयार किया था. उसका पूरा फैब्रिक हमने ही यहां से भेजा था. वह गाउन वहां के स्पेशल ओकेजन में पहनने के लिए पैसे वाले लोग इस्तेमाल करते हैं. हमारे इस कारोबार का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि हमने चीन के कारोबार को डाउन करके बनारस से फिलिपींस सउदिया जैसे देशों में अपने फैब्रिक भेजना शुरू किया.

इंटरनेशनल मार्केट में बने रहने के लिए क्या-क्या चुनौतियां: रजत बताते हैं कि संघर्ष हर काम में होता है. सबसे ज्यादा दिक्कत यह थी कि जब आप इंटरनेशनल हो जाते हैं तो डिजाइन आपको अलग रखनी होती है, क्योंकि जब ऑर्डर आपके पास आता है तो उनको एक साथ बल्क में सब ऑर्डर एक साथ चाहिए होता है. हमारे पास मैन्युफैक्चरिंग यूनिट नहीं थी. हम इधर-उधर से काम करवाते थे. एक समय पर अलग-अलग प्रोडक्ट बनवाना अपने आप में चैलेंज होता है.

हैंडलूम टेक्नोलॉजी के बच्चों को दे रहे रोजगार: रजत बताते हैं कि जब इंटरनेशनल मार्केट से हमें ऑर्डर मिलना शुरू हुआ तो हमने हैंडलूम टेक्नोलॉजी से पढ़े हुए बच्चों को अपने यहां रखा और वह यही काम करते थे कि कलर शेड्स और डायर का पूरा रिकॉर्ड मेंटेन करते थे. फॉर्मूला अपने पास रखते थे, क्योंकि जो इंटरनेशनल लेवल पर ऑर्डर हमें एक बार मिलता है वह रिपीट होता है और अगर जरा सा भी कलर में अंतर हो जाए तो वह माल रिजेक्ट हो जाता. ऐसी स्थिति में हमने नए लड़कों को अपने साथ जोड़ा और उनको इसी काम में लगाया.

लंदन से मिला सबसे बड़ा चैलेंजिंग काम: रजत बताते हैं कि हमारे लिए सबसे चैलेंजिंग काम हमें लंदन के एक कस्टमर ने दिया. हमसे एक इंटरनेशनल फेयर में मिले सुमन भारती पॉड सेट बनाते थे. यूरोपीयन कंट्रीज में यह रानियों का ब्लाउज होता है. वह डिजाइनर इसी का ऑर्डर लेता था. उसने हमसे ऐसे फैब्रिक की डिमांड की जो बहुत मुश्किल था.

जैसे हमारे यहां तांत्रिक होते हैं वहां एक गोष कम्युनिटी होती है. उस कम्युनिटी की डिजाइन और पैटर्न बिल्कुल अलग होता है. उसने हमें अलग-अलग तरह के डिजाइन दिखाए, जो बहुत मुश्किल था. जिसमें नरमुंड, गुलाब कांटे और वह भी काले या मेहरून डार्क कपड़ों पर. इसको हैंडलूम के जरिए बनाना बहुत मुश्किल था लेकिन, हमने कारीगरों को मनाया और इसे बनवाया. उसे इतना पसंद आया कि उसने चीन का साथ छोड़कर हमारे साथ काम शुरू किया.

रजत 1000 से ज्यादा लोगों को दे रहे रोजगार: रजत के इन प्रयासों से पैतृक कारोबार को न सिर्फ नई उड़ान मिली, बल्कि नई उम्मीद भी जगी. आज रजत के इन प्रयासों की वजह से 1000 से ज्यादा लोग इससे लाभान्वित है. इसमें बुनकर, मीडियेटर, ऑर्डर लेने के लिए दिल्ली मुंबई और अन्य जगहों पर बैठे एक्सपोर्टर, हैंडलूम से जुडे़ स्टूडेंट्स और कई अन्य भी इसमें शामिल हैं. अपने 20 साल के कारोबारी सफर में रजत ने कई की जिंदगी बदल दी. महिलाओं को अपने पैरों पर सशक्त बनाने के लिए सिलाई मशीन और अन्य कई तरह के उपकरण भी दिए, जिससे उनका भी काम मजबूती से आगे बढ़ रहा है.

सिनर्जी फाउंडेशन के जरिए समाजसेवा भी कर रहे रजत: एक तरफ रजत ने जहां अपने पैतृक कारोबार को नई पहचान दी, बनारसी साड़ी और बनारसी कपड़ों को फैशन से निकाल कर होम डेकोर में लाने का बड़ा प्रयास किया, तो वहीं वह सामाजिक कार्यों में भी अपना बड़ा योगदान देते हैं. रजत का कहना है कि उन्होंने सिनर्जी के नाम से फाउंडेशन भी बनाया है, जिसमें पर्यावरण संरक्षण के लिए अब तक 5 लाख पेड़ को लगा चुके हैं.

कोविड में कैदियों की मदद: उनकी टीम ने 2020 में जब कोविड की भीषण लहर आई थी, उस वक्त जिला जेल में बंद ऐसे 40 विचाराधीन कैदियों की एकमुश्त धनराशि जमा करके रिहाई करवाई थी, जिनके पास बाहर निकलने के पैसे नहीं थे. रजत का कहना है कि मैं अपने इस एक्सपीरियंस को लोगों तक भी पहुंचाना चाहता हूं, अभी उनकी एक किताब गुफ्तगू विद बेबो तमाम बड़ी ऑनलाइन वेबसाइट पर और पर टॉप सेलिंग किताबों में से एक है.

पुश्तैनी कारोबार को कैसे एस्टेब्लिश करें? इस पर लिख रहे किताब: 1000 से ज्यादा कॉपियां इसकी अब तक बिक चुकी हैं, जबकि वह एक और किताब अपने एक्सपीरियंस और अपने पैतृक कारोबार को लेकर ला रहे हैं. उनका कहना है कि मैंने बिजनेस की पढ़ाई की लेकिन आज तक कभी अपने पैतृक कारोबार को कैसे एस्टेब्लिश करें, इस पर कभी कोई जिक्र नहीं किया गया. इसलिए मैं एक ऐसी किताब लेकर आना चाह रहा हूं जिसमें अपने पुश्तैनी कारोबार को आगे बढ़ाने के तरीकों को और उन एथिक्स पर बात हो जिसको आज की युवा पीढ़ी फॉलो कर सके.

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