बालाघाट: जिले के किरनापुर के कलयुगी श्रवण कुमार की चारों ओर सराहना हो रही है. हो भी क्यूं ना, एक बेटे ने काम ही ऐसा किया है, जिससे लोग उन्हें कलयुग के श्रवण कुमार की संज्ञा दे रहे हैं. दरअसल, इस बेटे ने अपने माता पिता के संघर्षमय जीवन और त्याग से प्रेरणा लेकर उनकी स्मृति में मंदिर बनवाया है.
जहां आज की बिजी लाइफ में लोग अपने माता-पिता को वृद्धा आश्रम में छोड़ दे रहे हैं. वहीं किरनापुर निवासी मंगल प्रसाद रैकवार ने अपने माता पिता का मंदिर बनाया है. इस मंदिर में देवी-देवताओं की मूर्ति की जगह अपने स्वर्गीय पिता रामरतन रैकवार, बड़ी माँ स्वर्गीय शुभन्ति रैकवार, मां पार्वती रैकवार की प्रतिमा स्थापित कर विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों के साथ अनावरण कार्यक्रम आयोजित किया.
भावुक होकर सुनाई संघर्ष की कहानी
कार्यक्रम में के दौरान अपने पुराने दिनों को याद कर सामाजिक कार्यकर्ता मंगल प्रसाद रैकवार भावुक हो गए. उन्होंने बताया, "उनके पिता रामरतन रैकवार और मां शुभंति बेहद गरीब परिवार से थे. उनकी कोई संतान नहीं होने पर शुभंति ने अपने पति का दूसरा विवाह अपनी मौसेरी बहन पार्वती से करवाया. जिसके बाद रामरतन और पार्वती की दो संतानें मंगल और सीताबाई हुई."
बचपन में हो गई थी पिता की मौत
मंगल प्रसाद रैकवार ने बताया, "जब हम छोटे थे तब पिताजी का 1993 मे निधन हो गया था. दोनों माताओं ने बड़े ही संघर्ष का जीवन जीते हुए हमारा पालन पोषण किया. संघर्ष कर हमें पढ़ाया लिखाया. वहीं बहन सीताबाई का विवाह करवाया. विवाह के 2 माह ही बीते थे कि बहन की सर्पदंश से मौत हो गई . मैंने पढ़ाई करने के बाद स्वयं का प्रॉपर्टी का काम शुरू किया और उसी की बदौलत आज इस मकाम पर पहुंचा हूं."
मंत्री ने दिलवाई थी वन विभाग में नौकरी
आगे बात करते हुए उन्होंने बताया "मध्य प्रदेश के पूर्व परिवहन मंत्री लखीराम कावरे की मदद से वन विभाग में दैनिक वेतन भोगी के रूप में नौकरी दिलवाई थी, लेकिन व्यवसाय में मन लगने के कारण मैंने नौकरी छोड़ दी और अपनी पैतृक जमीन पर प्रॉपर्टी का काम शुरू किया. धीरे-धीरे व्यवसाय बढ़ता चला गया. इसी बीच अपना घर बनवाना शुरू किया."
"जब मकान का काम चल रहा था तो मां सामने बैठकर काम देखा करती थी. तब मैने सोचा था कि मां के हाथों ही अपने घर का फीता कटवाएंगे, लेकिन नियति को यह सब मंजूर नहीं था, एक दिन दिल का दौरा पड़ने से मां का निधन हो गया."
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माता-पिता का बनवाया मंदिर
उनकी समाधि घर के पास बनवाई और रोज मैं समाधि के पास जाकर बैठा करता था, लेकिन मन में कमी महसूस होती थी. जिस मां के त्याग और संघर्ष से मैं और मेरा परिवार एक सर्वसुविधायुक्त मकान में रह रहे हैं, लेकिन मां खुले आसमान में हैं. तब से ठान लिया कि मैं अपने माता पिता का मंदिर बनाऊंगा और इस नवनिर्मित मंदिर में अपने पिता रामरतन रैकवार, बड़ी माताश्री स्वर्गीय शुभन्तिजी रैकवार और माताश्री स्वर्गीय पार्वती जी रैकवार की प्रतिमा स्थापित करवाया है. जिसका अनावरण ग्रामीणजनों की मौजूदगी मे धार्मिक अनुष्ठानों के साथ किया गया है.