बालाघाट (अशोक गिरी): मध्य प्रदेश के बालाघाट में एक ऐसा स्थान है, जो सांप्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल पेश करता है. यहां एक ही स्थान पर भगवान श्रीराम का मंदिर और जामा मस्जिद स्थित है. इन दोनों धार्मिक स्थलों के बीच मात्र एक पतली सी दीवार है. इससे खास बात एक और है कि रामनवमी के दिन भगवान राम को पहनाए जाने वाले वस्त्रों को एक मुस्लिम परिवार तैयार करता है. साथ ही पूरा परिवार उपवास भी रखता है. यह नगरी प्रभु राम के नाम से प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि भगवान राम वनवास जाते समय यहां से होकर गुजरे थे.
वाल्मीकि रामायण में भी मिलता है इस स्थान का उल्लेख
जिले के वारासिवनी अनुविभागीय मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर रामपायली ग्राम स्थित श्रीराम बालाजी मंदिर में भगवान राम का मंदिर और जामा मस्जिद के बीच एक दीवार है. जिसकी बुनियाद पर दोनों इमारतें बनाई गई है. दीवार से सटे एक तरफ मंदिर में भगवान श्रीराम सहित श्री बालाजी, श्री गणेश जी व हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित है, तो दूसरी ओर जामा मस्जिद है. ऐसी सामाजिक और धार्मिक सौहार्द की मिसाल आसपास के क्षेत्र में कहीं दिखाई नही देती. चंदन नदी के तट पर बसे रामपायली का नाम पूर्व में राम पदावली था. इसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण में किया गया है.

वनवास जाते हुए यहां से होकर गुजरे थे प्रभु राम
पौराणिक संदर्भो के अनुसार, 14 वर्ष की वनवास यात्रा के दौरान भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के साथ रामपायली होते हुए रामटेक के ओर प्रस्थान किए थे. राम वन गमन पथ में भी रामपायली का उल्लेख है. कहा जाता है की यात्रा के दौरान भगवान श्रीराम ने मंदिर में चंदन नदी से बालू लाकर भगवान शिव के पिण्ड का निर्माण किया था, जो अभी तक यथावत है. इसी पिण्ड का नित्य प्रति पूजन अभिषेक भक्तों द्वारा किया जाता है. मंदिर का वास्तु शिल्प किलानुमा है, व इसमें बने झरोखों से सूर्योदय के समय पहली किरण भगवान शिव के पिण्ड पर पड़ती है.
महाराजा भोसले के पूर्वजों ने कराया था मंदिर का निर्माण
मंदिर के पुजारी रविशंकर दास वैष्णव ने बताया कि "भगवान श्रीराम का यह अनूठा मंदिर इस क्षेत्रवासियों के लिए आस्था का प्रमुख केन्द्र है. इस मंदिर का निर्माण नागपुर के महाराजा भोसले के पूर्वजों द्वारा कराया गया था. किले के बुर्ज अभी भी वैसे ही दिखाई देते है. मंदिर के नीचे चंदन नदी के तट पर श्री हनुमान जी का मंदिर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि श्री हनुमान जी का एक पैर तो स्पष्ट दिखाई देता है, लेकिन दूसरे पैर की गहराई का पता नहीं चलता. बताते हैं वह पाताल तक पहुंचा है."

मुस्लिम परिवार बनाता है भगवान राम के वस्त्र
भगवान श्री रामचंद्र जी के इस मंदिर से जुड़ी सबसे अनोखी बात यह है की भगवान राम जी के जन्मोत्सव, रामनवमी पर्व पर भगवान जी को जो नये वस्त्र चढ़ाये जाते है, उन वस्त्रों की सिलाई मुस्लिम समाज से जुड़े जनाब आशिक अली द्वारा कि जाती है. भगवान के लिए वस्त्र सिलने का यह सिलसिला इनकी पिछली 5 पीढ़ियों द्वारा चलाया आ रहा है. जनाब आशिक अली बताते हैं कि "भगवान श्री राम के पति उनके मन में अगाध श्रद्धा है. रामनवमी के पर्व पर उनका पूरा परिवार उपवास रखता है और मंदिर में पूजन आरती के पश्चात वे उपवास तोड़ते है."
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यहां के लोग एक दूसरे के त्योहारों में होते हैं शामिल
इतना ही नहीं भगवान राम की संध्या आरती का समय और शाम की नमाज का वक्त 8 बजे का होता है. जब भगवान की आरती के साथ-साथ नमाज की अजान के स्वर एक साथ गुजायमान होते सुनाई देते है. स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां अभी तक किसी प्रकार का सांप्रदायिक द्वेष या विवाद नहीं हुआ है. लोगों में आपसी भाईचारा बना हुआ है. लोग एक दूसरे के त्योहारों में शामिल होते हैं. एक ही दीवार से सटे राम मंदिर और मस्जिद साम्प्रदायिक सद्भावना की अनूठी मिसाल बनकर और अमन और शांति का पैगाम दे रहे है.