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बालाघाट के आदिवासियों का पीला सोना, काजू-बादाम जैसी शक्तिवर्धक ताकत - MAHUA FLOWERS BENEFITS

मध्य प्रदेश के बालाघाट में महुआ आदिवासियों मुनाफा सीक्रेट. सड़कों पर बिखरा पीला सोना आदिवासियों के जीवन को बदल रहा.

Tribal community getting money
भारी मात्रा में सूख रहे महुआ का फूल (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : March 17, 2025 at 5:31 PM IST

Updated : March 17, 2025 at 5:49 PM IST

2 Min Read

बालाघाट: जिले में आदिवासी समाज के लिए महुआ वरदान साबित हो रहा है. ग्रामीण अंचलों में भारी मात्रा में महुआ पाया जाता है. जिसे आदिवासी समाज के लोग चुनकर बाजारों में बेचते हैं. यह जीवन यापन के लिए इतना खास है कि स्थानीय लोग इसे पीला सोना भी कहते हैं. उनके लिए महुआ धार्मिक समेत कई अन्य मामलों में भी खास महत्व रखता है.

आदिवासी समुदाय की जीवन रेखा

जिला पंचायत सदस्य और आदिवासी समुदाय से आने वाले दलसिंह पन्द्रे ने कहा, "महुआ आदिवासी समाज के लिए जीवन रेखा है. इसको बेचकर वे लोग लगभग 6 महीने का राशन सामग्री की व्यवस्था कर लेते हैं. सीजन में लोग महुआ को परिवार संग दिन-रात चुनते हैं. इसको बेचकर आजीविका चलाने के लिए जरूरी सामानों की व्यवस्था करते हैं. अगर इसे तीन महीनों तक जमा कर घर में रखते हैं तो तीन गुणा अधिक कीमत मिलती है."

जिला पंचायत सदस्य दलसिंह पन्द्रे ने बताया महुआ की अहमियत (ETV Bharat)

महुआ में काजू-बादाम के समान पौष्टिकता

महुआ का कई अन्य प्रकार से भी उपयोग किया जाता है. इसको लोग खाने में भी उपयोग करते हैं. साथ ही इसकी चाशनी बनाकर भी उपयोग में किया जाता है. इम्यूनिटी पावर को बरकरार रखने यह मददगार साबित होता है. स्थानीय लोगों का दावा है कि नियमित रूप से इसका सेवन करने पर काजू-बादाम के समान पौष्टिकता मिलती है. आदिवासी समुदाय में महिलाएं डिलीवरी के बाद महुआ का प्रयोग करती हैं. जिससे जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ रहते हैं.

जिला पंचायत सदस्य दलसिंह पन्द्रे ने आगे कहा, "आदिवासी समुदाय के लिए महुआ केवल जीविकोपार्जन का साधन मात्र नहीं है, बल्कि इसमें धार्मिक दृष्टि से भी बड़ी आस्था है. इसलिए अपने इष्ट देवताओं की आराधना के दौरान केवल महुआ के फूल चढ़ाए जाते हैं. महुआ का फूल सूख जाने के बाद भी पानी डालने पर दोबारा बिल्कुल उसी तरह ताजा हो जाता है. साथ ही इसको किसी अन्य फूलों की तरह नहीं तोड़ा जाता है, बल्कि खुद ही पेड़ से गिरता है. इसलिए आदिवासी समुदाय पूजा के दौरान अपने देवी देवताओं में सिर्फ महुआ का फूल ही चढ़ाते हैं."

बालाघाट: जिले में आदिवासी समाज के लिए महुआ वरदान साबित हो रहा है. ग्रामीण अंचलों में भारी मात्रा में महुआ पाया जाता है. जिसे आदिवासी समाज के लोग चुनकर बाजारों में बेचते हैं. यह जीवन यापन के लिए इतना खास है कि स्थानीय लोग इसे पीला सोना भी कहते हैं. उनके लिए महुआ धार्मिक समेत कई अन्य मामलों में भी खास महत्व रखता है.

आदिवासी समुदाय की जीवन रेखा

जिला पंचायत सदस्य और आदिवासी समुदाय से आने वाले दलसिंह पन्द्रे ने कहा, "महुआ आदिवासी समाज के लिए जीवन रेखा है. इसको बेचकर वे लोग लगभग 6 महीने का राशन सामग्री की व्यवस्था कर लेते हैं. सीजन में लोग महुआ को परिवार संग दिन-रात चुनते हैं. इसको बेचकर आजीविका चलाने के लिए जरूरी सामानों की व्यवस्था करते हैं. अगर इसे तीन महीनों तक जमा कर घर में रखते हैं तो तीन गुणा अधिक कीमत मिलती है."

जिला पंचायत सदस्य दलसिंह पन्द्रे ने बताया महुआ की अहमियत (ETV Bharat)

महुआ में काजू-बादाम के समान पौष्टिकता

महुआ का कई अन्य प्रकार से भी उपयोग किया जाता है. इसको लोग खाने में भी उपयोग करते हैं. साथ ही इसकी चाशनी बनाकर भी उपयोग में किया जाता है. इम्यूनिटी पावर को बरकरार रखने यह मददगार साबित होता है. स्थानीय लोगों का दावा है कि नियमित रूप से इसका सेवन करने पर काजू-बादाम के समान पौष्टिकता मिलती है. आदिवासी समुदाय में महिलाएं डिलीवरी के बाद महुआ का प्रयोग करती हैं. जिससे जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ रहते हैं.

जिला पंचायत सदस्य दलसिंह पन्द्रे ने आगे कहा, "आदिवासी समुदाय के लिए महुआ केवल जीविकोपार्जन का साधन मात्र नहीं है, बल्कि इसमें धार्मिक दृष्टि से भी बड़ी आस्था है. इसलिए अपने इष्ट देवताओं की आराधना के दौरान केवल महुआ के फूल चढ़ाए जाते हैं. महुआ का फूल सूख जाने के बाद भी पानी डालने पर दोबारा बिल्कुल उसी तरह ताजा हो जाता है. साथ ही इसको किसी अन्य फूलों की तरह नहीं तोड़ा जाता है, बल्कि खुद ही पेड़ से गिरता है. इसलिए आदिवासी समुदाय पूजा के दौरान अपने देवी देवताओं में सिर्फ महुआ का फूल ही चढ़ाते हैं."

Last Updated : March 17, 2025 at 5:49 PM IST
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