नई दिल्ली: देश के पहले कानून मंत्री और दलितों के मसीहा के रूप में माने जाने वाले डॉ भीमराव अंबेडकर की 14 अप्रैल को 134वीं जयंती है. इसको लेकर दिल्ली सहित पूरे देश में तैयारियां चल रही हैं. उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में हुआ था, जबकि उनका निधन दिल्ली में हुआ था. अंबेडकर की जयंती के अवसर पर उनके अनुयाई पूर्व सांसद कांग्रेस नेता एवं दलित ओबीसी माइनॉरिटी आदिवासी (डोमा) परिसंघ के अध्यक्ष डॉ उदित राज से ईटीवी भारत ने बातचीत की.
डॉ उदित राज ने बताया कि वास्तव में दलित और पिछड़ों के सच्चे मसीहा डॉक्टर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर थे. उनकी बदौलत ही दलितों का उत्थान हुआ और आज दलित उनके बताए हुए रास्ते पर चलकर आगे बढ़ रहे हैं. डॉक्टर उदित राज ने यह भी कहा कि बाबा साहब ने जो सपना देखा था वह अभी पूरी तरह सागर नहीं हुआ है. क्योंकि बड़े-बड़े महापुरुष बहुत बड़ा सपना देखते हैं, जिसको पूरा होने में समय लगता है. बहुत से लोग उनके आदर्श को आत्मसात नहीं कर रहे हैं. बाबा साहब अंबेडकर संविधान निर्माण समिति के अध्यक्ष बने तो उन्होंने दलितों पिछड़ों के लिए संविधान में प्रावधान किया. उनको आगे बढ़ाने की बात की. डॉक्टर अंबेडकर ने अंग्रेजों के जमाने में साइमन कमीशन की बातों को आगे बढ़ाया. पूना पैक्ट हुआ उससे भी दलित के अधिकारों को बल मिला.
अंबेडकर जयंती को पूरे देश में बड़े स्तर पर मनाया जाता: डॉक्टर उदित राज ने कहा कि देश में बहुत सारे ऐसे स्मारक और स्थान हैं जो डॉक्टर अंबेडकर के अनुयायियों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं. उन्होंने बताया कि 26 अलीपुर रोड स्थित अंबेडकर स्मारक भी उनमें से एक है. इसके अलावा उनकी जन्मस्थली महू उनकी दीक्षा भूमि महाराष्ट्र नागपुर और इंग्लैंड में भी जहां जिस जगह वह रहे वह सभी आज देश ही नहीं दुनिया के लोगों के लिए प्रेरणा का केंद्र हैं. डॉक्टर उदित राज ने कहा कि अंबेडकर जयंती एक ऐसा कार्यक्रम है जिसको पूरे देश में बड़े स्तर पर और ढोल ढमाके के साथ मनाया जाता है. अंबेडकर जयंती के कार्यक्रम महीनों तक चलते हैं. उनकी जयंती से एक सप्ताह पहले कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं और फिर आगे महीनों तक चलते रहते हैं. डॉक्टर अंबेडकर ने देश ही नहीं पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन किया. डॉ उदित राज ने कहा कि बाबा साहब अंबेडकर ने पूरे जीवन जाति विहीन समाज बनाने के लिए संघर्ष किया. वह जातिपांति के विरोधी थे. वह व्यक्ति पूजक भी नहीं थे.
दिल्ली से अंबेडकर का गहरा नाता: दरअसल दिल्ली के अलीपुर रोड पर स्थित प्लॉट नंबर 26 वह जगह है, जहां डॉ भीमराव अंबेडकर ने अंतिम सांसे ली थी. इस स्मारक को संविधान की तरह दिखने वाली एक किताब के रूप में डिजाइन किया गया है. यह इमारत आधुनिक और बौद्ध वास्तुकला का मिश्रण है. संगीतमय फव्वारे, सारनाथ के अशोक स्तंभ की प्रतिकृति और 12 फुट ऊंची कांस्य प्रतिमा, इस परिसर के कुछ मुख्य आकर्षण हैं. पहली मंजिल में बाबासाहेब के जीवन से संबंधित डिस्प्ले हैं. दो मंजिला इमारत के निचले स्तर पर एक प्रदर्शनी दीर्घा है.जिसमें डॉ. अंबेडकर द्वारा परिसर में बिताए गए दिनों को चित्रित किया गया है. उनके जीवन यात्रा को भी यहां यहां दर्शाया गया है. स्मारक में महात्मा बुद्ध की संगमरमर की मूर्ति के साथ एक ध्यान कक्ष भी है. इस क्षेत्र में लगाए गए पत्थर को वियतनाम से आयात किया गया है.

अंबेडकर को राज्यसभा सांसद के रूप में आवंटित था यह बंगला: जानकारों के अनुसार, जब डॉ अंबेडकर ने कुछ मतभेदों के चलते नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था, तब उन्हें बतौर राज्यसभा सांसद यहां स्थित बंगला आवंटित किया गया था, जहां वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहा करते थे. छह दिसंबर 1956 को उन्होंने यहीं अंतिम सांस ली. इसके बाद इस बंगले को तोड़कर इस जगह को डॉ अंबेडकर राष्ट्रीय स्मारक के रूप में विकसित किया गया. यह स्मारक सुबह 10 बजे शाम से सात बजे तक प्रतिदिन मंगलवार से शनिवार तक जनता के लिए खुला रहता है. वहीं, सोमवार के दिन यहां अवकाश रहता है, जिसके चलते इसे बंद रखा जाता है.
अंबेडकर जयंती की तैयारियों के चलते शनिवार को स्मारक को बंद रखा गया है. इस दौरान बड़ी संख्या में स्मारक को देखने पहुंचे लोगों को मायूस होकर वापस लौटना पड़ा. स्मारक के अंदर दर्शकों के लिए बेसमेंट के दो तलों में पार्किंग की भी व्यवस्था है. यह स्मारक आज भी डॉ अंबेडकर की स्मृतियों को जीवंत बनाए हुए है.
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