ये हर्बल नुस्खा बड़ा कारगर; सुपारी-पान मसाला खाने से मुंह की होने वाली बीमारी का आयुर्वेद में सटीक इलाज
हर्बल अर्क बीमारी को पूरी तरह खत्म करने वाली दवा नहीं है, लेकिन इसे सहायक इलाज के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है.

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team
Published : October 2, 2025 at 9:33 AM IST
लखनऊ: सुपारी, गुटखा और पान मसाला खाने वालों में आम बीमारी ओरल सबम्यूकोस फाइब्रोसिस के इलाज में आयुर्वेद ने नई उम्मीद जगाई है. गोरखमुंडी, तुलसी और शहद से बने हर्बल अर्क को डॉक्टर की सलाह पर लेने से मरीजों को मुंह खोलते समय होने वाले दर्द और जलन में आराम मिला है.
यह बात केजीएमयू के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के एक शोध में सामने आई है. केजीएमयू की गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट डॉ. ऋचा ने बताया कि शोधकर्ताओं ने 60 मरीजों को दो समूहों में बांटा. पहले समूह को सिर्फ मानक इलाज दिया गया. जिसमें स्टेरायड इंजेक्शन, हायल्यूरोनिडेज और एंटीआक्सीडेंट दवाएं शामिल थीं.
दूसरे समूह को उपरोक्त दवाओं के साथ गोरखमुंडी, तुलसी और शहद से तैयार हर्बल अर्क भी दिया गया. दूसरे समूह का परिणाम चौंकाने वाला रहा. हर्बल अर्क लेने वाले मरीजों में जलन और दर्द में 90 प्रतिशत तक राहत देखने को मिली.
सूजन से जुड़े बायोमार्कर इंटरल्यूकिन छह का स्तर दोनों समूहों में घटा, लेकिन सिर्फ मानक इलाज लेने वाले मरीजों में यह कमी तुलनात्मक रूप से अधिक पाई गई. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह हर्बल अर्क बीमारी को पूरी तरह खत्म करने वाली दवा नहीं है, लेकिन इसे सहायक इलाज के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. शोध को नेशनल जर्नल आफ मैक्सिलोफेशियल सर्जरी ने हाल ही में स्वीकार किया है.
क्या है फाइब्रोसिस: डॉ. ऋचा ने बताया कि ओरल सबम्यूकोस फाइब्रोसिस मुंह की गंभीर बीमारी है, जो पान, गुटखा और तंबाकू के सेवन से होती है. इसमें मुंह की झिल्ली सख्त हो जाती है, जिसकी वजह से मुंह खुलना मुश्किल हो जाता है और मरीज भीषण दर्द व जलन से गुजरता है. यह पूर्व-कैंसर अवस्था है. रोकथाम और समय पर इलाज जरूरी है.
शोध में इन्होंने निभाई अहम भूमिका: केजीएमयू के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी से डॉ. ऋचा, प्रो. विभा सिंह, डॉ. शादाब मोहम्मद, प्रो. यूएस पाल, डॉ. गीता सिंह, डॉ. अमिया अग्रवाल, डॉ. अरुणेश के तिवारी, विश्वविद्यालय के ही सेंटर फार्म फार एडवांस्ड रिसर्च से डॉ. नीतू निगम. इसके अलावा आयुर्वेद आचार्य डॉ. अभया एन. तिवारी, सेवाथा यूनिवर्सिटी, चेन्नई के डॉ. शांतोष कन्ना ने शोध में अहम भूमिका निभाई.
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