कर्ज-अकाल मृत्यु से मुक्ति चाहिए तो कालाष्टमी पर करें ये उपाय; भैरव को प्रसन्न करने के लिए इन मंत्रों का करें जाप
इस बार कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि 13 अक्टूबर, सोमवार को दिन में 12 बजकर 25 मिनट पर लगेगी.

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team
Published : October 12, 2025 at 11:15 AM IST
वाराणसी: सनातन धर्म में पौराणिक परंपरा के अनुसार विशिष्ट माह की विशिष्ट तिथियों पर देवी-देवताओं का व्रत-पर्व-उत्सव श्रद्धा भक्तिभाव से मनाया जाता है. श्री भैरव प्राकट्य महोत्सव मार्ग शीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि के दिन मनाया जाता है, जिसे भैरव जयन्ती के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि भैरव के दर्शन-पूजन एवं व्रत करने से आरोग्य सुख की प्राप्ति होती है. साथ ही अकाल मृत्यु के भय एवं अन्य कठिनाइयों का निवारण होता है. भैरव को साक्षात भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है.
भगवान विश्वेश्वर अभय प्रदान करने वाले: भगवान शिव के दो स्वरूप हैं पहला स्वरूप भक्तों को अभय प्रदान करने वाले विश्वेश्वर के रूप में तथा दूसरा स्वरूप दण्ड देने वाला है, भैरव के रूप में, जो समस्त दुष्टों का संहार करते हैं. भगवान विश्वेश्वर (शिवजी) का रूप अत्यन्त सौम्य व शान्ति का प्रतीक हैं, जबकि भैरव का रूप अत्यन्त रौद्र व प्रचंड है. भैरव के उपासक व्रत उपवास रखकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. इस बार यह पर्व 13 अक्टूबर, सोमवार को हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाएगा.
कब लगेगी कृष्णपक्ष की अष्टमी: ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि 13 अक्टूबर, सोमवार को दिन में 12 बजकर 25 मिनट पर लगेगी, जो कि 14 अक्टूबर, मंगलवार को दिन में 11 बजकर 10 मिनट तक रहेगी. इस दिन पुनर्वसु नक्षत्र 13 अक्टूबर, सोमवार को दिन में 12 बजकर 27 मिनट से 14 अक्टूबर, मंगलवार को दिन में 11 बजकर 55 मिनट तक रहेगा, तत्पश्चात् पुष्य नक्षत्र प्रारम्भ हो जाएगा.
ग्रह दोषों का होता है निवारण: ज्योतिषविद् विमल जैन के अनुसार भैरव अकाल मृत्यु के भय के निवारण के साथ ही रोग, शोक, संताप, कर्ज आदि का भी शमन करते हैं. जिन्हें जन्मकुण्डली में ग्रहजनित दोष, शनि व राहू की महादशा, अन्तर्दशा या प्रत्यन्तरदशा तथा शनिग्रह की अड़ैया या साढ़े साती में शुभ फल नहीं मिल रहा हो, अथवा जिन्हें जीवन में राजकीय कष्ट, विरोधी या शत्रुओं से कष्ट, न्यायालय सम्बन्धित विवाद अथवा संकटों या अनावश्यक मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा हो, उन्हें भैरव अष्टमी तिथि विशेष के दिन व्रत उपवास रखकर श्रीभैरव जी की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करनी चाहिए.
श्रद्धालु भक्त एवं व्रतकर्ता को भैरव की प्रसन्नता के लिए रात्रि जागरण करने से अलौकिक आत्मिक शान्ति मिलती है, साथ ही उन्हें समस्त पापों से मुक्ति भी मिलती है. जिन्हें अपने जीवन में शारीरिक, मानसिक कष्ट या स्वास्थ्य सम्बन्धित परेशानी हो या कर्ज की अधिकता से कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा हो, उन्हें भी आज के दिन भैरव का दर्शन-पूजन करके व्रत रखना चाहिए.
क्या है पूजा का विधान : ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि प्रातःकाल ब्रहामुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त हो, स्वच्छ वस्त्र धारण कर अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात भैरव जी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए. भैरव की पंचोपचार, दशोपचार एवं षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए. भैरव का श्रृंगार करके उनको धूप-दीप, नैवेद्य, ऋऋतुपुष्प, ऋतुफल आदि अर्पित करके पूजा अर्चना करनी चाहिए. इसके साथ ही श्रीभैरव जी को उड़द की दाल से बने बड़े, इमरती एवं अन्य मिष्ठान्न अर्पित करने चाहिए. भैरव की प्रसन्नता के लिए ॐ श्री भैरवाय नमः 'मन्त्र का जप करना चाहिए. भैरव जी की महिमा में भैरव चालीसा, श्रीभैरव स्तोत्र का पाठ एवं भैरव जी से सम्बन्धित मन्त्र का जप करना लाभकारी रहता है.
व्रत ॐ ऐं क्लीम् ह्रीं भम् भैरवाय मम ऋण विमोचनाय महा महाधनप्रदाय क्लीं स्वाहा' इस मन्त्र का जप 11, 21, 31, 51 या अधिकतम संख्या में करना लाभकारी रहता है. जप नित्य व नियमित रूप से करना चाहिए. व्रतकर्ता को दिन के समय शयन नहीं करना चाहिए. अपनी दिनचर्या को नियमित संयमित रखते हुए व्रत करके लाभान्वित होना चाहिए.
कुत्ते को खिलाएं मिष्ठान: भैरव जी का वाहन श्वान (कुत्ता) है, उन्हें भोजन एवं मिष्ठान्न खिलाने की परम्परा है. कुछ भक्तजन उन्हें दूध भी पिलाते हैं. पर्व विशेष पर ब्राह्मण, संन्यासी एवं गरीबों की सेवा व सहायता करनी चाहिए. भैरव जी की श्रद्धा, आस्था भक्तिभाव के साथ आराधना करने से जीवन में सुख-सौभाग्य का मार्ग प्रशस्त होता है. काल भैरव को काशी का कोतवाल माना जाता है.
काशी में विराजते हैं विग्रह के रूप में अष्टभैरव
- प्रथम चण्ड भैरव (दुर्गाकुण्ड)
- द्वितीय रुद्रभैरव (हनुमानघाट)
- तृतीय-क्रोधन भैरव (कामाख्यादेवी-कमच्छा)
- चतुर्थ-उन्मत्त भैरव (बटुक भैरव-कमच्छा)
- पंचम-भीषण भैरव (भूतभैरव-नखास)
- षष्ठम् असितांग भैरव (दारानगर)
- सप्तम-कपाल भैरव (लाट भैरव)
- अष्टम-संहार भैरव (गायघाट)

