पटना : राजधानी पटना के बापू टावर में शनिवार को पहले मगही महोत्सव का भव्य आयोजन हुआ. सुबह 9 बजे से शाम 7 बजे तक आठ सत्रों में मगही भाषा, साहित्य, संस्कृति, लोक कला और इतिहास पर विचार-विमर्श हुआ.
मातृभाषा से जुड़ाव ज़रूरी- संयोजक डॉ. उज्ज्वल: कार्यक्रम के संयोजक डॉ. उज्ज्वल ने कहा कि मातृभाषा के प्रति लोगों का जुड़ाव बेहद जरूरी है. मगही एक समृद्ध भाषा है और मगध का नाम विश्वभर में प्रसिद्ध है. उन्होंने कहा, “यह भाषा हमारी बोलचाल का अभिन्न हिस्सा है और आज की भीड़ ने यह स्पष्ट कर दिया कि लोग इसके विकास को लेकर सक्रिय हैं.”

मगही को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग : महोत्सव में पहुंचे बिहार सरकार के सहकारिता मंत्री डॉ. प्रेम कुमार ने मगही में संबोधन देते हुए कहा कि मगही भाषा आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की पूरी पात्रता रखती है. उन्होंने बताया कि इस विषय पर उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है और केंद्र सरकार इस दिशा में सकारात्मक कार्रवाई कर रही है.
दीप प्रज्ज्वलन से उद्घाटन : कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्यमंत्री के सचिव कुमार रवि कुमार ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया. इस अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान देने वाली हस्तियों को ‘नालंदा शील’ और ‘मगही मगछा सम्मान’ से नवाजा गया. सम्मानित लोगों में उद्यमी रवि आर. कुमार, डॉ. सत्यजीत कुमार, यूरोलॉजिस्ट डॉ. कुमार राजेश रंजन, शिक्षाविद डॉ. नीरज अग्रवाल और उद्यमी राहुल कुमार शामिल थे.

ठुमरी गायकी से शुरुआत, साहित्य पर पहला सत्र : महोत्सव की शुरुआत गया घराने की ठुमरी गायकी से हुई, जिसमें राजन सीजुआर की प्रस्तुति ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया.
पहले सत्र का विषय “मगही भाषा और साहित्य” था. संचालन किया संस्कृतिकर्मी निराला बिदेसिया ने. मुख्य वक्ताओं में सामाजिक कार्यकर्ता इश्तेयाक अहमद, साहित्यकार धनंजय श्रोत्रिय, प्रो. अतीश परासर और प्रो. शिवनारायण शामिल थे.
मगध की साझा संस्कृति और साहित्यिक विरासत : इश्तेयाक अहमद ने मगध की साझा संस्कृति पर बोलते हुए कहा, ''मुसलमानों और हिंदुओं की शब्दावली में समानता है. यहां की संस्कृति आपस में घुली-मिली है. मुसलमानों की शादी में भी हिंदू रीति-रिवाजों से मिलती-जुलती परंपराएं दिखती हैं.'' धनंजय श्रोत्रिय ने बताया कि मगही में दोस्तोव्स्की और लेर्मोंटोव जैसे अंतरराष्ट्रीय लेखकों का अनुवाद हुआ है. 1950 के बाद से मगही में करीब 200 पीएचडी हो चुकी हैं.
मगही की लचीलापन और संरचना पर विमर्श : प्रो. अतीश परासर ने कहा, ''मगही में इतनी विविधता और विस्तार है, जो कहीं और नहीं मिलता. अंग्रेजों ने कहा था कि क्रिया बदलने से भाषा बदलती है, लेकिन मगही में तो संज्ञा तक बदल जाती है'' उन्होंने डिजिटल दर्शकों की जगह जमीनी कार्यकर्ताओं की जरूरत पर बल दिया.
इतिहास, पुरातत्व और विरासत पर दूसरा सत्र : दूसरे सत्र का संचालन रविशंकर उपाध्याय ने किया. इसमें इतिहासकार प्रो. आनंद वर्धन और पुरातत्वविद सुजीत नयन ने मगध के इतिहास, पुरातत्व और विरासत पर चर्चा की.
उद्यमिता पर जोर: तीसरे सत्र में मगध में उद्यमिता विषय पर चर्चा हुई, जिसका संचालन डॉ. उज्ज्वल कुमार ने किया. उद्यमी रवि आर. कुमार ने कहा, “मगध शुरू से समृद्ध रहा है. यहाँ के युवाओं को रोजगार मांगने वाला नहीं, देने वाला बनना चाहिए.” डॉ. सत्यजीत कुमार ने युवाओं की ऊर्जा को सही दिशा में लगाने पर जोर दिया.
मगध, मगही और सिनेमा: चौथे सत्र में मगध और सिनेमा विषय पर चर्चा हुई. वक्ताओं में अभिनेत्री अस्मिता शर्मा, अभिनेता विकास, अभिनेता बुल्लू कुमार और फिल्म समीक्षक बिनोद अनुपम शामिल थे. संचालन विजेता चंदेल ने किया. वक्ताओं ने कहा कि जल्द ही मगही में फिल्में भी दिखाई देंगी.
कला और संस्कृति पर विचार, कविता पाठ से महोत्सव सजा : अगले सत्रों में मगध की कला और संस्कृति पर चर्चा हुई. वक्ताओं में अशोक कुमार सिन्हा, विनय कुमार और सुमन कुमार शामिल थे. इसके बाद संजीव मुकेश, चंदन द्विवेदी, प्रेरणा प्रताप और अनमोल कुमारी ने मगही में कविता पाठ कर माहौल को साहित्यिक रंग दिया.
लोकगायन की मधुर प्रस्तुति के साथ समापन : महोत्सव के अंतिम सत्र में लोकगायन की प्रस्तुति हुई. चंदन तिवारी, जितेंद्र ब्यास और रोशन कुमारी झूमरी की प्रस्तुतियों ने श्रोताओं को लोकधुनों में डुबो दिया. पूरे आयोजन में मगही भाषा, संस्कृति और विरासत की गूंज स्पष्ट रूप से सुनाई दी.
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