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ये है 6000 लोगों का 'अपना घर', यहां बनते हैं अटूट रिश्ते और बहती है करुणा की धारा - APNA GHAR ASHRAM

'अपना घर आश्रम' में 6000 से अधिक लोग बिना खून के रिश्तों के, सेवा और करुणा से जुड़े एक परिवार की तरह रहते हैं.

भरतपुर का 'अपना घर आश्रम'
भरतपुर का 'अपना घर आश्रम' (फोटो ईटीवी भारत भरतपुर)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : May 15, 2025 at 1:52 PM IST

Updated : May 15, 2025 at 1:59 PM IST

4 Min Read

भरतपुर. राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित अपना घर आश्रम को यदि दुनिया का सबसे बड़ा परिवार कहा जाए, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी. क्योंकि यहां एक ही परिसर में 6000 से अधिक लोग बिना किसी खून के रिश्ते, जाति, धर्म या वर्ग के भेदभाव के साथ एक परिवार की तरह रहते हैं. यह आश्रम सिर्फ एक छत या इमारत नहीं, बल्कि मानवता, करुणा और सेवा का जीवंत उदाहरण है, जिसकी नींव डॉ. बीएम भारद्वाज और डॉ. माधुरी भारद्वाज ने वर्ष 2000 में रखी थी.

ऐसे बना दुनिया का सबसे बड़ा परिवार : डॉ. बीएम भारद्वाज ने बताया कि उन्होंने एक असहाय वृद्ध को तड़पते हुए देखा था, जिसके पास इलाज तो दूर, कोई देखने वाला भी नहीं था. उस घटना ने उनके भीतर करुणा और सेवा की ऐसी चिंगारी जलाई, जिसने अपना घर आश्रम को जन्म दिया. शुरू में 23 लावारिस, बीमार और मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों के साथ जो कार्य शुरू हुआ था, वह आज 6000 से अधिक सदस्यों वाले परिवार में बदल चुका है.

'अपना घर’ – जहां हर बेसहारा को मिलता है सहारा (वीडियो ईटीवी भारत भरतपुर)

इसे भी पढ़ें: परिवार से दूर बड़ा 'परिवार': अपनों का सहरा छिना तो बन गए एक-दूसरे के साथी, यादों के बीच बना रहे अटूट रिश्ता

यहां नहीं धर्म या जाति का भेद : डॉ. भारद्वाज ने बताया कि इस आश्रम में न कोई पूछता है कि आप किस धर्म के हैं, न यह कि आपकी जाति क्या है. यहां सिर्फ यह देखा जाता है कि आप जरूरतमंद हैं या नहीं. कोई सड़क पर बेसहारा मिला, कोई मानसिक अस्थिरता में भटकता हुआ, या कोई वृद्ध जिसे उसके अपनों ने ठुकरा दिया अपना घर ऐसे हर इंसान को गले लगाता है. डॉ. भारद्वाज का कहना है कि हम इंसान को पहले इंसान की तरह देखते हैं, फिर कुछ और. यहां कोई लावारिस नहीं होता, हर कोई परिवार का हिस्सा है.

बिना रिश्तों के जुड़ा परिवार
बिना रिश्तों के जुड़ा परिवार (फोटो ईटीवी भारत GFX)
जरूरतमंदों को लगाया जाता है गले
जरूरतमंदों को लगाया जाता है गले (फोटो ईटीवी भारत GFX)
आत्मनिर्भर बनने का अवसर
आत्मनिर्भर बनने का अवसर (फोटो ईटीवी भारत GFX)

6000 लोग, लेकिन एक आत्मा : डॉ. भारद्वाज ने बताया कि आश्रम के भरतपुर परिसर में रहने वाले ये 6000 लोग आपस में रिश्तेदार नहीं, लेकिन रिश्तों से भी गहरा जुड़ाव रखते हैं. कोई किसी की मदद करता है, कोई खाना परोसता है, कोई दवा देता है/ यहां हर उम्र, हर लिंग और हर मानसिक स्थिति के लोग एक-दूसरे के साथ रहते हैं. न कोई बड़ा है, न छोटा सब एक दूसरे का सहारा हैं. यहां सेवा देने वाले कर्मचारियों को भी 'सेवा साथी' कहा जाता है, जो आश्रमवासियों की देखभाल को अपना कर्तव्य नहीं, धर्म मानते हैं.

इसे भी पढ़ें: 195 सदस्यों का ये परिवार पेश कर रहा एकता की मिसाल, आज भी एक जगह बनता है खाना

क्यों है यह दुनिया का सबसे बड़ा परिवार? : डॉ भारद्वाज ने बताया कि एक ही परिसर में 6000 से अधिक लोग, जो किसी रिश्ते से नहीं, सिर्फ सेवा और सहानुभूति से जुड़े हैं. यह दृश्य दुनिया में कहीं और नहीं मिलता. यहां हर कोई अपना है. हर चेहरा किसी कहानी को जी रहा है, और हर हाथ किसी और को थामे हुए है. डॉ. भारद्वाज का सपना है कि देश के हर जिले में अपना घर हो, ताकि किसी को सड़क पर मरने के लिए मजबूर न होना पड़े. अभी भारत और नेपाल में मिलाकर आश्रम की 62 शाखाएं चल रही हैं, और प्रतिदिन नए सहयोगी और स्वयंसेवक इससे जुड़ रहे हैं. डॉ. भारद्वाज ने बताया कि अपना घर आश्रम केवल आश्रय देने तक सीमित नहीं है, बल्कि यहां रहने वाले प्रत्येक प्रभुजी को सम्मानजनक जीवन जीने और आत्मनिर्भर बनने का अवसर भी दिया जाता है. आश्रम में विभिन्न प्रकार की पुनर्वास गतिविधियां चलाई जाती हैं, जैसे अगरबत्ती निर्माण, मोमबत्ती बनाना, जूते-चप्पल बनाना आदि. इन कार्यों में स्वस्थ प्रभुजियों को उनकी क्षमता और रुचि के अनुसार जोड़ा जाता है, ताकि वे न केवल समय व्यतीत कर सकें, बल्कि आत्म-संतोष और आत्मविश्वास भी प्राप्त करें.

जहां खून नहीं, दिल से बनते हैं रिश्ते
जहां खून नहीं, दिल से बनते हैं रिश्ते (फोटो ईटीवी भारत भरतपुर)

परिवार का महत्व समझते हुए डॉ भारद्वाज कहते हैं कि आज जब दुनिया में परिवार छोटे होते जा रहे हैं, रिश्ते कमजोर पड़ रहे हैं, वहीं अपना घर आश्रम यह सिखा रहा है कि सच्चा परिवार वह होता है जहां दिल जुड़े हों, न कि केवल खून. यह आश्रम न केवल आश्रय देता है, बल्कि जीने की वजह देता है.

भरतपुर. राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित अपना घर आश्रम को यदि दुनिया का सबसे बड़ा परिवार कहा जाए, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी. क्योंकि यहां एक ही परिसर में 6000 से अधिक लोग बिना किसी खून के रिश्ते, जाति, धर्म या वर्ग के भेदभाव के साथ एक परिवार की तरह रहते हैं. यह आश्रम सिर्फ एक छत या इमारत नहीं, बल्कि मानवता, करुणा और सेवा का जीवंत उदाहरण है, जिसकी नींव डॉ. बीएम भारद्वाज और डॉ. माधुरी भारद्वाज ने वर्ष 2000 में रखी थी.

ऐसे बना दुनिया का सबसे बड़ा परिवार : डॉ. बीएम भारद्वाज ने बताया कि उन्होंने एक असहाय वृद्ध को तड़पते हुए देखा था, जिसके पास इलाज तो दूर, कोई देखने वाला भी नहीं था. उस घटना ने उनके भीतर करुणा और सेवा की ऐसी चिंगारी जलाई, जिसने अपना घर आश्रम को जन्म दिया. शुरू में 23 लावारिस, बीमार और मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों के साथ जो कार्य शुरू हुआ था, वह आज 6000 से अधिक सदस्यों वाले परिवार में बदल चुका है.

'अपना घर’ – जहां हर बेसहारा को मिलता है सहारा (वीडियो ईटीवी भारत भरतपुर)

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यहां नहीं धर्म या जाति का भेद : डॉ. भारद्वाज ने बताया कि इस आश्रम में न कोई पूछता है कि आप किस धर्म के हैं, न यह कि आपकी जाति क्या है. यहां सिर्फ यह देखा जाता है कि आप जरूरतमंद हैं या नहीं. कोई सड़क पर बेसहारा मिला, कोई मानसिक अस्थिरता में भटकता हुआ, या कोई वृद्ध जिसे उसके अपनों ने ठुकरा दिया अपना घर ऐसे हर इंसान को गले लगाता है. डॉ. भारद्वाज का कहना है कि हम इंसान को पहले इंसान की तरह देखते हैं, फिर कुछ और. यहां कोई लावारिस नहीं होता, हर कोई परिवार का हिस्सा है.

बिना रिश्तों के जुड़ा परिवार
बिना रिश्तों के जुड़ा परिवार (फोटो ईटीवी भारत GFX)
जरूरतमंदों को लगाया जाता है गले
जरूरतमंदों को लगाया जाता है गले (फोटो ईटीवी भारत GFX)
आत्मनिर्भर बनने का अवसर
आत्मनिर्भर बनने का अवसर (फोटो ईटीवी भारत GFX)

6000 लोग, लेकिन एक आत्मा : डॉ. भारद्वाज ने बताया कि आश्रम के भरतपुर परिसर में रहने वाले ये 6000 लोग आपस में रिश्तेदार नहीं, लेकिन रिश्तों से भी गहरा जुड़ाव रखते हैं. कोई किसी की मदद करता है, कोई खाना परोसता है, कोई दवा देता है/ यहां हर उम्र, हर लिंग और हर मानसिक स्थिति के लोग एक-दूसरे के साथ रहते हैं. न कोई बड़ा है, न छोटा सब एक दूसरे का सहारा हैं. यहां सेवा देने वाले कर्मचारियों को भी 'सेवा साथी' कहा जाता है, जो आश्रमवासियों की देखभाल को अपना कर्तव्य नहीं, धर्म मानते हैं.

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क्यों है यह दुनिया का सबसे बड़ा परिवार? : डॉ भारद्वाज ने बताया कि एक ही परिसर में 6000 से अधिक लोग, जो किसी रिश्ते से नहीं, सिर्फ सेवा और सहानुभूति से जुड़े हैं. यह दृश्य दुनिया में कहीं और नहीं मिलता. यहां हर कोई अपना है. हर चेहरा किसी कहानी को जी रहा है, और हर हाथ किसी और को थामे हुए है. डॉ. भारद्वाज का सपना है कि देश के हर जिले में अपना घर हो, ताकि किसी को सड़क पर मरने के लिए मजबूर न होना पड़े. अभी भारत और नेपाल में मिलाकर आश्रम की 62 शाखाएं चल रही हैं, और प्रतिदिन नए सहयोगी और स्वयंसेवक इससे जुड़ रहे हैं. डॉ. भारद्वाज ने बताया कि अपना घर आश्रम केवल आश्रय देने तक सीमित नहीं है, बल्कि यहां रहने वाले प्रत्येक प्रभुजी को सम्मानजनक जीवन जीने और आत्मनिर्भर बनने का अवसर भी दिया जाता है. आश्रम में विभिन्न प्रकार की पुनर्वास गतिविधियां चलाई जाती हैं, जैसे अगरबत्ती निर्माण, मोमबत्ती बनाना, जूते-चप्पल बनाना आदि. इन कार्यों में स्वस्थ प्रभुजियों को उनकी क्षमता और रुचि के अनुसार जोड़ा जाता है, ताकि वे न केवल समय व्यतीत कर सकें, बल्कि आत्म-संतोष और आत्मविश्वास भी प्राप्त करें.

जहां खून नहीं, दिल से बनते हैं रिश्ते
जहां खून नहीं, दिल से बनते हैं रिश्ते (फोटो ईटीवी भारत भरतपुर)

परिवार का महत्व समझते हुए डॉ भारद्वाज कहते हैं कि आज जब दुनिया में परिवार छोटे होते जा रहे हैं, रिश्ते कमजोर पड़ रहे हैं, वहीं अपना घर आश्रम यह सिखा रहा है कि सच्चा परिवार वह होता है जहां दिल जुड़े हों, न कि केवल खून. यह आश्रम न केवल आश्रय देता है, बल्कि जीने की वजह देता है.

Last Updated : May 15, 2025 at 1:59 PM IST
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