अनूपपुर : मध्य प्रदेश का अनूपपुर जिला आदिवासी बाहुल्य है. यहां आदिवासी समाज के लोग अपनी वर्षों पुरानी परंपरा को जीवित रखे हुए हैं. ये परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है. शादी जैसे समारोह में आजदिवासी समाज के बीच नगाड़ा बजाने की परंपरा है. नगाड़ा बजते ही महिला हो या पुरुष, इनके कदम अपने आप ही थिरकने लगते हैं. नगाड़े की धुन पर ही शादी समारोह जैसे आयोजन होते हैं. इस दौरान कहीं भी डीजे या बैंड बाजा बजते नहीं दिखाई देगा. लेकिन अब आधुनिकता के कारण नगाड़ा बजाने वालों की संख्या कम होती जा रही है.
बगैर नगाड़ा के नहीं मनता कोई भी जश्न
बता दें कि आदिवासी अंचल शहडोल, उमरिया, अनूपपुर, मंडला, डिंडोरी सहित कुछ और जिलों को हिस्सों में आज भी आदिवासी समाज के बीच नगाड़ा ही खुशियों की पहचान है. नगाड़ा बजाने की परंपरा आदिवासी समाज कई सालों से निभाता आ रहा है. अगर शादी ब्याह समारोह में आदिवासी क्षेत्र में नगाड़े की धुन ना बजे तो लगता ही नहीं है कि शादी समारोह हुआ है. अनूपपुर जिले के वरिष्ठ समाजसेवी डॉ. पंकज सिंह श्याम बताते हैं "नगाड़ा बाजा हमारी हजारों वर्षों पुरानी परंपरा है, जिसे हम आज भी बड़ी खुशी के साथ निभाते चले आ रहे हैं."
- आधुनिकता की 'भागमभाग' में गुम होता 'शैला' लोक नृत्य, कैसे संजो रहे हैं यहां के आदिवासी
- अनूठी बारात: इस शादी में न बैंड था न डीजे, सिर्फ पारंपरिक वेशभूषा में आदिवासी नृत्य करते पहुंचे बाराती
अब नगाड़ा बजाने वालों की संख्या कम
डॉ. पंकज सिंह श्याम बताते हैं "शादी-ब्याह की सारी रस्में बगैर नगाड़े के नहीं होती. नगाड़ा बजते ही एक प्रकार से जश्न का माहौल बन जाता है. लेकिन अब धीरे-धीरे बदलाव आने लगा है. अब शादी विवाह के समय डीजे, बैंड भी बजने लगे हैं. नगाड़ा बजाने वाले दिन पर दिन कम होते जा रहे हैं. पहले शादी के मौके पर 4 से 5 दिन तक नगाड़े बजाए जाते थे. लेकिन अब ये परंपरा खत्म होती जा रही है. बढ़ती महंगाई के कारण कई लोग नगाड़ा बजाने का काम छोड़ने लगे हैं."