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छत्तीसगढ़ के लिए राहुल गांधी का फार्मूला, खुद चुनेंगे जिलाध्यक्ष, नहीं चलेगी पैरवी, जमीन और जनाधार मजबूत करने में जुटी पार्टी - RAHUL GANDHI FORMULA

विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस पार्टी को फिर से मजबूत बनाने की कवायद में राहुल गांधी जुट गए हैं.

Rahul Gandhi formula
छत्तीसगढ़ के लिए राहुल गांधी का फार्मूला (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : June 9, 2025 at 8:27 PM IST

9 Min Read

रायपुर: कांग्रेस अपनी जमीन और जनाधार को मजबूत करने में जुट गई है. इसके लिए अब कांग्रेस में जिसे जो भी पद मिलेगा वह उसकी काबिलियत की बदौलत मिलेगा. किसी भी पद के लिए कोई पैरवी नहीं चलेगी. सबसे बड़ी बात कांग्रेस ने जिस प्रारूप को शुरू किया है भाजपा उसे अपना सबसे बड़ा हथियार मानती है. भाजपा संगठन और सत्ता को अलग कर अपनी रणनीति बनाती है. जबकि अब इसी नीति पर कांग्रेस पार्टी भी चलने जा रही है. संगठन और सत्ता को अलग अलग रखकर पार्टी की मजबूती को खड़ा करेगी. सबसे अहम बात यह है की पार्टी में जिला अध्यक्ष का चयन अब सीधे दिल्ली में राहुल गांधी द्वारा किया जाएगा. या यूं कहा जा सकता है कि अब हर राज्य में राहुल गांधी वाली कांग्रेस तैयार होनी शुरू हो गई है.

क्या है निर्देश: कांग्रेस जिस रणनीति पर काम करने जा रही है उसमें जिला अध्यक्षों के चयन के लिए कमेटी का गठन किया गया है. इस बाबत जानकारी देते हुए कांग्रेस के संचार विभाग के प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला ने बताया कि संगठन को मजबूत करने के लिए जिला अध्यक्षों के चयन की प्रक्रिया शुरू हुई है. हालांकि कुछ जिला अध्यक्षों का चयन भी हो गया है. लेकिन इस बार जो प्रक्रिया बनाई गई है उसमें पूरी पारदर्शिता बरती जा रही है.

क्या है योजना: कांग्रेस ने इस बार जिला अध्यक्षों के चयन के लिए जो नीति बनाई है, उसमें दिल्ली से एक ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य होंगे. इसके अलावा चार प्रदेश स्तरीय वरिष्ठ पदाधिकारी होंगे. जिसमें पूर्व सांसद विधायक जैसे जन प्रतिनिधि शामिल रहेंगे. इन सभी लोगों को 5 से 7 दिनों तक जिले में प्रवास करना होगा. और वहां पर सभी ब्लॉकों में जाकर के इस बात की जानकारी लेनी होगी कि कांग्रेस संगठन को मजबूत करने के लिए कौन सा जिला अध्यक्ष कितना बेहतर होगा. सबसे बड़ी बात यह है कि जिला अध्यक्षों का चयन यहां से सूची बनाकर दिल्ली जाएगा लेकिन नाम के चयन का काम सीधे राहुल गांधी द्वारा किया जाएगा.

चुनाव लड़ने पे पाबंदी, सीधे राहुल गांधी को रिपोर्ट: कांग्रेस ने इस बार जो रणनीति बनाई है उसमें जिला अध्यक्षों के चयन के लिए नए नियम शामिल किए गए हैं. भाजपा की तरफ कांग्रेस इस बार पार्टी और संगठन को पूरी तरह अलग अलग रख रही है. संगठन के सभी कार्यों को जिला अध्यक्ष करेंगे. जिला अध्यक्ष चुनाव नहीं लड़ेंगे. जिन लोगों को भी जिला अध्यक्ष का पद दिया जाएगा उन लोगों से पहले ही इस बात का करार कर लिया जाएगा उन्हें चुनाव नहीं लड़ना है. साथ ही इस बात की जानकारी हमें दे दी जाएगी की उन्हें चुनाव के लिए टिकट भी नहीं मिलेगा लेकिन अगर सत्ता में पार्टी आती है तो महत्वपूर्ण पदों पर सबसे पहले समायोजन जिला अध्यक्षों का किया जाएगा.

जिला अध्यक्ष तय करेंगे सांसद विधायक: राहुल गांधी ने कांग्रेस को मजबूत करने का जो फार्मूला तैयार किया है उसके तहत वैसे लोगों के लिए माहौल अब थोड़ा जरूर बिगड़ेगा जो लोग पार्टी को सिर्फ अपने फायदे की पार्टी बना कर रख दिए हैं. जिस फार्मूले पर कांग्रेस अपनी तैयारी कर रही है अगर यह जमीनी हकीकत लिया तो निश्चित तौर पर कांग्रेस में बहुत बड़ा बदलाव कहा जा सकता है. जिस ड्राफ्ट को लेकर जिला अध्यक्षों के चयन की तैयारी की जा रही है उसमें यह साफ कर दिया गया है आने वाले समय में जिला अध्यक्ष का पद बहुत बड़ा होगा. जिला अध्यक्ष के पास विधायक और सांसद का टिकट तय करने का अधिकार होगा. जिला अध्यक्ष द्वारा ही नाम भेजे जाएंगे और यह नाम सीधे केंद्रीय नेतृत्व को जाएगा जो राहुल गांधी के नेतृत्व में काम कर रहा है. इस बात पर संचार विभाग के प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला ने कहा की पार्टी अपनी मजबूती के लिए उसे रणनीति पर काम कर रही है जो सिर्फ नेतृत्व में निर्देश किया है.

गुजरात सम्मेलन का असर: 8 अप्रैल 2025 को गुजरात में साबरमती के किनारे कांग्रेस ने राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन किया था. जिसमें राहुल गांधी ने साफ कह दिया था कि वैसे लोग जिनका पार्टी का काम करने में लोगों के बीच जाने में दिक्कत हो रही है वह पार्टी से जा सकते हैं. राहुल गांधी संदेश पूरी पार्टी के लिए उसे समय की बहुत बड़ी नसीहत थी. अब उसके परिणाम भी दिखने लगे हैं.

न्याय पथ का नाम दिया गया: गुजरात में जो सम्मेलन हुआ था उसे न्याय पथ का नाम दिया गया था. हालांकि उसकी भी बड़ी कहानी है. 1924 में बेलगाम अधिवेशन में कांग्रेस के अध्यक्ष राष्ट्रपिता महात्मा गांधी चुने गए थे. और उसके पूरे 100 साल बाद साबरमती नदी के किनारे इसका अधिवेशन हुआ था. कांग्रेस जितनी पुरानी पार्टी है उतना बड़ा ही जमीन और जन आधार कांग्रेस का रहा है. लेकिन जिस हालत में वर्तमान समय में कांग्रेस पहुंची है उसे पर अब बदलाव वाली कहानी शुरू हुई है.

छत्तीसगढ़ में शुरू हुई सियासत: संगठन की मजबूती के लिए कांग्रेस जो कार्यक्रम चल रही है उसमें गुजरात में जिला अध्यक्षों के चयन का काम पूरा हो गया है. उत्तर प्रदेश हरियाणा और मध्य प्रदेश में यह कार्यक्रम चल रहा है. अब छत्तीसगढ़ की बारी है. छत्तीसगढ़ में इसे लेकर बयान बाजी का दौर शुरू हो गया. कांग्रेस ने से संगठन की मजबूती के लिए पार्टी के नेतृत्व की बात कही तो ही भाजपा ने इस पर तंज करते हुए कहा कि कांग्रेस ने स्थानीय नेताओं की पूरी भूमिका ही खत्म कर दी.

पार्टी को मजबूत करना पहली प्राथमिकता: भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता अनुराग जी दाऊ ने कहा कि कांग्रेस में जिला अध्यक्ष के पद का चयन अब सीधे राहुल गांधी करेंगे इससे एक बार साफ है कि कांग्रेस पार्टी को अपने प्रदेश के नेताओं पर भरोसा नहीं रह गया है. कांग्रेस पार्टी के सिर्फ नेतृत्व को यह पता है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता अब भरोसे के लायक नहीं रहे. और यही वजह है कि अब जिला अध्यक्ष के पद का चयन सीधे दिल्ली से किया जाएगा और वह भी राहुल गांधी करेंगे जो कांग्रेस के टूटे संगठन को बताता है.

राहुल का बड़ा दांव है: जिला अध्यक्षों की चयन को लेकर के केंद्रीय इकाई का आना बहुत बड़ी बात है. राहुल गांधी के इस निर्णय को लेकर वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक दुर्गेश भटनागर ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी इस पर चाहे जो बयान बाजी करें लेकिन एक बात साफ है कि राहुल गांधी ने इस बार पार्टी की मजबूती के लिए जी जमीनी स्तर को मजबूत करने का प्रयास शुरू किया है वह निश्चित तौर पर बहुत ही साहसिक कदम है.

मतभेदों को दूर करना भी जरुरी: दुर्गेश भटनागर ने कहा कि पार्टी के भीतर कई तरह के गतिरोध हैं यह राहुल गांधी को बेहतर तरीके से पता है. जो विवाद और गतिरोध सामने आ गए उसमें अगर राज्यों के आधार पर ही बात करें तो छत्तीसगढ़ में ढाई ढाई साल के मुख्यमंत्री वाले विवाद में टीएस सिंहदेव और भूपेश बघेल की पूरी राजनीति ही पार्टी को कटघरे में खड़ा कर दी. 2023 के अक्टूबर महीने में होने वाले चुनाव में यह बात साफ तौर पर दिख रहा था कि कांग्रेस पार्टी काफी मजबूत है लेकिन आपसी मतभेद में छत्तीसगढ़ कांग्रेस के हाथ से निकल गया.

दूसरे राज्यों की तुलना: राजस्थान की बात किया जाए तो अशोक गहलोत और सचिन पायलट का विवाद रोक पाने में भी सिर्फ नेतृत्व फेल रहा. कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की कहानी भी राजनीति में सबके सामने है. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि कांग्रेस में जो बड़े पद पर बैठे हुए नेता हैं वह अपने नीचे की फसल को आगे आने ही नहीं दिए. मतलब जो भी युवा राजनीति में आना चाहते थे उनको कांग्रेस नेताओं ने जगह ही नहीं दिया. यह किसी राज्य, किसी नेता के नाम से जुड़ा हुआ मामला नहीं है. यह कांग्रेस में एक परिपाटी सी बन गई.

बदलाव का तैयारी: हालांकि अब राहुल गांधी से बेहतर तरीके से समझ गए और उसको तोड़ने के लिए उन्होंने पहली तैयारी शुरू कर दी है. जिला अध्यक्ष जो पार्टी की मजबूत नींव होती है अगर वह सीधे तौर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को अपनी रिपोर्ट देगा तो जिले में आपस में होने वाले विभेद की बातें जानी शुरू हो जाएगी. जिसे रोक पाने में सिर्फ नेतृत्व सफल रहेगा. यह निश्चित तौर पर बहुत बड़ी बात है और अगर इस काम को कांग्रेस पार्टी पूरा कर लेती है तो पार्टी के मजबूती राजनीति में परिणाम देने के लिए और तत्परता के साथ खड़ी होगी इसमें दो राय नहीं है.

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रायपुर: कांग्रेस अपनी जमीन और जनाधार को मजबूत करने में जुट गई है. इसके लिए अब कांग्रेस में जिसे जो भी पद मिलेगा वह उसकी काबिलियत की बदौलत मिलेगा. किसी भी पद के लिए कोई पैरवी नहीं चलेगी. सबसे बड़ी बात कांग्रेस ने जिस प्रारूप को शुरू किया है भाजपा उसे अपना सबसे बड़ा हथियार मानती है. भाजपा संगठन और सत्ता को अलग कर अपनी रणनीति बनाती है. जबकि अब इसी नीति पर कांग्रेस पार्टी भी चलने जा रही है. संगठन और सत्ता को अलग अलग रखकर पार्टी की मजबूती को खड़ा करेगी. सबसे अहम बात यह है की पार्टी में जिला अध्यक्ष का चयन अब सीधे दिल्ली में राहुल गांधी द्वारा किया जाएगा. या यूं कहा जा सकता है कि अब हर राज्य में राहुल गांधी वाली कांग्रेस तैयार होनी शुरू हो गई है.

क्या है निर्देश: कांग्रेस जिस रणनीति पर काम करने जा रही है उसमें जिला अध्यक्षों के चयन के लिए कमेटी का गठन किया गया है. इस बाबत जानकारी देते हुए कांग्रेस के संचार विभाग के प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला ने बताया कि संगठन को मजबूत करने के लिए जिला अध्यक्षों के चयन की प्रक्रिया शुरू हुई है. हालांकि कुछ जिला अध्यक्षों का चयन भी हो गया है. लेकिन इस बार जो प्रक्रिया बनाई गई है उसमें पूरी पारदर्शिता बरती जा रही है.

क्या है योजना: कांग्रेस ने इस बार जिला अध्यक्षों के चयन के लिए जो नीति बनाई है, उसमें दिल्ली से एक ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य होंगे. इसके अलावा चार प्रदेश स्तरीय वरिष्ठ पदाधिकारी होंगे. जिसमें पूर्व सांसद विधायक जैसे जन प्रतिनिधि शामिल रहेंगे. इन सभी लोगों को 5 से 7 दिनों तक जिले में प्रवास करना होगा. और वहां पर सभी ब्लॉकों में जाकर के इस बात की जानकारी लेनी होगी कि कांग्रेस संगठन को मजबूत करने के लिए कौन सा जिला अध्यक्ष कितना बेहतर होगा. सबसे बड़ी बात यह है कि जिला अध्यक्षों का चयन यहां से सूची बनाकर दिल्ली जाएगा लेकिन नाम के चयन का काम सीधे राहुल गांधी द्वारा किया जाएगा.

चुनाव लड़ने पे पाबंदी, सीधे राहुल गांधी को रिपोर्ट: कांग्रेस ने इस बार जो रणनीति बनाई है उसमें जिला अध्यक्षों के चयन के लिए नए नियम शामिल किए गए हैं. भाजपा की तरफ कांग्रेस इस बार पार्टी और संगठन को पूरी तरह अलग अलग रख रही है. संगठन के सभी कार्यों को जिला अध्यक्ष करेंगे. जिला अध्यक्ष चुनाव नहीं लड़ेंगे. जिन लोगों को भी जिला अध्यक्ष का पद दिया जाएगा उन लोगों से पहले ही इस बात का करार कर लिया जाएगा उन्हें चुनाव नहीं लड़ना है. साथ ही इस बात की जानकारी हमें दे दी जाएगी की उन्हें चुनाव के लिए टिकट भी नहीं मिलेगा लेकिन अगर सत्ता में पार्टी आती है तो महत्वपूर्ण पदों पर सबसे पहले समायोजन जिला अध्यक्षों का किया जाएगा.

जिला अध्यक्ष तय करेंगे सांसद विधायक: राहुल गांधी ने कांग्रेस को मजबूत करने का जो फार्मूला तैयार किया है उसके तहत वैसे लोगों के लिए माहौल अब थोड़ा जरूर बिगड़ेगा जो लोग पार्टी को सिर्फ अपने फायदे की पार्टी बना कर रख दिए हैं. जिस फार्मूले पर कांग्रेस अपनी तैयारी कर रही है अगर यह जमीनी हकीकत लिया तो निश्चित तौर पर कांग्रेस में बहुत बड़ा बदलाव कहा जा सकता है. जिस ड्राफ्ट को लेकर जिला अध्यक्षों के चयन की तैयारी की जा रही है उसमें यह साफ कर दिया गया है आने वाले समय में जिला अध्यक्ष का पद बहुत बड़ा होगा. जिला अध्यक्ष के पास विधायक और सांसद का टिकट तय करने का अधिकार होगा. जिला अध्यक्ष द्वारा ही नाम भेजे जाएंगे और यह नाम सीधे केंद्रीय नेतृत्व को जाएगा जो राहुल गांधी के नेतृत्व में काम कर रहा है. इस बात पर संचार विभाग के प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला ने कहा की पार्टी अपनी मजबूती के लिए उसे रणनीति पर काम कर रही है जो सिर्फ नेतृत्व में निर्देश किया है.

गुजरात सम्मेलन का असर: 8 अप्रैल 2025 को गुजरात में साबरमती के किनारे कांग्रेस ने राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन किया था. जिसमें राहुल गांधी ने साफ कह दिया था कि वैसे लोग जिनका पार्टी का काम करने में लोगों के बीच जाने में दिक्कत हो रही है वह पार्टी से जा सकते हैं. राहुल गांधी संदेश पूरी पार्टी के लिए उसे समय की बहुत बड़ी नसीहत थी. अब उसके परिणाम भी दिखने लगे हैं.

न्याय पथ का नाम दिया गया: गुजरात में जो सम्मेलन हुआ था उसे न्याय पथ का नाम दिया गया था. हालांकि उसकी भी बड़ी कहानी है. 1924 में बेलगाम अधिवेशन में कांग्रेस के अध्यक्ष राष्ट्रपिता महात्मा गांधी चुने गए थे. और उसके पूरे 100 साल बाद साबरमती नदी के किनारे इसका अधिवेशन हुआ था. कांग्रेस जितनी पुरानी पार्टी है उतना बड़ा ही जमीन और जन आधार कांग्रेस का रहा है. लेकिन जिस हालत में वर्तमान समय में कांग्रेस पहुंची है उसे पर अब बदलाव वाली कहानी शुरू हुई है.

छत्तीसगढ़ में शुरू हुई सियासत: संगठन की मजबूती के लिए कांग्रेस जो कार्यक्रम चल रही है उसमें गुजरात में जिला अध्यक्षों के चयन का काम पूरा हो गया है. उत्तर प्रदेश हरियाणा और मध्य प्रदेश में यह कार्यक्रम चल रहा है. अब छत्तीसगढ़ की बारी है. छत्तीसगढ़ में इसे लेकर बयान बाजी का दौर शुरू हो गया. कांग्रेस ने से संगठन की मजबूती के लिए पार्टी के नेतृत्व की बात कही तो ही भाजपा ने इस पर तंज करते हुए कहा कि कांग्रेस ने स्थानीय नेताओं की पूरी भूमिका ही खत्म कर दी.

पार्टी को मजबूत करना पहली प्राथमिकता: भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता अनुराग जी दाऊ ने कहा कि कांग्रेस में जिला अध्यक्ष के पद का चयन अब सीधे राहुल गांधी करेंगे इससे एक बार साफ है कि कांग्रेस पार्टी को अपने प्रदेश के नेताओं पर भरोसा नहीं रह गया है. कांग्रेस पार्टी के सिर्फ नेतृत्व को यह पता है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता अब भरोसे के लायक नहीं रहे. और यही वजह है कि अब जिला अध्यक्ष के पद का चयन सीधे दिल्ली से किया जाएगा और वह भी राहुल गांधी करेंगे जो कांग्रेस के टूटे संगठन को बताता है.

राहुल का बड़ा दांव है: जिला अध्यक्षों की चयन को लेकर के केंद्रीय इकाई का आना बहुत बड़ी बात है. राहुल गांधी के इस निर्णय को लेकर वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक दुर्गेश भटनागर ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी इस पर चाहे जो बयान बाजी करें लेकिन एक बात साफ है कि राहुल गांधी ने इस बार पार्टी की मजबूती के लिए जी जमीनी स्तर को मजबूत करने का प्रयास शुरू किया है वह निश्चित तौर पर बहुत ही साहसिक कदम है.

मतभेदों को दूर करना भी जरुरी: दुर्गेश भटनागर ने कहा कि पार्टी के भीतर कई तरह के गतिरोध हैं यह राहुल गांधी को बेहतर तरीके से पता है. जो विवाद और गतिरोध सामने आ गए उसमें अगर राज्यों के आधार पर ही बात करें तो छत्तीसगढ़ में ढाई ढाई साल के मुख्यमंत्री वाले विवाद में टीएस सिंहदेव और भूपेश बघेल की पूरी राजनीति ही पार्टी को कटघरे में खड़ा कर दी. 2023 के अक्टूबर महीने में होने वाले चुनाव में यह बात साफ तौर पर दिख रहा था कि कांग्रेस पार्टी काफी मजबूत है लेकिन आपसी मतभेद में छत्तीसगढ़ कांग्रेस के हाथ से निकल गया.

दूसरे राज्यों की तुलना: राजस्थान की बात किया जाए तो अशोक गहलोत और सचिन पायलट का विवाद रोक पाने में भी सिर्फ नेतृत्व फेल रहा. कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की कहानी भी राजनीति में सबके सामने है. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि कांग्रेस में जो बड़े पद पर बैठे हुए नेता हैं वह अपने नीचे की फसल को आगे आने ही नहीं दिए. मतलब जो भी युवा राजनीति में आना चाहते थे उनको कांग्रेस नेताओं ने जगह ही नहीं दिया. यह किसी राज्य, किसी नेता के नाम से जुड़ा हुआ मामला नहीं है. यह कांग्रेस में एक परिपाटी सी बन गई.

बदलाव का तैयारी: हालांकि अब राहुल गांधी से बेहतर तरीके से समझ गए और उसको तोड़ने के लिए उन्होंने पहली तैयारी शुरू कर दी है. जिला अध्यक्ष जो पार्टी की मजबूत नींव होती है अगर वह सीधे तौर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को अपनी रिपोर्ट देगा तो जिले में आपस में होने वाले विभेद की बातें जानी शुरू हो जाएगी. जिसे रोक पाने में सिर्फ नेतृत्व सफल रहेगा. यह निश्चित तौर पर बहुत बड़ी बात है और अगर इस काम को कांग्रेस पार्टी पूरा कर लेती है तो पार्टी के मजबूती राजनीति में परिणाम देने के लिए और तत्परता के साथ खड़ी होगी इसमें दो राय नहीं है.

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