
संतान को समर्पित है ये खास व्रत, जानें शुभ मुहर्त और पूजा विधि, इस साल बन रहा चार शुभ योगों का संयोग
संतान सुख और संतान की लंबी आयु के लिए कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है.

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team
Published : October 11, 2025 at 12:53 PM IST
|Updated : October 11, 2025 at 12:59 PM IST
श्रेया शर्मा की रिपोर्ट
शिमला: सनातन धर्म में अलग-अलग व्रत और त्योहार का अलग-अलग महत्व है. करवा चौथ के बाद और दिवाली से आठ दिन पहले मनाया जाने वाला अहोई अष्टमी व्रत इस बार सोमवार, 13 अक्टूबर 2025 को रखा जाएगा. हिंदू पंचांग के अनुसार, यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पड़ता है और इस साल इस दिन शिव योग, सिद्ध योग, परिघ योग और रवि योग का शुभ संयोग बन रहा है. ये संयोग इस व्रत के फल को और भी शुभ बनाता है.
अहोई अष्टमी शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, इस बार अहोई अष्टमी व्रत और पूजा का समय कुछ प्रकार है. अष्टमी तिथि आरंभ 13 अक्टूबर, रात 12:14 बजे से है अष्टमी तिथि 14 अक्टूबर, सुबह 11:09 बजे समाप्त हो रही है. ऐसे में अहोई अष्टमी व्रत तिथि सोमवार, 13 अक्टूबर 2025 को है. पूजा मुहूर्त शाम 05:53 से 07:08 बजे तक है. इसके अलावा तारों को देखने का समय शाम 06:17 बजे तक है.

संतान सुख के लिए मनाया जाता है अहोई अष्टमी व्रत!
आचार्य परम स्वरूप शर्मा के अनुसार, "अहोई अष्टमी का व्रत मातृत्व और संतान सुख से जुड़ा सबसे पवित्र पर्व माना गया है. इस साल चार शुभ योगों का संयोग होने से व्रत का फल कई गुना बढ़ जाएगा. इस दिन माता अहोई की पूजा कर सच्चे मन से संतान की लंबी उम्र की प्रार्थना करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है."
अहोई माता की पूजा का विशेष महत्व
आचार्य परम स्वरूप कहते हैं, "अहोई अष्टमी व्रत मातृत्व और संतान की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है. विवाहित महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए निर्जला उपवास रखती हैं. कई महिलाएं यह व्रत संतान प्राप्ति की मनोकामना से भी करती हैं. पूरे दिन बिना जल ग्रहण किए रहने के बाद शाम को अहोई माता की पूजा की जाती है और तारों को अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है."

'मातृत्व के भाव का उत्सव है अहोई अष्टमी व्रत'
"अहोई अष्टमी केवल व्रत नहीं, बल्कि मातृत्व के भाव का उत्सव है, जो महिलाएं इस दिन निर्जला उपवास रखकर संध्या के समय तारों को अर्घ्य देती हैं, उन्हें न केवल संतान सुख मिलता है बल्कि जीवन में स्थिरता और सुख-समृद्धि भी बढ़ती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अहोई अष्टमी के दिन राधा कुंड (मथुरा) में स्नान करने की परंपरा अत्यंत फलदायी मानी जाती है. इस दिन जो श्रद्धालु राधा कुंड में स्नान करते हैं, उन्हें अहोई माता के साथ-साथ राधा और श्रीकृष्ण का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है. यह स्नान जीवन में सुख, शांति और संतान सुख की प्राप्ति का मार्ग खोलता है." - आचार्य मुक्ति चक्रवर्ती
अहोई माता की पूजा विधि
व्रत के दिन संध्या के समय स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें. इसके बाद चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर अहोई माता का चित्र या प्रतिमा स्थापित करें. फिर, दीपक जलाकर जल का छिड़काव करें और पूजा प्रारंभ करें. पूजा में सात गेहूं के दाने या सुई-धागा रखें, कथा सुनें और भोग लगाएं. इसके बाद तारों को अर्घ्य देकर व्रत खोलें.
अहोई अष्टमी व्रत कथा
पौराणिक ग्रंथों में अहोई अष्टमी व्रत कथा कुछ इस प्रकार है. एक समय की बात है, एक साहूकार की पत्नी संतान की इच्छा से जंगल में मिट्टी खोदने गई. खोदते समय उसकी फावड़े से गलती से एक साही (Porcupine Animal) के बच्चे मर गए. इस पाप के कारण उसके सात पुत्र मर गए. दुखी होकर उसने पश्चाताप किया और अहोई माता की आराधना की. साहूकार की पत्नी की आराधना से अहोई माता प्रसन्न हुईं और उसे संतान सुख पुनः प्राप्त हुआ. मान्यता है कि तभी से अहोई अष्टमी व्रत करने की परंपरा शुरू हुई.
करवा चौथ जैसा ही कठिन है अहोई अष्टमी व्रत
अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के समान कठिन और अनुशासित माना गया है. दोनों व्रतों में महिलाएं निर्जल उपवास रखती हैं, लेकिन जहां करवा चौथ पति की लंबी उम्र के लिए होता है. वहीं, अहोई अष्टमी संतान की दीर्घायु, कुशलता और खुशहाली के लिए रखा जाता है.
ये भी पढ़ें: 20 या 21 अक्टूबर कब मनाएं दिवाली, आखिर क्यों मां लक्ष्मी की दीपावली की रात होती है पूजा?
ये भी पढ़ें: हिमाचल में इस बार टूट जाएगा MIS के तहत सेब खरीद का ये रिकॉर्ड, अब तक HPMC ने खरीदा इतना हजार मीट्रिक टन एप्पल

