आगरा: आगरा के जूते के बाद अब यहां के स्टोन इनले वर्क (पच्चीकारी कला) को जीआई टैग मिलने जा रहा है. यह पच्चीकारी ही ताजमहल की बेमिसाल सुंदरता में चार चांद लगाते हैं. जिससे ही सफेद संगमरमरी बदन में बेशकीमती स्टोन इनले वर्क (पच्चीकारी) जैसी अद्भुत शिल्पकला को जीआई टैग (Geographical Indication Tag) प्रदान किया जाएगा.
21 उत्पादों को जीआई टैग मिलेगाः वाराणसी में शुक्रवार को आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा स्टोन इनले वर्क (पच्चीकारी कला) के लिए हैंडीक्राफ्ट एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों को जीआई टैग का प्रमाण पत्र अपने हाथों से सौंपेंगे. आगरा के स्टोन इनले वर्क के अलावा मथुरा की सांझी कला सहित उत्तर प्रदेश के 21 उत्पादों को जीआई टैग मिलेगा. वाराणसी में आयोजित कार्यक्रम में हैंडीक्राफ्ट एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (एचईए) के अध्यक्ष रजत अस्थाना और कोषाध्यक्ष आशीष अग्रवाल को आमंत्रित किया गया है. वहीं, मथुरा की सांझी कला के लिए ह्यूमन सोशल वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष धर्मेंद्र को आमंत्रित किया गया है.
जीआई टैग की प्रक्रिया हुई सरल: हैंडीक्राफ्ट एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (एचईए) के अध्यक्ष रजत अस्थाना ने बताया कि आगरा के स्टोन इनले वर्क को भौगोलिक संकेत यानी जीआई टैग में शामिल किया गया है. उन्होंने डबल इंजन की सरकार आने के बाद जीआई टैग की प्रक्रिया बहुत ही सरल हुई है. सन् 2004 से लेकर 2014 तक जितने जीआई हुए थे, उससे दोगुना से अधिक संख्या में इस 10 वर्ष के अंदर जीआई टैग हुए हैं.
उपभोक्ताओं को असली उत्पाद प्राप्त होग: हैंडीक्राफ्ट एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (एचईए) के अध्यक्ष रजत अस्थाना ने बताया कि स्थानीय उत्पाद जीआई टैग के साथ लोकल से अपनी ग्लोबल पहचान बनाने जा रहे हैं. जीआई टैग से अब किसानों, बुनकरों, एमएसएमई और शिल्पियों के बने उत्पाद पूरी दुनिया में पहुंच रहे हैं. इससे भारत का गौरव भी बढ़ा है. इसके साथ ही इन सबकी आमदनी में इजाफा हो रहा है. उपभोक्ताओं को असली उत्पाद प्राप्त हो रहा है. रजत अस्थाना ने बताया कि पच्चीकारी को जीआई टैग मिलने से शहर की ऐतिहासिक पहचान को वैश्विक स्तर पर मजबूती मिलने के साथ स्टोन इनले वर्क हैंडीक्राफ्ट से जुड़े हजारों कारीगरों और उद्यमियों के लिए नए व्यापारिक अवसरों के द्वार भी खोलेगी.
क्या है जीआई टैग?
बता दें कि जीआई टैग को अंग्रेजी में Geographical Indications tag कहते हैं. जो हिंदी में भौगोलिक संकेतक के नाम से भी जाना जाता है. किसी भी क्षेत्र के उत्पाद, जिससे उस क्षेत्र की पहचान हो. जब उस उत्पाद से उस क्षेत्र की प्रसिद्धि देश के कोने- कोने में फैली हो, तब उसे प्रमाणित करने के लिए जीआई टैग की जरूरत होती है. संसद ने उत्पाद के रजिस्ट्रीकरण और संरक्षण के लिए 1999 में अधिनियम पारित किया था. जिसे ज्योग्राफिकल इंडिकेशन ऑफ गुड्स एक्ट के नाम से भी जानते हैं.
जीआई टैग के फायदे: जीआई टैग मिलने से उत्पाद के लिए कानूनी सुरक्षा मिल जाती है. इसके साथ ही उस उत्पाद की विश्वसनीयता बढ़ती है. उत्पादक किसी भी अन्य देशों में इसे निर्यात करते हैं. जिससे घरेलू बाजारों से लेकर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में उस उत्पाद की मांग बढ़ती है. इसके साथ ही क्षेत्र की पहचान भी उस उत्पाद से होने लगती है. जीआई टैग मिलने से व्यापारियों को एक होल मार्क मिल जाता है. जिसका इस्तेमाल पैकिंग पर भी कर सकते हैं. कोई भी अन्य राज्य उनके उत्पाद की नकल नहीं कर सकता है.