ETV Bharat / state

हिमाचल में जून माह में पशुधन में इन रोगों की संभावना, बचाव के लिए एडवाइजरी जारी - LIVESTOCK DISEASES ADVISORY

गर्मी के मौसम में पशुधन बीमारी के चपेट में आ जाते हैं. पशुओं को बीमारी से बचाने के लिए एडवाइजरी जारी की गई है.

पशुधन को रोगों से बचाने के लिए एडवाइजरी जारी
पशुधन को रोगों से बचाने के लिए एडवाइजरी जारी (ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : June 3, 2025 at 6:11 PM IST

4 Min Read

सिरमौर: जून माह शुरू हो चुका है. इस महीने में अधिक गर्मी के कारण पशुओं के बीमार होने की आशंका बढ़ जाती है. लिहाजा पशुपालकों को सावधानी बरतने की जरूरत है. चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के प्रसार शिक्षा निदेशालय और कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर (धौलाकुआं) ने इस मौसम में पशुपालकों के लिए एडवाइजरी जारी की है. इस एडवाइजरी में बताई गई सावधानी को अपनाकर पशुपालक अपने पशुधन को इस मौसम में होने वाली बीमारियों से दूर रख सकते हैं.

कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रभारी डा. पंकज मित्तल ने बताया कि जून माह में गर्मी के मौसम में पशुओं में बुखार, शरीर में लवण की कमी, भूख न लगना और उत्पादकता में कमी आदि के लक्षण आ सकते हैं. पशुओं को गर्मी और दोपहर की तेज, गर्म और शुष्क हवाओं, लू आदि से बचाना चाहिए. पशुओं को ठंडा ताजा व स्वच्छ पानी भरपूर मात्रा में पिलाएं.

पंकज मित्तल ने बताया कि 'पशुओं को शारीरिक लवणों की कमी से बचाने के लिए, उचित मात्रा में नमक का मिश्रण चारे और पानी में मिलाकर पशुओं को दिया जाए. पशुओं को कृमि मुक्त रखने के लिए गोबर की जांच नियमित करवाएं और पशु चिकित्सक की सलाह से पशुओं को पेट व आंत के कीड़े मारने की दवाई दें. अधिक तापमान में काटने और खून चूसने वाले परजीवियों की सक्रियता बढ जाती हैं. पशुओं के रहने का स्थान साफ सुथरा व सूखा रखे. गौशाला में कीटनाशक के छिड़काव के समय पशुओं को कुछ घंटों के लिए गौशाला से बाहर निकाल दें.'

पशुधन को रोगों से बचाने के लिए एडवाइजरी जारी
पशुधन को रोगों से बचाने के लिए एडवाइजरी जारी (ETV Bharat)

शिमला, कुल्लू, सोलन, मंडी में हो सकते हैं ये रोग

पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय की एडवाजरी के मुताबिक इस मौसम में खुरपका और मुंहपका रोग-शिमला और कुल्लू जिला, गलघोंटू रोग-सोलन जिला, भेड़ और बकरी पॉक्स-शिमला और मंडी जिला में हो सकता है. 3 महीने से अधिक उम्र के अतिसंवेदनशील जानवरों का टीकाकरण, प्रभावित जानवरों को एंटीबायोटिक दवाओं, जानवरों की आवाजाही पर प्रतिबंध के साथ-साथ जैव सुरक्षा उपाय और शव का उचित निपटान, नियमित टीकाकरण भी बहुत जरूरी है.

मुर्गियों को ऐसे रखे विशेष ध्यान

गर्मी के मौसम में मुर्गियों में अंडो की पैदावार में कमी आना, मुर्गियों का कम दाना खाना, अंडे के शैल के टूटना और मृत्युदर बढ़ जाना आदि देखा जा सकता है. इसलिए इनकी फीड में पोषक तत्वों की मात्रा उचित होनी चाहिए. ताजी हवा आने की व्यवस्था करें.

तालाबों में ऑक्सीजन की मात्रा को रखें ठीक

विश्वविद्यालय की एडवाजरी के मुताबिक जून माह के दौरान तालाब में ऑक्सीजन की मात्रा कम पड़ने लगती है, जो घातक स्तर तक गिर सकती है. विशेष रूप से सुबह के समय इसका स्तर गिर सकता है, इसलिए सूर्योदय से पहले ताजे पानी को डाल कर या एरेटर्स द्वारा तालाबों में ऑक्सीजन की मात्रा को ठीक रखा जा सकता है. यदि मछली पानी की सतह पर आए या रोग के लक्षण दिखें तो ताजे पानी का प्रवाह और पानी की गुणवत्ता में सुधार करना चाहिए. अतिरिक्त खाद और फीड को कुछ समय के लिए रोक देना चाहिए. पोषक तत्वों से भरपूर तालाब के पानी को धान के खेतों की सिंचाई के लिए उपयोग में लाया जा सकता है और मछली के तालाबों में ताजे पानी को डाला जा सकता है.

मछली को अच्छी गुणवत्ता वाली फीड खिलाएं

डा. मित्तल ने किसानों को सलाह देते हुए कहा कि 'वो पूरी तरह से विघटित जैविक खाद (बायोगैस स्लरी, वर्मी कम्पोस्ट या पोल्ट्री खाद) का उपयोग उचित दरों के अनुसार करें और मछली को अच्छी गुणवत्ता वाली फीड खिलाएं. पशुपालक अपने क्षेत्रों की भौगोलिक और पर्यावरण परिस्थितियों के अनुसार अधिक एवं अतिविशिष्ठ जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केंद्र या फिर अधिक जानकारी के लिए कृषि तकनीकी सूचना केन्द्र (एटिक) 01894-230395 से भी सम्पर्क कर सकते हैं.'

ये भी पढ़ें: स्कूल में भारत का गजब का नक्शा, राजधानी दिल्ली समेत कई राज्य गायब, बीजेपी विधायक ने पकड़ी चूक

सिरमौर: जून माह शुरू हो चुका है. इस महीने में अधिक गर्मी के कारण पशुओं के बीमार होने की आशंका बढ़ जाती है. लिहाजा पशुपालकों को सावधानी बरतने की जरूरत है. चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के प्रसार शिक्षा निदेशालय और कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर (धौलाकुआं) ने इस मौसम में पशुपालकों के लिए एडवाइजरी जारी की है. इस एडवाइजरी में बताई गई सावधानी को अपनाकर पशुपालक अपने पशुधन को इस मौसम में होने वाली बीमारियों से दूर रख सकते हैं.

कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रभारी डा. पंकज मित्तल ने बताया कि जून माह में गर्मी के मौसम में पशुओं में बुखार, शरीर में लवण की कमी, भूख न लगना और उत्पादकता में कमी आदि के लक्षण आ सकते हैं. पशुओं को गर्मी और दोपहर की तेज, गर्म और शुष्क हवाओं, लू आदि से बचाना चाहिए. पशुओं को ठंडा ताजा व स्वच्छ पानी भरपूर मात्रा में पिलाएं.

पंकज मित्तल ने बताया कि 'पशुओं को शारीरिक लवणों की कमी से बचाने के लिए, उचित मात्रा में नमक का मिश्रण चारे और पानी में मिलाकर पशुओं को दिया जाए. पशुओं को कृमि मुक्त रखने के लिए गोबर की जांच नियमित करवाएं और पशु चिकित्सक की सलाह से पशुओं को पेट व आंत के कीड़े मारने की दवाई दें. अधिक तापमान में काटने और खून चूसने वाले परजीवियों की सक्रियता बढ जाती हैं. पशुओं के रहने का स्थान साफ सुथरा व सूखा रखे. गौशाला में कीटनाशक के छिड़काव के समय पशुओं को कुछ घंटों के लिए गौशाला से बाहर निकाल दें.'

पशुधन को रोगों से बचाने के लिए एडवाइजरी जारी
पशुधन को रोगों से बचाने के लिए एडवाइजरी जारी (ETV Bharat)

शिमला, कुल्लू, सोलन, मंडी में हो सकते हैं ये रोग

पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय की एडवाजरी के मुताबिक इस मौसम में खुरपका और मुंहपका रोग-शिमला और कुल्लू जिला, गलघोंटू रोग-सोलन जिला, भेड़ और बकरी पॉक्स-शिमला और मंडी जिला में हो सकता है. 3 महीने से अधिक उम्र के अतिसंवेदनशील जानवरों का टीकाकरण, प्रभावित जानवरों को एंटीबायोटिक दवाओं, जानवरों की आवाजाही पर प्रतिबंध के साथ-साथ जैव सुरक्षा उपाय और शव का उचित निपटान, नियमित टीकाकरण भी बहुत जरूरी है.

मुर्गियों को ऐसे रखे विशेष ध्यान

गर्मी के मौसम में मुर्गियों में अंडो की पैदावार में कमी आना, मुर्गियों का कम दाना खाना, अंडे के शैल के टूटना और मृत्युदर बढ़ जाना आदि देखा जा सकता है. इसलिए इनकी फीड में पोषक तत्वों की मात्रा उचित होनी चाहिए. ताजी हवा आने की व्यवस्था करें.

तालाबों में ऑक्सीजन की मात्रा को रखें ठीक

विश्वविद्यालय की एडवाजरी के मुताबिक जून माह के दौरान तालाब में ऑक्सीजन की मात्रा कम पड़ने लगती है, जो घातक स्तर तक गिर सकती है. विशेष रूप से सुबह के समय इसका स्तर गिर सकता है, इसलिए सूर्योदय से पहले ताजे पानी को डाल कर या एरेटर्स द्वारा तालाबों में ऑक्सीजन की मात्रा को ठीक रखा जा सकता है. यदि मछली पानी की सतह पर आए या रोग के लक्षण दिखें तो ताजे पानी का प्रवाह और पानी की गुणवत्ता में सुधार करना चाहिए. अतिरिक्त खाद और फीड को कुछ समय के लिए रोक देना चाहिए. पोषक तत्वों से भरपूर तालाब के पानी को धान के खेतों की सिंचाई के लिए उपयोग में लाया जा सकता है और मछली के तालाबों में ताजे पानी को डाला जा सकता है.

मछली को अच्छी गुणवत्ता वाली फीड खिलाएं

डा. मित्तल ने किसानों को सलाह देते हुए कहा कि 'वो पूरी तरह से विघटित जैविक खाद (बायोगैस स्लरी, वर्मी कम्पोस्ट या पोल्ट्री खाद) का उपयोग उचित दरों के अनुसार करें और मछली को अच्छी गुणवत्ता वाली फीड खिलाएं. पशुपालक अपने क्षेत्रों की भौगोलिक और पर्यावरण परिस्थितियों के अनुसार अधिक एवं अतिविशिष्ठ जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केंद्र या फिर अधिक जानकारी के लिए कृषि तकनीकी सूचना केन्द्र (एटिक) 01894-230395 से भी सम्पर्क कर सकते हैं.'

ये भी पढ़ें: स्कूल में भारत का गजब का नक्शा, राजधानी दिल्ली समेत कई राज्य गायब, बीजेपी विधायक ने पकड़ी चूक

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.