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चमोली में रम्माण में दिखेगी पौराणिक संस्कृति की झलक, यूनेस्को ने घोषित किया है विश्व धरोहर - CHAMOLI RAMMAN PREPARATION

चमोली में रम्माण मंचन को लेकर प्रशासन जुटा है. रम्माण के मंचन को देखने बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं.

Chamoli Ramman Preparation
चमोली में रम्माण के मंचन की तैयारी जोरों पर (Photo-ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : April 2, 2025 at 10:00 AM IST

4 Min Read

चमोली: उत्तराखंड में लोक संस्कृति और विरासत रची बसी है. जहां समय-समय पर आस्था के रंग देखने को मिलते रहते हैं. कुछ ऐसा ही चमोली जिले में देखने को मिलता है, जहां रम्माण का हर साल आयोजन होता है. जिसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं. वहीं रम्माण यूनेस्को की ओर से वर्ष 2009 में रम्माण को विश्व धरोहर में शामिल किया गया था.

प्रशासन ने तैयारियां की तेज: चमोली के सलूड़-डुंग्रा गांव में आयोजित होने वाली विश्व धरोहर रम्माण के भव्य आयोजन के लिए जिला प्रशासन ने कवायद शुरू कर दी है. जिसे लेकर जिलाधिकारी संदीप तिवारी ने जिला स्तरीय अधिकारियों की बैठक ली. उन्होंने रम्माण के भव्य आयोजन को लेकर की जा रही तैयारियों की जानकारी लेते हुए अधिकारियों को आवश्यक दिशा निर्देश दिए. जिलाधिकारी ने बैठक में रम्माण के भव्य आयोजन के लिए जिला पर्यटन अधिकारी बृजेंद्र पांडे को आयोजन स्थल को फूलों और लाइट से सजाने के साथ ही दर्शकों के बैठने की समुचित व्यवस्था करने के निर्देश दिए.

विश्व धरोहर में शामिल रम्माण: साथ ही उन्होंने आयोजन के प्रचार प्रसार के लिए मीडिया का सहयोग लेने के साथ ही यूट्यूबर और अन्य सोशल मीडिया ब्लॉगरों को आमंत्रित करने की बात कही. उन्होंने कहा कि चमोली जनपद में आयोजित होने वाला रम्माण विश्व धरोहर है. जिसे देखते हुए इसके संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए आयोजन को भव्य स्वरुप दिया जा रहा है. कहा कि विश्व धरोहर रम्माण को मीडिया और सोशल मीडिया के सहयोग से प्रचारित प्रसारित कर नई पीढ़ी को इस आयोजन से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है.

Chamoli Ramman Preparation
रम्माण मेले में दिखेगी देवभूमि की संस्कृति (Photo-ETV Bharat)

रम्माण को गणतंत्र दिवस परेड पर किया शामिल: चमोली जिले के पैनखंड क्षेत्र के सलूड डुंग्रा में रम्माण का आयोजन प्रतिवर्ष अप्रैल माह में बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से पूर्व किया जाता है. रम्माण अपनी विशिष्ट नाट्य शैली और मुखौटों के लिए पहचाना जाता है. जिसे देखते हुए यूनेस्को की ओर से साल 2009 में रम्माण को विश्व धरोहर में शामिल किया गया था. रम्माण जहां स्थानीय लोगों की आस्था को संजोए हुए है. वहीं विश्व धरोहर होने के चलते देश और दुनिया के लोगों के लिए यह आयोजन आकर्षण का केंद्र बना रहता है. उत्तराखंड राज्य के निर्माण के बाद साल 2016 में रम्माण को गणतंत्र दिवस की परेड में भी शामिल किया गया था.

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रम्माण मेले में दिखेगी देवभूमि की संस्कृति (Photo-ETV Bharat)

सलूड़-डुंग्रा ग्राम पंचायत करती है आयोजन: रम्माण मेला जोतिर्मठ विकास खंड के सलूड़ गांव में आयोजित होता है. सलूड़-डुंग्रा गांव में वैशाख माह में हर साल रम्माण मेला आयोजित किया जाता है. रम्माण मेला सलूड़ गांव की कई वर्षों पुरानी परंपरा है. इस उत्सव में रामायण पाठ किया जाता है, लेकिन बिना संवाद के,गीतों, ढोल व ताल पर मुखोटा शैली पर रामायण का मंचन होता है. रम्माण उत्सव का आयोजन बदरीनाथ जी के कपाट खुलने से पूर्व किया जाता है. जिसका आयोजन सलूड़-डुंग्रा की ग्राम पंचायत करती है.

रम्माण में पात्र करते हैं मंचन: भूमियाल देवता मंदिर के प्रांगण में आयोजित इस मेले में राम, लक्ष्मण, सीता व हनुमान के पात्र ढोल-दमाऊ की थाप पर नृत्य करते हैं. जिसमें राम जन्म, सीता स्वयंवर, वन प्रस्थान, सीता हरण, हनुमान मिलन, लंका दहन का वर्णन किया जाता है. रम्माण नृत्य में 18 मुखौटे, 18 ताल, 12 ढोल, 12 दमाऊं, 8 भंकोरे का प्रयोग होता है. ये मुखौटे भोजपत्र से बने होते हैं. रम्माण मेला 10 या 15 दिनों तक मनाया जाता है. रम्माण, पूजा, अनुष्ठानों की एक शृंखला है, इसमें सामूहिक पूजा, देवयात्रा, लोकनाट्य, नृत्य, गायन, मेला आदि का आयोजन होता है.

जानिए क्या है रम्माण: चमोली जिले के पैनखंड क्षेत्र के सलूड डुंग्रा में रम्माण का आयोजन प्रतिवर्ष अप्रैल माह में बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से पूर्व किया जाता है. रम्माण अपनी विशिष्ट नाट्य शैली और मुखौटों के लिए अगल पहचान लिए हुए है. जिसे देखते हुए यूनेस्को की ओर से साल 2009 में रम्माण को विश्व धरोहर में शामिल किया गया था. रम्माण जहां स्थानीय लोगों की आस्था को संजोए हुए है. वहीं विश्व धरोहर होने के चलते देश और दुनिया के लोगों के लिए यह आयोजन आकर्षण का केंद्र बना रहता है. उत्तराखंड राज्य के निर्माण के बाद वर्ष 2016 में रम्माण को गणतंत्र दिवस की परेड में भी शामिल किया गया था.
पढ़ें-उत्तराखंड में लखिया भूत देखने उमड़ते हैं लोग, हिलजात्रा पर्व की 500 साल पुरानी शौर्य गाथा

चमोली: उत्तराखंड में लोक संस्कृति और विरासत रची बसी है. जहां समय-समय पर आस्था के रंग देखने को मिलते रहते हैं. कुछ ऐसा ही चमोली जिले में देखने को मिलता है, जहां रम्माण का हर साल आयोजन होता है. जिसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं. वहीं रम्माण यूनेस्को की ओर से वर्ष 2009 में रम्माण को विश्व धरोहर में शामिल किया गया था.

प्रशासन ने तैयारियां की तेज: चमोली के सलूड़-डुंग्रा गांव में आयोजित होने वाली विश्व धरोहर रम्माण के भव्य आयोजन के लिए जिला प्रशासन ने कवायद शुरू कर दी है. जिसे लेकर जिलाधिकारी संदीप तिवारी ने जिला स्तरीय अधिकारियों की बैठक ली. उन्होंने रम्माण के भव्य आयोजन को लेकर की जा रही तैयारियों की जानकारी लेते हुए अधिकारियों को आवश्यक दिशा निर्देश दिए. जिलाधिकारी ने बैठक में रम्माण के भव्य आयोजन के लिए जिला पर्यटन अधिकारी बृजेंद्र पांडे को आयोजन स्थल को फूलों और लाइट से सजाने के साथ ही दर्शकों के बैठने की समुचित व्यवस्था करने के निर्देश दिए.

विश्व धरोहर में शामिल रम्माण: साथ ही उन्होंने आयोजन के प्रचार प्रसार के लिए मीडिया का सहयोग लेने के साथ ही यूट्यूबर और अन्य सोशल मीडिया ब्लॉगरों को आमंत्रित करने की बात कही. उन्होंने कहा कि चमोली जनपद में आयोजित होने वाला रम्माण विश्व धरोहर है. जिसे देखते हुए इसके संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए आयोजन को भव्य स्वरुप दिया जा रहा है. कहा कि विश्व धरोहर रम्माण को मीडिया और सोशल मीडिया के सहयोग से प्रचारित प्रसारित कर नई पीढ़ी को इस आयोजन से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है.

Chamoli Ramman Preparation
रम्माण मेले में दिखेगी देवभूमि की संस्कृति (Photo-ETV Bharat)

रम्माण को गणतंत्र दिवस परेड पर किया शामिल: चमोली जिले के पैनखंड क्षेत्र के सलूड डुंग्रा में रम्माण का आयोजन प्रतिवर्ष अप्रैल माह में बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से पूर्व किया जाता है. रम्माण अपनी विशिष्ट नाट्य शैली और मुखौटों के लिए पहचाना जाता है. जिसे देखते हुए यूनेस्को की ओर से साल 2009 में रम्माण को विश्व धरोहर में शामिल किया गया था. रम्माण जहां स्थानीय लोगों की आस्था को संजोए हुए है. वहीं विश्व धरोहर होने के चलते देश और दुनिया के लोगों के लिए यह आयोजन आकर्षण का केंद्र बना रहता है. उत्तराखंड राज्य के निर्माण के बाद साल 2016 में रम्माण को गणतंत्र दिवस की परेड में भी शामिल किया गया था.

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रम्माण मेले में दिखेगी देवभूमि की संस्कृति (Photo-ETV Bharat)

सलूड़-डुंग्रा ग्राम पंचायत करती है आयोजन: रम्माण मेला जोतिर्मठ विकास खंड के सलूड़ गांव में आयोजित होता है. सलूड़-डुंग्रा गांव में वैशाख माह में हर साल रम्माण मेला आयोजित किया जाता है. रम्माण मेला सलूड़ गांव की कई वर्षों पुरानी परंपरा है. इस उत्सव में रामायण पाठ किया जाता है, लेकिन बिना संवाद के,गीतों, ढोल व ताल पर मुखोटा शैली पर रामायण का मंचन होता है. रम्माण उत्सव का आयोजन बदरीनाथ जी के कपाट खुलने से पूर्व किया जाता है. जिसका आयोजन सलूड़-डुंग्रा की ग्राम पंचायत करती है.

रम्माण में पात्र करते हैं मंचन: भूमियाल देवता मंदिर के प्रांगण में आयोजित इस मेले में राम, लक्ष्मण, सीता व हनुमान के पात्र ढोल-दमाऊ की थाप पर नृत्य करते हैं. जिसमें राम जन्म, सीता स्वयंवर, वन प्रस्थान, सीता हरण, हनुमान मिलन, लंका दहन का वर्णन किया जाता है. रम्माण नृत्य में 18 मुखौटे, 18 ताल, 12 ढोल, 12 दमाऊं, 8 भंकोरे का प्रयोग होता है. ये मुखौटे भोजपत्र से बने होते हैं. रम्माण मेला 10 या 15 दिनों तक मनाया जाता है. रम्माण, पूजा, अनुष्ठानों की एक शृंखला है, इसमें सामूहिक पूजा, देवयात्रा, लोकनाट्य, नृत्य, गायन, मेला आदि का आयोजन होता है.

जानिए क्या है रम्माण: चमोली जिले के पैनखंड क्षेत्र के सलूड डुंग्रा में रम्माण का आयोजन प्रतिवर्ष अप्रैल माह में बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से पूर्व किया जाता है. रम्माण अपनी विशिष्ट नाट्य शैली और मुखौटों के लिए अगल पहचान लिए हुए है. जिसे देखते हुए यूनेस्को की ओर से साल 2009 में रम्माण को विश्व धरोहर में शामिल किया गया था. रम्माण जहां स्थानीय लोगों की आस्था को संजोए हुए है. वहीं विश्व धरोहर होने के चलते देश और दुनिया के लोगों के लिए यह आयोजन आकर्षण का केंद्र बना रहता है. उत्तराखंड राज्य के निर्माण के बाद वर्ष 2016 में रम्माण को गणतंत्र दिवस की परेड में भी शामिल किया गया था.
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