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पानीपत के साधू हत्याकांड में 22 साल बाद आरोपी बरी, हाईकोर्ट ने कहा - सबूत नाकाफी - SADHU KILLING ACCUSED ACQUITTED

पानीपत के डेरे में दो साधुओं की हत्या के आरोपी को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है.

Accused of killing two sadhus in a camp in Panipat was acquitted by the Punjab and Haryana High Court after 22 years
साधुओं के हत्याकांड में 22 साल बाद आरोपी बरी, (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : April 15, 2025 at 5:45 PM IST

3 Min Read

चंडीगढ़ : हरियाणा के पानीपत में साल 2003 में हुए दोहरे हत्याकांड के एक मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने आरोपी राजीव नाथ को 22 साल बाद संदेह का लाभ देते हुए उसके पक्ष में फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने आरोपी राजीव नाथ को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है. अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ पर्याप्त और ठोस सबूत पेश नहीं कर सका.

दो साधुओं की हुई थी हत्या : आपको बता दें कि पानीपत के गांव चंदौली स्थित एक धार्मिक डेरे में दो साधु शिवनाथ और उनके शिष्य माया राम की हत्या कर दी गई थी. 7 जनवरी 2003 को खेतों की ओर जा रहे किसान पृथ्वी सिंह ने डेरे में दोनों साधुओं को मृत पड़ा देखा था, जिनके चेहरे तेजाब से झुलसे हुए थे. करीब 1 महीने तक पुलिस के हाथ मामले में कोई ठोस सुराग नहीं लगा था. लेकिन 6 फरवरी 2003 को गांव के सरपंच रूप चंद और एक अन्य व्यक्ति सुखबीर सिंह ने दावा किया कि आरोपी राजीव नाथ ने उनके सामने हत्या की बात मानी थी. उन्होंने बताया कि राजीव गद्दी का वारिस बनना चाहता था, जबकि बाबा शिवनाथ उसे अपने शिष्य माया राम को सौंपना चाहते थे.

आजीवन कारावास की सजा मिली: वारदात के बाद रूपचंद और सुखबीर सिंह ने बताया था कि गद्दी नहीं मिलने की रंजिश में राजीव ने दोनों साधुओं की हत्या कर दी थी. पुलिस ने राजीव नाथ को गिरफ्तार किया था और वर्ष 2004 में निचली अदालत ने उसे दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. लेकिन राजीव ने फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसके चलते उसे 2009 में जमानत मिल गई थी.

कानूनी दृष्टि से कमज़ोर सबूत : जस्टिस जसजीत सिंह बेदी और जस्टिस गुरविंदर सिंह गिल की खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए कहा कि पूरा मामला कानूनी दृष्टि से कमजोर सबूतों पर आधारित है. कोर्ट ने सवाल उठाया कि यदि आरोपी ही दोषी था तो वो एक महीने बाद खुद सरपंच के पास जाकर हत्या की बात क्यों मानता. कोर्ट ने ये भी स्पष्ट किया कि न तो कोई प्रत्यक्षदर्शी था और न ही राजीव नाथ को मृतकों के साथ आखिरी बार देखे जाने का कोई प्रमाण मिला. पुलिस ने आरोपी से कोई हथियार या तेजाब़ भी बरामद नहीं किया. यहां तक कि फिंगरप्रिंट की रिपोर्ट भी किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाई है.

संदेह का लाभ दिया जाना न्यायसंगत: कोर्ट ने कहा कि सबूतों की श्रृंखला इतनी मजबूत होनी चाहिए कि कोई अन्य निष्कर्ष संभव न हो. लेकिन इस मामले में साक्ष्य अधूरे थे और ऐसे में संदेह का लाभ आरोपी को दिया जाना न्यायसंगत है. हाईकोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष राजीव नाथ के खिलाफ आरोप साबित करने में नाकाम रहा और उसे दोष मुक्त करार देते हुए 22 साल पुराने इस चर्चित हत्याकांड में आरोपों से मुक्त कर दिया गया है.

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चंडीगढ़ : हरियाणा के पानीपत में साल 2003 में हुए दोहरे हत्याकांड के एक मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने आरोपी राजीव नाथ को 22 साल बाद संदेह का लाभ देते हुए उसके पक्ष में फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने आरोपी राजीव नाथ को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है. अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ पर्याप्त और ठोस सबूत पेश नहीं कर सका.

दो साधुओं की हुई थी हत्या : आपको बता दें कि पानीपत के गांव चंदौली स्थित एक धार्मिक डेरे में दो साधु शिवनाथ और उनके शिष्य माया राम की हत्या कर दी गई थी. 7 जनवरी 2003 को खेतों की ओर जा रहे किसान पृथ्वी सिंह ने डेरे में दोनों साधुओं को मृत पड़ा देखा था, जिनके चेहरे तेजाब से झुलसे हुए थे. करीब 1 महीने तक पुलिस के हाथ मामले में कोई ठोस सुराग नहीं लगा था. लेकिन 6 फरवरी 2003 को गांव के सरपंच रूप चंद और एक अन्य व्यक्ति सुखबीर सिंह ने दावा किया कि आरोपी राजीव नाथ ने उनके सामने हत्या की बात मानी थी. उन्होंने बताया कि राजीव गद्दी का वारिस बनना चाहता था, जबकि बाबा शिवनाथ उसे अपने शिष्य माया राम को सौंपना चाहते थे.

आजीवन कारावास की सजा मिली: वारदात के बाद रूपचंद और सुखबीर सिंह ने बताया था कि गद्दी नहीं मिलने की रंजिश में राजीव ने दोनों साधुओं की हत्या कर दी थी. पुलिस ने राजीव नाथ को गिरफ्तार किया था और वर्ष 2004 में निचली अदालत ने उसे दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. लेकिन राजीव ने फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसके चलते उसे 2009 में जमानत मिल गई थी.

कानूनी दृष्टि से कमज़ोर सबूत : जस्टिस जसजीत सिंह बेदी और जस्टिस गुरविंदर सिंह गिल की खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए कहा कि पूरा मामला कानूनी दृष्टि से कमजोर सबूतों पर आधारित है. कोर्ट ने सवाल उठाया कि यदि आरोपी ही दोषी था तो वो एक महीने बाद खुद सरपंच के पास जाकर हत्या की बात क्यों मानता. कोर्ट ने ये भी स्पष्ट किया कि न तो कोई प्रत्यक्षदर्शी था और न ही राजीव नाथ को मृतकों के साथ आखिरी बार देखे जाने का कोई प्रमाण मिला. पुलिस ने आरोपी से कोई हथियार या तेजाब़ भी बरामद नहीं किया. यहां तक कि फिंगरप्रिंट की रिपोर्ट भी किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाई है.

संदेह का लाभ दिया जाना न्यायसंगत: कोर्ट ने कहा कि सबूतों की श्रृंखला इतनी मजबूत होनी चाहिए कि कोई अन्य निष्कर्ष संभव न हो. लेकिन इस मामले में साक्ष्य अधूरे थे और ऐसे में संदेह का लाभ आरोपी को दिया जाना न्यायसंगत है. हाईकोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष राजीव नाथ के खिलाफ आरोप साबित करने में नाकाम रहा और उसे दोष मुक्त करार देते हुए 22 साल पुराने इस चर्चित हत्याकांड में आरोपों से मुक्त कर दिया गया है.

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