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उत्तराखंड में 90 फीसदी स्कूल 'मुखिया' विहीन! फोर्थ क्लास से प्रिंसिपल तक के काम शिक्षकों के हवाले

उत्तराखंड में सरकारी स्कूलों की बदहाल स्थिति से सभी वाकिफ हैं.राजकीय शिक्षक संघ की मानें तो सूबे में 90 फीसदी स्कूलों में प्रधानाचार्य नहीं हैं.

Dehradun Without Principal School
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : October 5, 2025 at 2:36 PM IST

10 Min Read
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नवीन उनियाल

देहरादून: उत्तराखंड में सरकारी स्कूलों की दशा किसी से छिपी नहीं है. जर्जर भवनों से लेकर शिक्षकों की कमी और छात्रों की कम होती संख्या का मुद्दा अक्सर सामने आता रहा है, लेकिन विश्व शिक्षक दिवस पर आज बात शिक्षकों के उस दर्द की, जो छात्रों के भविष्य से भी जुड़ा हुआ हैं. यहां 90 फीसदी मुखिया विहीन विद्यालयों में शिक्षकों को ही हर मर्ज की दवा मानकर न केवल शिक्षकों के भविष्य बल्कि, छात्रों के शैक्षणिक कार्यों को दांव पर लगाया गया है.

चतुर्थ श्रेणी से लेकर प्रधानाचार्य तक के काम करने को मजबूर शिक्षक: बता दें कि शिक्षा के मंदिर में शिक्षक की भूमिका भगवान से भी ऊपर माना जाता है. 'गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागू पाय' दोहा बच्चों को इसी भाव के साथ पढ़ाया और समझाया भी जाता है, लेकिन उत्तराखंड में सड़कों पर उतरे शिक्षक न तो खुद को और ना ही उस भाव के साथ न्याय कर पा रहे हैं.

उत्तराखंड में 90 फीसदी स्कूल मुखिया विहीन! (वीडियो- ETV Bharat)

दरअसल, सरकारों ने शिक्षा व्यवस्था को इतना पेचीदा कर दिया है कि शिक्षकों का हाल विद्यालय में हर मर्ज की दवा जैसा हो गया है. चतुर्थ श्रेणी से लेकर प्रधानाचार्य तक के काम की जिम्मेदारी शिक्षकों पर ही छोड़ दी गई है. इन स्थितियों के पीछे की कई वजह हैं, लेकिन इनमें सबसे ज्वलंत मुद्दा शिक्षकों के प्रमोशन का है.

जिसको लेकर हजारों शिक्षक पिछले दिनों सड़कों पर भी दिखाई दिए थे. यह शिक्षकों का दर्द ही है कि आज उन्हें सालों की सेवाएं देने के बाद भी प्रधानाचार्य पद पर प्रमोशन नहीं मिल पा रहा है. सरकार इसके पीछे न्यायिक वजह बताती है, लेकिन कुछ भी हो पीस तो शिक्षक ही रहा है.

Dehradun Without Principal School
स्कूल में पढ़ाई करते छात्र (फाइल फोटो- ETV Bharat)

प्रवक्ता एसएस दानू ने रखी अपनी पीड़ा: सरकारी शिक्षक के रूप में पिछले करीब 35 साल से सेवाएं दे रहे एसएस दानू भी उसी मनोदशा से गुजर रहे हैं, जिसे राज्य के कई वरिष्ठ शिक्षक महसूस कर रहे हैं. रसायन विज्ञान में प्रवक्ता एसएस दानू इतने सालों की सेवाएं देने के बाद भी प्रधानाचार्य पद पर प्रमोशन नहीं ले पाए हैं. जबकि, अब अगले कुछ सालों में उनकी सेवानिवृत्ति होने जा रही है.

खास बात ये है कि अपनी इतने सालों की सेवाओं में 15 साल तक उन्होंने प्रभारी प्रधानाचार्य के रूप में भी कार्य किया है, लेकिन उन्हें इस बात का मलाल है कि सेवानिवृत्ति नजदीक होने के बावजूद अब तक वो प्रधानाचार्य पद पर प्रमोशन नहीं ले पाए हैं. ईटीवी भारत पर उन्होंने अपनी बात रखी.

Dehradun Without Principal School
स्कूली छात्र-छात्राएं (फाइल फोटो- ETV Bharat)

"शिक्षा विभाग की दशा बड़ी दयनीय जैसी है. मेरी 35 साल की सेवाएं हो चुकी हैं. जिसमें से 15 साल तक प्रभारी प्रधानाचार्य पद के रूप में कार्य का निर्वहन कर चुका हूं, लेकिन उसके एवज में कुछ नहीं मिला. बीते 8-10 सालों से लगातार सीआरपी मांगी जा रही है. बावजूद उसके प्रमोशन नहीं हो रहा है. इस वक्त 90 फीसदी प्रधानाचार्यों के पद रिक्त हैं. अगर हर साल पदोन्नति होती तो ऐसी स्थिति नहीं होती."- एसएस दानू, प्रवक्ता, रसायन विज्ञान

सालों की सेवाएं देने के बाद सर्वोच्च पद तक पहुंचकर सेवानिवृत्ति का सपना हर कोई देखता है, लेकिन शिक्षा विभाग में शिक्षक भर्ती होने के बाद बिना पदोन्नति के ही सेवानिवृत्ति की दहलीज तक पहुंच रहा है. यही शिक्षक जब बाकी विभागों में चयनित होने वाले अपने साथियों को तमाम प्रमोशन के बाद उच्चस्थ पद पर देखता है तो उसका दर्द और भी गहरा हो जाता है.

ऐसे वरिष्ठ शिक्षकों का जख्म सरकारी सिस्टम तब और भी गहरा कर देता है जब उनकी एसीआर (Annual Confidential Report) जल्द प्रमोशन होने के नाम पर विद्यालयों से मंगाई जाती है, लेकिन यह प्रक्रिया प्रमोशन तक नहीं पहुंच पाती. प्रधानाचार्य के पद पर रिक्तियों के आंकड़ों से यदि हम प्रदेश की शैक्षणिक स्थिति को समझना चाहे तो ये हालात भी काफी हैरान करने वाले हैं.

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सरकारी स्कूल के स्टूडेंट (फाइल फोटो- ETV Bharat)

उत्तराखंड में माध्यमिक विद्यालयों के ऐसे हैं हालात: राजकीय शिक्षक संघ उत्तराखंड के मुताबिक, गढ़वाल मंडल में कुल 1,311 सरकारी माध्यमिक विद्यालय मौजूद हैं, जिनमें से 1,265 विद्यालयों में प्रधानाचार्य ही नहीं हैं. यानी यहां 46 विद्यालयों में ही प्रधानाचार्य के पद पर स्थायी नियुक्ति हैं. देहरादून जिले में प्रधानाचार्य के 264 पद खाली हैं. हरिद्वार में 73 पद पर प्रधानाचार्य की स्थायी नियुक्ति नहीं हुई है.

टिहरी जिले में भी 268 प्रधानाचार्य के पद खाली हैं. उत्तरकाशी जिले में 120 स्कूलों को प्रधानाचार्य सरकार नहीं दे पाई है. पौड़ी जिले में 248 स्कूल मुखिया विहीन है. रुद्रप्रयाग जिले में भी 100 विद्यालयों में प्रधानाचार्य की स्थायी तैनाती नहीं हुई है. चमोली जिले में 192 स्कूल प्रधानाचार्य के बिना चल रहे हैं.

इसी तरह तरह कुमाऊं मंडल में बागेश्वर जिले में 89 विद्यालय प्रधानाचार्य के बिना चल रहे हैं. नैनीताल में 150 विद्यालयों में प्रधानाचार्य नहीं है. पिथौरागढ़ में 209 विद्यालयों में प्रधानाचार्य के पद रिक्त पड़े हैं. जबकि, अल्मोड़ा में 258 स्कूलों में प्रधानाचार्य की नियुक्ति ही नहीं हुई है. चंपावत में भी 102 स्कूलों में प्रधानाचार्य के पद खाली पड़े हैं. उधम सिंह नगर के 93 स्कूल प्रधानाचार्य की स्थाई नियुक्ति को तरस रहे हैं.

UTTARAKHAND GOVT SCHOOL
माध्यमिक स्कूलों में प्रधानाचार्य के खाली पद (फोटो- ETV Bharat GFX)

राजकीय शिक्षक संघ ने प्रदेश भर में प्रधानाचार्य के खाली पदों का आंकड़ा जुटाया है. अब वो इन खाली पदों पर प्रमोशन की मांग भी कर रहे हैं. इस मामले में शिक्षक संघ ने सड़कों पर उतरकर अपनी ताकत का भी एहसास सरकार को कर दिया है. खास तौर पर शिक्षा मंत्री के लिए शिक्षकों का यह आंदोलन किसी बड़े झटके से कम नहीं रहा है, ऐसा इसलिए क्योंकि मानसून के दौरान भी बड़ी संख्या में शिक्षकों ने आंदोलन में हिस्सा लिया और सरकार को प्रमोशन करने के लिए बाध्य करने की कोशिश की.

बात केवल विद्यालयों में प्रधानाचार्य के खाली पदों तक की ही नहीं है. बल्कि, यहां तो क्लर्क से लेकर चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी तक के पद भी भारी संख्या में खाली पड़े हैं. ऐसी स्थिति में शिक्षकों को ही इन पदों से जुड़े कामों को करना होता है या उसकी व्यवस्था करनी होती है. शिक्षा विभाग में 26 साल से शिक्षक के तौर पर काम करने वाले कुलदीप सिंह बताते हैं कि जिस तरह शिक्षा विभाग की व्यवस्थाएं हैं, वैसे हालत बाकी विभागों में नहीं है, यहां तो शिक्षक को हर मर्ज की दवा मान लिया गया है.

Teacher Protest in Dehradun
शिक्षकों का धरना (फाइल फोटो- ETV Bharat)

"विद्यालय में घंटी बजाने से लेकर अपनी कक्षा में सफाई तक का काम मुझे ही करना पड़ता है. जिन विद्यालयों में क्लर्क नहीं है, वहां शिक्षक रिकॉर्ड तैयार करने का काम भी खुद ही कर रहा है. ऐसी स्थिति में छात्रों का भविष्य तो अंधकार में ही दिखाई दे रहा है."-कुलदीप सिंह कंडारी, शिक्षक

उत्तराखंड में 90 फीसदी विद्यालयों में प्रधानाचार्य नहीं होने के आंकड़ों से आगे बढ़कर राजकीय शिक्षक संघ उन आंकड़ों को भी जारी कर रहा है, जिससे यह लगता है कि शिक्षक पर शैक्षणिक कार्य के अलावा ऐसे तमाम कामों का भी बोझ है. जिसके कारण उनका बच्चों पर पढ़ाई के लिए पूरा ध्यान दे पाना करीब करीब मुश्किल ही है.

Dehradun Without Principal School
सरकारी स्कूल की छात्राएं (फाइल फोटो- Information Department)

सरकारी विद्यालयों में क्लर्क और चतुर्थ श्रेणी के खाली पदों की भी स्थिति: शिक्षक संघ के आंकड़ों के मुताबिक, क्लर्क के देहरादून जिले में 59 पद खाली हैं. जबकि, चतुर्थ श्रेणी के 97 पद खाली हैं. हरिद्वार में क्लर्क के 61 पद खाली हैं और चतुर्थ श्रेणी के 78 पद खाली हैं.

टिहरी जिले में क्लर्क के 94 तो चतुर्थ श्रेणी के 342 पद खाली हैं. उत्तरकाशी में लिपिक के 31 तो चतुर्थ श्रेणी के 247 पद खाली हैं. पौड़ी जिले में क्लर्क के 72 तो चतुर्थ श्रेणी के 317 पद खाली हैं. रुद्रप्रयाग में लिपिक के 36 तो चतुर्थ श्रेणी के 93 पद खाली हैं. उधर, चमोली में लिपि के 57 तो चतुर्थ श्रेणी के 222 पद खाली हैं.

कुमाऊं मंडल के जिलों में बागेश्वर में 33 लिपिक के पद और चतुर्थ श्रेणी के 60 पद खाली हैं. नैनीताल में लिपिक के 62 और चतुर्थ श्रेणी के 224 पद खाली हैं. पिथौरागढ़ जिले में 130 लिपिक के पद और 427 चतुर्थ श्रेणी के पद खाली हैं. अल्मोड़ा में 107 लिपिक और 556 चतुर्थ श्रेणी के पद खाली है.

वहीं, चंपावत में 47 पदों पर लिपिक की नियुक्ति नहीं हो पा रही है तो 133 पदों पर चतुर्थ श्रेणी के कर्मी नियुक्त नहीं किया जा सके हैं. जबकि, उधम सिंह नगर जिले में 69 लिपिक के पद और 91 चतुर्थ श्रेणी के पद खाली पड़े हैं. यह आंकड़े राजकीय शिक्ष संघ के मुताबिक है.

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माध्यमिक स्कूलों में स्टाफ की कमी (फोटो- ETV Bharat GFX)

राजकीय शिक्षक संघ उत्तराखंड ने इन आंकड़ों को राज्य स्तर पर जुटाकर अब कोर्ट में मजबूती के साथ अपना पक्ष रखने का फैसला किया है. उधर, इन हालातों से अभिभावकों के माथे पर भी चिंता की लकीरें दिखाई दे रही है. देहरादून में नालापानी स्थित राजकीय इंटरमीडिएट विद्यालय में अपने तीन बच्चों का दाखिला कराने वाले धन सिंह ने भी अपनी बात रखी.

"सरकार को इस पर सोचना चाहिए. विद्यालय में किसी भी तरह से शिक्षकों या बाकी स्टाफ की कमी नहीं होनी चाहिए. विद्यालय में शिक्षक तभी अच्छी तरह से पढ़ा सकेंगे, जब उनकी मनोदशा बेहतर होगी और उन पर अनावश्यक काम का बोझ नहीं होगा."- धन सिंह, अभिभावक

विश्व शिक्षक दिवस पर ईटीवी भारत ने शिक्षकों के दर्द और छात्रों के भविष्य को लेकर इन चिंताजनक हालातों को शिक्षकों की जुबानी जाना और आंकड़ों के जरिए इसकी गंभीरता को भी बताने की कोशिश की. इस दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी शिक्षकों के प्रमोशन और शैक्षणिक व्यवस्था के हालातों पर सवाल किया. जिस पर उन्होंने अपना जवाब दिया.

"राज्य सरकार शिक्षकों के साथ किसी भी तरह से बातचीत को लेकर कोई भी दूरी नहीं रखना चाहती. शिक्षकों की सभी बातों को सुनने के प्रयास किया जा रहा है. जो भी उनकी उचित मांग है, उन पर भी विचार किया जा रहा है."- पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री, उत्तराखंड

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