नई दिल्ली: दिल्ली सरकार के स्कूलों में कक्षाओं के निर्माण में कथित भ्रष्टाचार के मामले में सोमवार को भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) मनीष सिसोदिया से सोमवार को पूछताछ करने वाली थी. लेकिन दिल्ली एसीबी के मुताबिक, उनकी टीम को मनीष सिसोदिया ने बताया है कि किसी कारणवश वो आज पूछताछ में नहीं आ पाएंगे. अब एसीबी की तरफ से उन्हें पूछताछ के लिए दोबारा समन भेजा जाएगा. वहीं दिल्ली सरकार में मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने उन्हें आड़े हाथों लिया. उन्होंने कहा कि मनीष सिसोदिया तो अब न उपमुख्यमंत्री हैं, न मंत्री, न विधायक और यहां तक कि निगम पार्षद भी नहीं हैं. फिर उन्हें क्या व्यस्तता? पूछताछ के लिए जाने से मना करना उनका अहंकार दिखाता है.
इस मामले में आम आदमी पार्टी के नेता सत्येंद्र जैन ने एसीबी ने शुक्रवार को पांच घंटे तक पूछताछ की थी. हालांकि वहां से बाहर निकलने पर सत्येंद्र जैन ने बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा था कि बीजेपी कोई वास्तविक काम नहीं कर रही है. वे सिर्फ निजी स्कूलों की फीस बढ़ा रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा था कि बीजेपी निजी हितों का समर्थन करने के लिए ये राजनीतिक खेल खेल रही है. आम आदमी पार्टी की सरकार ने इतने अच्छे स्कूल बनाए हैं, फिर भी उन्होंने मुझे और मनीष सिसोदिया को भी बुलाया. वे ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहे हैं. दरअसल, एसीबी ने दिल्ली के पूर्व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया और पूर्व लोक निर्माण विभाग के मंत्री सत्येंद्र जैन के खिलाफ दिल्ली के सरकारी स्कूलों के निर्माण में भ्रष्टाचार के मामले में अप्रैल माह में मुकदमा दर्ज किया था.
लगा ये आरोप: इस बाबत बीजेपी नेता हरीश खुराना ने शिकायत दर्ज कराई थी. उन्होंने आरोप लगाया था कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार के दौरान 12,748 कक्षाओं/भवनों के निर्माण में 2,000 करोड़ रुपये घोटाला हुआ है. सीमेंट (आरसीसी) से बनी कक्षाओं की औसत लाइफ 75 होती है, इस बजट में सेमी पक्का संरचना का निर्माण किया गया, जिसकी अवधि 30 साल बताई गई है.
रिपोर्ट को दबाया गया: कथित तौर पर परियोजना को आम आदमी पार्टी से जुड़े कुछ ठेकेदारों को दिया गया था. इसके बाद भी लागत में बढ़ोतरी हुई और निर्धारित समय अवधि के भीतर एक भी काम पूरा नहीं हुआ. टेंडर प्रक्रिया का पालन किए बिना सलाहकार और वास्तुकार नियुक्त किए गए और उनके माध्यम से लागत में वृद्धि की गई. बता दें कि इस संबंध में केंद्रीय जांच आयोग (सीवीसी) द्वारा मुख्य तकनीकी परीक्षक रिपोर्ट ने परियोजना में कई विसंगतियों की ओर इशारा किया था और रिपोर्ट को लगभग तीन वर्षों तक तत्कालीन सरकार पर दबाए रखने का भी आरोप लगाया गया.
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