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नदियों को पुनर्जीवित करने की मुहिम, कोयल, औरंगा और बूढ़ा नदी का सर्वे कर रही ब्लू एलिक्सिर कंपनी - CAMPAIGN TO SAVE THE RIVER

नदियों को पुनर्जीवित करने के लिये ब्लू एलिक्सिर कंपनी को जिम्मेदारी दी गई, अब कोयल, औरंगा और बूढ़ा नदी का सर्वे हो रहा है.

CAMPAIGN TO SAVE THE RIVER
बूढ़ा नदी (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : April 10, 2025 at 4:12 PM IST

Updated : April 10, 2025 at 9:17 PM IST

4 Min Read

पलामूः नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए एक मुहिम की शुरुआत हुई है. कोयल, औरंगा और बूढ़ा नदी की सहायक नदियों को पुनर्जीवित किया जाना है. नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए सर्वे की जिम्मेदारी ब्लू एलिक्सिर नाम के संस्था को दी गयी है. ब्लू एलिक्सिर संस्था ने वाटर कंजर्वेशन को लेकर कई योजनाएं तैयार की हैं.

ब्लू एलिक्सिर ने ही हैदराबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के लिए वाटर कंजर्वेशन प्लान तैयार किया था. दरअसल पलामू टाइगर रिजर्व नदियों का सर्वे करवा रही है. कंपनी अगले दो महीने में रिपोर्ट तैयार करेगी और पलामू टाइगर रिजर्व को सौंप देगी. रिपोर्ट के आधार पर तीनों नदियों के सहायक को पुनर्जीवित करने की योजना पर कार्य शुरू होगा.

CAMPAIGN TO SAVE THE RIVER
बूढ़ा नदी (Etv Bharat)

मानसून की बारिश पर निर्भर है नदियां, गर्मी की शुरुआत के साथ सूख जाती हैं नदियां

कोयल, औरंगा और बूढ़ा नदी बरसात के पानी पर निर्भर है. गर्मी की शुरुआत के साथ ही तीनों नदियां सूख जाती हैं. पलामू गढ़वा एवं लातेहार की एक बड़ी आबादी इन तीनों नदियों पर निर्भर है. औरंगा और बूढ़ा या कोयल नदी की सहायक नदियां हैं. कोयल नदी गुमला के कुटवा से निकलती है और पलामू के मोहम्मदगंज में सोने में मिल जाती है.

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कोयल नदी (Etv Bharat)

बूढ़ा नदी, बूढ़ा पहाड़ के इलाके से निकलती है और कोयल नदी में मिल जाती है. औरंगा नदी लोहरदगा के चूल्हा पानी से निकलती है और पलामू के केचकि में कोयल नदी से जा मिलती है. गर्मी की शुरुआत के साथ ही पलामू, गढ़वा और लातेहार के इलाके में पानी का संकट शुरू होता है. इसका असर वन्य जीवों पर भी पड़ता है.

'ब्लू एलिक्सिर नामक संस्था को नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए सर्वे करने को कहा गया है. सर्वे के बाद कई योजनाओं पर कार्य किया. कोयल औरंगा और बूढ़ा नदी की कई सहायक नदियां हैं. पानी को संरक्षण करने के लिए सभी सहायक नदियों को पुनर्जीवित किया जाएगा. गर्मी की शुरुआत के साथ ही सभी नदियां सूख जाती हैं. पहाड़, पठार और समतल क्षेत्र का अलग-अलग सर्वे किया जा रहा है. कटाव को रोकते हुए, पानी को बचाने की योजना पर कार्य हो रहा है. तीनों नदियों के वाटर लेवल को कैसे बचाया जा सके सर्वे के दौरान यह महत्वपूर्ण बिंदु है. दो हजार से अधिक छोटी नदियां और नाले हैं जिन्हें पुनर्जीवित करने की योजना है' - प्रजेशकान्त जेना, उपनिदेशक, पीटीआर

नदियों को पुनर्जीवित करने में ग्रामीणों का सहयोग

नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए स्थानीय ग्रामीण सहयोग करेंगे. पलामू टाइगर रिजर्व के अधिकारियों का मानना है कि स्थानीय स्तर पर ग्रामीणों को पता है कि किस माध्यम से पानी को रोका जा सकता है और बचाया जा सकता है. सर्वे के दौरान ग्रामीणों को भी रखा गया है. सहायक नदियों और नाले की खोज के लिए सैटेलाइट मैपिंग की जा रही है. सैटेलाइट मैपिंग के दौरान देखा जा रहा है कि कौन सी नदी और नाला आपस मे जुड़े हुए हैं.

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औरंगा नदी (Etv Bharat)

गाद के कारण लुप्त हो गई है कई सहायक नदियां, चेन गेवियन के तकनीक को अपनाने की तैयारी

पहाड़ वाले इलाके से बरसात का पानी तेजी से समतल वाले इलाके में जाता है. पानी से होने वाले कटाव से गाद तैयार होता है. इसी गाद से कई सहायक नदियां और नाले लुप्त हो गए है. सर्वे के दौरान इन्हीं नदियों को ढूंढा जा रहा है. ढूंढने के बाद सभी को पुनर्जीवित करने की योजना पर कार्य किया जाएगा. पहले चरण में योजना है कि पत्थरों को आपस में बांध कर रखा जाएगा ताकि पानी का बहाव तेजी से नहीं हो सके. इस तकनीक को चेन गेवियन कहा जाता है. चेन गेवियन तकनीक लेकर पलामू टाइगर रिजर्व ब्लू एलिक्सिर के साथ विस्तृत सर्वे प्लान भी तैयार कर रही है. पलामू टाइगर रिजर्व वाटर शेड को लेकर चरणबद्ध तरीके से योजना पर कार्य कर रही है.

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पलामूः नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए एक मुहिम की शुरुआत हुई है. कोयल, औरंगा और बूढ़ा नदी की सहायक नदियों को पुनर्जीवित किया जाना है. नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए सर्वे की जिम्मेदारी ब्लू एलिक्सिर नाम के संस्था को दी गयी है. ब्लू एलिक्सिर संस्था ने वाटर कंजर्वेशन को लेकर कई योजनाएं तैयार की हैं.

ब्लू एलिक्सिर ने ही हैदराबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के लिए वाटर कंजर्वेशन प्लान तैयार किया था. दरअसल पलामू टाइगर रिजर्व नदियों का सर्वे करवा रही है. कंपनी अगले दो महीने में रिपोर्ट तैयार करेगी और पलामू टाइगर रिजर्व को सौंप देगी. रिपोर्ट के आधार पर तीनों नदियों के सहायक को पुनर्जीवित करने की योजना पर कार्य शुरू होगा.

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बूढ़ा नदी (Etv Bharat)

मानसून की बारिश पर निर्भर है नदियां, गर्मी की शुरुआत के साथ सूख जाती हैं नदियां

कोयल, औरंगा और बूढ़ा नदी बरसात के पानी पर निर्भर है. गर्मी की शुरुआत के साथ ही तीनों नदियां सूख जाती हैं. पलामू गढ़वा एवं लातेहार की एक बड़ी आबादी इन तीनों नदियों पर निर्भर है. औरंगा और बूढ़ा या कोयल नदी की सहायक नदियां हैं. कोयल नदी गुमला के कुटवा से निकलती है और पलामू के मोहम्मदगंज में सोने में मिल जाती है.

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कोयल नदी (Etv Bharat)

बूढ़ा नदी, बूढ़ा पहाड़ के इलाके से निकलती है और कोयल नदी में मिल जाती है. औरंगा नदी लोहरदगा के चूल्हा पानी से निकलती है और पलामू के केचकि में कोयल नदी से जा मिलती है. गर्मी की शुरुआत के साथ ही पलामू, गढ़वा और लातेहार के इलाके में पानी का संकट शुरू होता है. इसका असर वन्य जीवों पर भी पड़ता है.

'ब्लू एलिक्सिर नामक संस्था को नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए सर्वे करने को कहा गया है. सर्वे के बाद कई योजनाओं पर कार्य किया. कोयल औरंगा और बूढ़ा नदी की कई सहायक नदियां हैं. पानी को संरक्षण करने के लिए सभी सहायक नदियों को पुनर्जीवित किया जाएगा. गर्मी की शुरुआत के साथ ही सभी नदियां सूख जाती हैं. पहाड़, पठार और समतल क्षेत्र का अलग-अलग सर्वे किया जा रहा है. कटाव को रोकते हुए, पानी को बचाने की योजना पर कार्य हो रहा है. तीनों नदियों के वाटर लेवल को कैसे बचाया जा सके सर्वे के दौरान यह महत्वपूर्ण बिंदु है. दो हजार से अधिक छोटी नदियां और नाले हैं जिन्हें पुनर्जीवित करने की योजना है' - प्रजेशकान्त जेना, उपनिदेशक, पीटीआर

नदियों को पुनर्जीवित करने में ग्रामीणों का सहयोग

नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए स्थानीय ग्रामीण सहयोग करेंगे. पलामू टाइगर रिजर्व के अधिकारियों का मानना है कि स्थानीय स्तर पर ग्रामीणों को पता है कि किस माध्यम से पानी को रोका जा सकता है और बचाया जा सकता है. सर्वे के दौरान ग्रामीणों को भी रखा गया है. सहायक नदियों और नाले की खोज के लिए सैटेलाइट मैपिंग की जा रही है. सैटेलाइट मैपिंग के दौरान देखा जा रहा है कि कौन सी नदी और नाला आपस मे जुड़े हुए हैं.

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औरंगा नदी (Etv Bharat)

गाद के कारण लुप्त हो गई है कई सहायक नदियां, चेन गेवियन के तकनीक को अपनाने की तैयारी

पहाड़ वाले इलाके से बरसात का पानी तेजी से समतल वाले इलाके में जाता है. पानी से होने वाले कटाव से गाद तैयार होता है. इसी गाद से कई सहायक नदियां और नाले लुप्त हो गए है. सर्वे के दौरान इन्हीं नदियों को ढूंढा जा रहा है. ढूंढने के बाद सभी को पुनर्जीवित करने की योजना पर कार्य किया जाएगा. पहले चरण में योजना है कि पत्थरों को आपस में बांध कर रखा जाएगा ताकि पानी का बहाव तेजी से नहीं हो सके. इस तकनीक को चेन गेवियन कहा जाता है. चेन गेवियन तकनीक लेकर पलामू टाइगर रिजर्व ब्लू एलिक्सिर के साथ विस्तृत सर्वे प्लान भी तैयार कर रही है. पलामू टाइगर रिजर्व वाटर शेड को लेकर चरणबद्ध तरीके से योजना पर कार्य कर रही है.

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Last Updated : April 10, 2025 at 9:17 PM IST
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