पटना: बिहार के गया की रहने वाली कलसिया देवी के पति पहले शराब के नशे में मारपीट करते थे, लेकिन जब से शराबबंदी हुई है, उनकी आंखों में आंसू नहीं आए. पहले घर में घुट घुटकर जीने को मजबूर थी लेकिन अब परिवार में किसी भी तरह का विवाद नहीं होता है.
"शराबबंदी कानून लागू होने के बाद परिस्थिति बिल्कुल बदल चुकी है. ना तो अब पति मारपीट करते हैं और ना ही घर के अन्य सदस्य शराब पीकर झगड़ा करते हैं. परिवार में खुशहाली है. हमलोग बहुत पहले दिक्कत में थे. पति, बेटा, चाचा सबलोग शराब पीते थे." -कलसिया देवी, गया जिला निवासी
गया की ही रहने वाली खुशबू देवी कहती हैं कि "अब समाज बिल्कुल बदल चुका है. खास तौर पर महिलाएं सुकून से जिंदगी जी रही हैं. पति पैसा कमाकर घर ला रहे हैं. बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल रही है. शराब के नशे में पति लड़ाई नहीं करते और महिलाओं के साथ मारपीट की खबर भी अब कम आती है." यह दोनों उदाहरण बिहार में शराबबंदी के अच्छे पहलू को दर्शाता है, लेकिन इसके कुछ बुरे पहलु भी हैं इस रिपोर्ट में हम उन सभी पहुल से रूबरू होंगे.
शराबबंदी के 9 साल पूरे: दरअसल, बिहार में साल 2016 में 5 अप्रैल से शराबबंदी लागू हुआ था. 9 जुलाई 2015 को महिलाओं के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घोषणा की थी कि चुनाव में जीत के बाद सरकार बनी तो शराबबंदी लागू करेंगे. सीएम नीतीश कुमार महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार और नशे के खिलाफ बिहार में शराब पर रोक लगा दी.

पूर्ण शराबबंदी पर सवाल: शराबबंदी के 9 साल हो चुके हैं, लेकिन पूर्णरूप से इसे लागू होने की बात करें तो यह बेईमानी होगी, क्योंकि हर साल बिहार में जहरीली शराब पीने से सैंकड़ों लोगों की मौत हो रही है. चोरी छिपे भी शराब की तस्करी और बिक्री होती है. खासकर पड़ोसी राज्य से धड़ल्ले से शराब लायी जाती है, हालांकि पुलिस छोटी-मोटी कार्रवाई कर अपनी मौजूदगी दर्शा देती है.
चुनाव में क्या रहेगा असर?: बिहार में शराबबंदी एक अहम मुद्दा बन गया है. खासकर चुनावी साल में इसको लेकर सवाल उठते रहे हैं. इसबार भी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मुद्दा बनाया जाएगा, लेकिन सवाल है कि जहरीली शराब से मौत ने सरकार को कटघरे में लाख खड़ा किया है, क्या इसका असर चुनाव में दिखेगा?
क्या हटेगी शराबबंदी: एक तरफ नीतीश कुमार कहते हैं कि जो 'पीएगा वो मरेगा'. विपक्ष भी सीएम पर हमलावर हैं. कई बार वर्तमान में केंद्र में मंत्री जीतन राम मांझी इसे हटाने की मांग की है. प्रशांत किशोर ने तो घोषणा कर दी है कि सरकार बनते ही एक घंटों में शराबबंदी कानून हटा दिया जाएगा.
अनुग्रह नारायण सिन्हा के प्रोफेसर और समाजशास्त्री डॉक्टर बीएन प्रसाद का कहना है कि शराबबंदी से समाज में बहुत सारे बदलाव आए हैं. महिलाओं के प्रति हिंसा कम हुई है. जो पैसे लोगों के बच रहे हैं उसे परिवार के जीवन स्तर में सुधार हो रहा है. हालांकि ये भी मानते हैं कि पूर्णरूप से इसपर रोक नहीं लग सकी. चोरी छिपे शराब पीना, बेचना और तस्करी जारी है.
"सबसे चिंताजनक बात यह है कि शराबबंदी के बावजूद बिहार में शराब की होम डिलीवरी हो रही है. सत्ता में बैठे लोग और पुलिस विभाग की लापरवाही की वजह से ऐसा हो रहा है. कानून को कठोरता से लागू नहीं किया गया है. अगर होता तो रिजल्ट कुछ और होता." -डॉक्टर बीएन प्रसाद, समाजशास्त्री
शराबबंदी कानून से घरेलू हिंसा में कमी: विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि इससे घरेलु हिंसा में कमी आयी है. बिहार पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक शराबबंदी से पहले 2015 में घरेलू हिंसा के 15,000 से अधिक मामले दर्ज हुए थे जो 2020 तक घटकर 9,000 के आसपास रह गए. 2024 तक यह संख्या और कम होकर 7,500 के करीब पहुंची. "महिलाओं ने शराबबंदी को अपने जीवन में सबसे बड़ा बदलाव बताया. एक सर्वे में 82% महिलाओं ने कहा कि उनके पति अब शराब नहीं पीते."

अपराधिक घटनाओं में कमी: सिर्फ महिलाओं के प्रति हिंसा ही नहीं बल्कि आपराधिक घटनाओं में भी कमी आयी है. ऐसा सरकार का मानना है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार शराब से जुड़े अपराध (नशे में मारपीट, दुर्घटना आदि) 2015 के 12,000 मामलों से घटकर 2021 में 3,000 के आसपास रह गए. 2024 तक यह और कम हुआ.

शराबबंदी को लेकर तीन सर्वे: बिहार में दो सर्वे हो चुके हैं. 2018 में पहली बार नीतीश सरकार ने सर्वे कराया था. रिपोर्ट में एक करोड़ 64 लाख लोगों ने शराब छोड़ी है. 2023 में चाणक्य लॉ विश्वविद्यालय और एएन सिन्हा इंस्टिट्यूट के साथ सर्वे कराया गया, जिसमें एक करोड़ 82 लाख लोगों के द्वारा शराब छोड़ने की जानकारी दी गयी है. बिहार में 99% महिलाएं और 93% पुरुष शराबबंदी के पक्ष में हैं.
कितनी हुई मौतें?: 2018 की सर्वे रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि पूरे देश में 1 वर्ष में 30 लाख लोगों की मृत्यु हुई. इसमें 5.3% मौत शराब पीने से हुई. 20 से 39 आयु वर्ग के लोगों में 13.5% लोगों की मृत्यु शराब पीने के कारण होती है. आत्महत्या के जितने मामले आते हैं उनमें 18% आत्महत्या शराब पीने के कारण होती है. शराब पीकर गाड़ी चलाने से 27% सड़क दुर्घटनाएं होती है . शराब पीने से 200 प्रकार की गंभीर बीमारियां भी होती है.
200 से अधिक मौत: शराबबंदी से पहले जहरीली शराब से होने वाली मौतें एक बड़ी समस्या थी. 2016 के बाद कुछ घटनाएं हुईं लेकिन सरकार ने सख्ती से कार्रवाई की. 2016-2024 के बीच ऐसी घटनाओं में 200 से कम मौतें हुई. होली के दौरान बड़ी संख्या में जहरीली शराब के सेवन से लोगों की मौत हुई है. सरकारी आंकड़ा तो 200 के आसपास है लेकिन सच्चाई देखी जाए तो यह आंकड़ा इससे ज्यादा होगा.
शराबबंदी कानून को सख्ती से लागू करने के लिए सरकार ने कड़े कानून बनाए हालांकि कई बार संशोधन किए गए . सरकार ने अवैध शराब के खिलाफ 6.5 लाख से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया और 147 लाख लीटर शराब जब्त की. 9 साल के दौरान 90 से अधिक शराब माफिया गिरफ्तार किए गए. संसोधन कानून में लोगों को थोड़ी राहत दी गयी. पहली बार पकड़ने जाने पर बांड भरवाकर छोड़ दिया जाता है.
न्यायालय पर बढ़े अतिरिक्त बोझ: शराबबंदी कानून का साइड इफेक्ट भी हुआ है. एक ओर जहां हजारों करोड़ों रुपए का राजस्व नुकसान हुआ है. वहीं न्यायालय पर भी बोझ बढ़ा है. बिहार में शराबबंदी कानून से जुड़े 936949 मुकदमे दर्ज हो चुके हैं. इस दौरान 14 लाख 32 हजार 837 गिरफ्तारियां हुई है. सरकार ने अतिरिक्त न्यायालय का गठन तो किया है लेकिन वह नकाफी साबित हो रहा है. ज्यादा गिरफ्तारी और शराब जब्ती के कारण मामला न्यायालय में अटक रहा है.
"न्यायालय में शराबबंदी से जुड़े केसों का प्रमाण है. शराबबंदी के वजह से न्यायालय पर अतिरिक्त बोझ बड़े हैं और न्याय के लिए लोगों को लंबाई इंतजार करना पड़ रहा है." -दीनू कुमार, वरिष्ठ अधिवक्ता
तस्करी रोकने की कोशिश: शराब की तस्करी रोकने के लिए भी सरकार ने कई कदम उठाए. सीमावर्ती इलाके में जहां चेक पोस्ट बनाए गए. ड्रोन से भी निगरानी की व्यवस्था की गई. कई जगहों पर क्लोज सर्किट कैमरा भी लगाया गया

चेक पोस्ट, थाने और निगरानी कुल चेक पोस्ट: 84 (67 अंतर्राज्यीय) स्थापित किए गए. इसके अलावा 30 उत्पाद थाने खुले गए. 1,20,409 उत्पाद अभियान लाये गए. कुल मिलाकर 2, 15, 917 गिरफ्तारियां हुई. शराब जब्ती थी अगर बात कर ले तो 6, 22, 646 बल्क लीटर शराब जब किए गए. इस दौरान कुल मिलाकर 7, 898 वाहन भी जब्त किए गए.
1 अप्रैल 2016 से 31 मार्च 2025 तक उत्पाद विभाग ने कुल 9, 36, 949 कार्रवाई की. इसमें विभाग द्वारा 4, 24, 852 और पुलिस द्वारा 5, 12, 097 कार्रवाई की गयी. गिरफ्तारी की संख्या 14,32,837 है, जिसमें विभाग ने 6,18,134 और पुलिस ने 8,14,703 गिरफ्तारी की.
जब्त शराब: एक करोड़, 76 लाख 31 हजार बल्क लीटर देसी शराब जब्त की गयी. 2 करोड़ 10 लाख 64 हजार 584 बल्क लीटर विदेशी बरामद किया गया. कुल: 3,86,96,570 बल्क लीटर में विभाग ने 1,18,16,288 बल्क लीटर और पुलिस ने 2,68,80,282 बल्क लीटर शराब जब्त की.
एएन सिन्हा संस्थान के प्राध्यापक और अर्थशास्त्री डॉक्टर विद्यार्थी विकास का कहना है कि राज्य को अब तक करोड़ों रुपए की क्षति हो चुकी है. 9 साल के दौरान राज्य को एक लाख करोड़ का नुकसान हुआ है. औसतन हर साल 12000 करोड़ की क्षति शराबबंदी की वजह से राज्य सरकार को हुई है.
"चिंताजनक बात यह है शराबबंदी कानून लागू होने के बाद से युवा दूसरे नशा कर रहे हैं. बिहार उड़ता बिहार बनता जा रहा है. स्मैक आदि की तस्करी बढ़ गयी है. जहरीली शराब का भी मामला सामने आते रहता है." -डॉक्टर विद्यार्थी विकास
राजनीतिक विश्लेषण डॉक्टर संजय कुमार का कहना है कि शराबबंदी कानून आज की तारीख में चुनावी मुद्दा बन चुका है. तमाम राजनीतिक दल शराबबंदी कानून और उसके कारण को लेकर सवाल उठाते रहे हैं. भाजपा या राष्ट्रीय जनता दल जो कोई विपक्ष में रहता है. वह शराबबंदी कानून को लेकर सवाल खड़ा करता है. प्रशांत किशोर तो सरकार में आते ही शराबबंदी को खत्म करने की बात कही है.
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